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Publishing Year : 2024

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प्रस्तुत शोध पत्र ‘‘ऑनलाइन शिक्षा से छात्र और छात्राओं में संचार कौशल, आत्मविश्वास, तनाव एवं चिंता पर प्रभावः एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन’’ पर प्रस्तुत किया जा रहा है। शोध पत्र में व्यक्तित्व विकास के संकेतक (संचार कौशल, आत्मविश्वास), मानसिक स्वास्थ्य के संकेतक (तनाव, चिंता, नींद का पैटर्न) एवं ऑनलाइन शिक्षा की उपयोगिता और चुनौतियों का मूल्यांकन किया गया है। इस अध्ययन के लिए मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से कुल 200 छात्रों का चयन किया गया। स्व-निर्मित प्रश्नावली का निर्माण कर निष्कर्ष निकाले गये। मुख्य निष्कर्षों में ऑनलाइन शिक्षा ने छात्रों के आत्मनिर्भरता और तकनीकी कौशल को बढ़ावा दिया तथा तनाव, चिंता और नींद की कमी जैसे नकारात्मक प्रभाव छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं।

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ऑनलाइन शिक्षा, संचार कौशल, आत्मविश्वास, तनाव एवं चिंता.

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  1. अरोड़ा, एस. (2021) ऑनलाइन शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव, राष्ट्रीय पुस्तकालय प्रकाशन, कोलकाता पृ. 5-6।

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झारखण्ड आन्दोलन बहुत ही व्यापक आन्दोलन था। यह कोई आचानक घटने वाली घटना नही थी। इसकी पृष्ठभूमि का निर्माण काफी पहले ही हो चुका था। झारखन्ड क्षेत्र में हुए विभिन्न आदिवासी विद्रोहों में उसकी पृष्ठभूमि को देख सकते हैं। भगवान बिरसा के ’’उलगुलान“ अबुवा दिशुम अबुआ राज (हमारा देश हमारा राज) से भी अलग झारखण्ड की अभिव्यक्ति नजर आती है। झारखण्ड आन्दोलन कई कारणों से शुरू हुआ जिसमे भाषा, संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, धर्म, जनजातीय समाज की पारम्परिक शासन व्यवस्था, भौगोलिक विविधता, भूमि संबंधी समस्या, जल जंगल जमीन का सवाल, बिहार की उपनिवेशवादी नीति, इत्यादि प्रमुख था। सदियों से झारखण्ड क्षेत्र की अपनी पृथक अभिव्यक्ति रही थी। इसी पहचान को बनाए रखने के उद्देश्य से और उपरोक्त कारणों के कारण झारखण्ड आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। प्रत्यक्ष तौर पर यह आन्दोलन दशकों तक चला और राज्य के निर्माण के बाद ही समाप्त हुआ।

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महाजनी, उपनिवेशवाद, आंदोलन, आंचलिक, झारखण्ड.

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  1. तलवार, वीर भारत (2017) झारखण्ड आन्दोलन का दस्तावेज, नवारुण, गाजियाबाद, पृ. 30। 

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10. अहमद जियाउद्दीन (1978) बिहार के आदिवासी, मोतीलाल बनारसीदास, पटना, पृ. 174।
11. महतो, शैलेन्द्र, पूर्वाेक्त, पृ. 39।

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प्रकृति की सबसे सुन्दर कृति ‘‘कन्या‘‘ है। आदि काल से कन्या को महिमामण्डित किया गया है। कन्या मानवता का सृजन करती है। धरती जिस तरह पंचतत्वों के असंतुलन से प्रभावित होती है, उसी तरह मानव की जन्मदायिनी कन्या भी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक कारकों के असंतुलन से, तथा संकीर्ण रूढ़िवादी एवं घृणित मानसिकता से प्रभावित हो रही है। कन्या भू्रण हत्या 21वीं सदी के भारतीय समाज के समक्ष एक ज्वलंत मुद्दा है। हमारे देश में सामाजिक दृष्टिकोण से गर्भपात को उचित नहीं माना जाता है। प्रत्येक स्त्री को विधिक तरीके से विवाह करने एवं गर्भधारण कर बच्चे को जन्म देने का अधिकार प्राप्त है। कन्या भू्रण संहार का दुष्परिणाम महिलाओं के प्रति हिंसा मंे वृद्धि तथा मौलिक अधिकारों के हनन के रूप मंें आ रहा है। संसद द्वारा सन् 1994 मंे प्रसूति पूर्व निदान तकनीक (विनियम एवं दुरूपयोग निवारण) अधिनियम, 1994 संशोधित (सन् 2002 में) गर्भधारण पूर्व एवं प्रसूति पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध)   अधिनियम, 1994 के नाम से संशोधित रूप में लागू किया गया। यह अधिनियम गर्भधारण से पूर्व या उसके पश्चात् लिंग चयन का प्रतिषेध करता है तथा प्रसूति पूर्व निदान तकनीकों का विनियमन करने के साथ ही इन तकनीकों को रोकने का प्रावधान करता है।

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कन्या भू्रण हत्या, गर्भधारण, प्रसूति, गर्भपात,  लिंग चयन.

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  1. A.I.R. 2001 SC 2007

2. AIR 2013 Supreme Court 1571
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This study was intended to figure out the impact on a student’s character and his/her scholastic vocation or accomplishment because of a teacher’s way of behaving and mentality. The principal reason for this paper is to zero in on the significant issues connected with teachers’ way of behaving, to concentrate on the elements influencing students’ characters, scholarly accomplishment, and professions, and afterward to suggest ideas for taking care of these issues really. Figuring out the attributes and meaning of teachers’ way of behaving and its impact on the scholarly accomplishment and character of students is vital. Accordingly, students’ positive way of behaving and communication with students assume a basic part in reinforcing the potential expected for better scholastic accomplishment and character improvement of students. Thus, the motivation behind the review was to look at the impact on students’ scholastic accomplishment and character because of the teacher’s way of behaving.

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Teacher’s Conduct, Scholastic, Character, Accomplishment.

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  1. Adams, Raymond S. and Biddle, Bruce J. (1970) Realities of Teaching: Explorations with Video Tape, Holt, Rinehart and Winston, Inc. NewYork. 

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संयुक्त परिवारों में परिवर्तन के कारण अब ग्रामीण संयुक्त परिवारों में परिवर्तन होने लगा है। अनेक समाजशास्त्री, विचारक व विद्वानों का मानना है कि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से तो ग्रामीण संयुक्त परिवार विघटित नहीं हो रहे हैं, बल्कि आवश्यकता, परिस्थितियों इत्यादि के कारण ये परिवार व्यवस्थापन तथा अनुकूलन कर रहे हैं। विभिन्न कारणों तथा परिस्थितियों के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार परिवर्तित हो रहे हैं। वैसे भी परिवर्तन होना अवश्यम्भावी है लेकिन संयुक्त परिवारों के परिवर्तन की प्रक्रिया नई परिस्थितियों के साथ अनुकूलन कर रही है।

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औद्योगीकरण, संयुक्त परिवार, नगरीयकरण, शिक्षा, संस्कृति, व्यवसाय.

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  1. कर्वे, इरावती (1953) किन्सिप ऑर्गनाइज इन इंडिया, डिकॉन कॉलेज मोनोग्राम, पूना, पृ. 49।

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Prehistory to modern period evidence has been foundin the Vidarbha region. All types of Buddhist evidence found in the Vidarbha region like stupas, Viharas, sculptures, inscriptions, and numismatic evidence. The inscription is a significant source of History. In the Vidarbha region, so much inscriptional evidenceis there. Buddhist, Brahminical, etc. inscriptions are also found there. Pullar, Deotek, Pauni, Bhivkund, Chandala, Bhuyari, Mahurzari, Kunghada, Bhadravati, Hamalapuri, Kayar,etc., places there some important inscription has been found. Deotek, Bhadravati, Pauni, and Hamalapuri inscriptions have a direct relation toBuddhism, but others are related to Buddhism. The Chandala forest cave rock inscription is one of the oldest inscriptions in Vidarbha. Two inscriptions are there on a rock. This paper is based on brief investigation of previous studies and a new view of Chandala forest cave rock inscriptions. 

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Archaeology, Vidarbha, Chandala, Rock inscriptions, Cave, Okiyasa, Putasa.

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  1. Sawant, R. (2012). Historical Archaeology of Vidarbha. Bhopal, New Delhi: Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya, Aryan Books International.

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11. Kale, B. (1994). Inscriptions in Chandala Forest. Journal of Epigraphical Society of India, Vol- 20, Issue 1, p. 77.
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संस्कृति किसी भी राष्ट्र की बहुमूल्य धरोहर होती है तो यह किसी भी राष्ट्र के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व और अभिन्न अंग होता है। जब दीनदयाल उपाध्याय और भारतीय संस्कृति की बात आती है, तो यह उस मूल सनातन संस्कृति के बारे में है, जिसकी नींव भारतीय राष्ट्र की पहचान पर आधारित है। दीनदयाल उपाध्याय उस संस्कृति के बारे में बात करते हैं जिसमें जीवन और उसके विकास का एक पूरा पहलू है जिसमें समता होती है। दीनदयाल उपाध्याय ने अपने विचारों और कार्यों में जीवन के किसी एक पहलू को विशेष महत्व नहीं दिया है। दीनदयाल उपाध्याय की सोच का आधार समग्र है जिसमें व्यक्ति, सामूहिक और सृजन की समग्र सोच होती है। संस्कृति के बारे में उनकी सोच का आधार भी समग्र है। प्रस्तुत शोध पत्र का आधार सनातन संस्कृति है, जिसकी वकालत दीनदयाल उपाध्याय ने की है। दीनदयाल उपाध्याय सनातन संस्कृति के संरक्षक बने। यह शोध पत्र सनातन भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता और दीनदयाल उपाध्याय के अनुभव और विचारों पर आधारित है। अध्ययन की कार्यप्रणालीः किसी भी शोध कार्य की गुणवत्ता के लिए, अनुसंधान विधि का विशेष महत्व है इसलिए, प्रस्तुत लेख में व्याख्यात्मक विधि का उपयोग किया गया है। अध्ययन का उद्देश्यः इस शोध लेख का उद्देश्य भारत की संस्कृति की मौलिकता और महानता को उजागर करना है, जिसके लिए दीनदयाल उपाध्याय ने अपने पूरे जीवन में काम किया भारत की सांस्कृतिक विरासत से संबंधित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को उजागर करना हैं।

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भारतीय संस्कृति, आर्थिक समानता, मौलिकता, संरक्षण, सांस्कृतिक विरासत.

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  1. सिंह, ए. (2017) मैं दीनदयाल उपाध्याय बोल रहा हूं, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली 110002, पृ. 45।

2. अग्निहोत्री, आर. एस. शुक्ल, बी. पी. (2008) राष्ट्र जीवन की दिशा, लोकहित प्रकाशन, लखनऊ 226004, पृ. 33-34।
3. शर्मा, एम. सी. (2017) एकात्ममानवद तत्व-मिनन्सा-सिदांत-विवेचन, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, 110002, पृ. 17।
4. शर्मा, एच. डी. (2017) राष्ट्रीय जीवन माला पंडित दीनदयाल उपाध्याय, फयुजन बुक्स, नई दिल्ली 110020, पृ. 159।
5. गैन, सुरेंद्र प्रसाद (1999) पंडित दीनदयाल उपाध्याय के आर्थिक विचार सुरेंद्र प्रसाद गेन द्वारा 1999 आईएसबीएनः 9788176291927, 8176291927, दीप एवं दीप पब्लिकेशन, दिल्ली, पृ. 167।
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Fashion “Clothing serves as an expression of the self and means for self-evaluation and self-enhancement” (Strübel, J., & Goswami, S. 2022), particularly for transgender individuals who use clothing to affirm their gender identity and navigate societal perceptions. This explores the intersection of style, clothing choices, and self-expression within the transgender community, highlighting historical challenges and modern developments. It examines the role of fashion in affirming gender identity, the representation of transgender individuals in media and the fashion industry, and the emergence of inclusive fashion brands. Through personal stories and community support, the article illustrates the diverse ways in which transgender people use fashion to express their identities. Despite progress, ongoing challenges such as discrimination, safety concerns, and economic barriers persist. This underscores the importance of continued advocacy and inclusivity in fashion to create a more accepting and supportive environment for transgender individuals.

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Transgender, Fashion, Identity, Transition, Clothing, Activism, Representation.

Read Reference

  1. Betz, D. E., Sabik, N. J., & Ramsey, L. R. (2019). Ideal comparisons: Body ideals harm women’s body image through social comparison. Body Image, 29, 100-109.

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Road distributing structures a critical piece of the casual economy in India. Food distributing, specifically, is famous due to day to day food necessities and the social expressiveness of food, cooking, and utilization. Road food sellers work from public spaces like asphalts and are the individuals who run limited scope organizations with ostensible capital ventures. They have restricted admittance to spread data among individuals about their work through notices and other special means. Food and travel-based content are turning out to be progressively famous with the development of virtual entertainment. Documentation of road food and food merchants through satisfied makers via online entertainment prompts an accidental advancement and ad of these organizations. The effect of virtual entertainment exercises on road distributing organizations shapes the center subject of this paper.

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Road Food, Promotion, Entertainment, Virtual,  India.

Read Reference

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 “A teacher can never truly teach unless he is still learning himself. A lamp can never light another lamp unless it continues to burn its own flame.”

Ravindranath Tagore
शिक्षण के प्रति अरूचि है तो स्वभावतः उसकी शिक्षण दक्षता भी प्रतिकूल होगी और वह विद्यार्थियों में भी शिक्षा के प्रति अरूचि उत्पन्न करने में सहायक होगी। शिक्षकों की योग्यता. उनकी कार्यशैली, उनकी लगन, आस्था एवं विश्वास आदि पर ही शिक्षण व्यवसाय की सफलता एवं असफलता निर्भर करती है। वर्तमान समय में शैक्षिक स्तर में गिरावट आ रही है, इसका प्रबलतम एवं प्रभावीकारक शिक्षकों की शिक्षण अभिवृत्ति एवं व्यावसायिक संतुष्टि में अधिन्यूनता ही है। अभिवृत्ति किसी घटना के प्रति व्यक्ति की आंतरिक अनुभूति है। अभिवृत्ति मनुष्य के भावी व्यवहार, तर्क एवं कल्पना को प्रभावित करती है। अभिवृत्ति में अनेक विशिष्ट गुण होते है जो कि व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर आधारित होते हैं। व्यावहारिक दृष्टि से शिक्षकों के लिए अभिवृत्तियों का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है। धनात्मक अनुकूल अभिवृत्तियाँ कार्यों को केवल सरल ही नहीं बनाती बल्कि संतोषप्रद एवं पुरस्कार योग्य बताई जा रही है। ऋणात्मक प्रतिकूल अभिवृत्तियाँ शिक्षण प्रक्रिया को बहुत थका देने वाली व दुखद बना देती हैं। शिक्षा का स्तर शिक्षकों की शैक्षिक अभिवृत्ति एवं अपने कार्य के प्रति संतोष की भावना पर आधारित होता है। प्रस्तुत शोध में चयनित समस्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों में की शैक्षिक अभिवृत्ति का उनकी व्यावसायिक संतुष्टि के संदर्भ में अध्ययन है। इस अध्ययन में कबीरधाम जिले के 120 शासकीय एवं अशासकीय शिक्षकों का चयन न्यादर्श के लिये किया गया है। संपूर्ण प्रतिष्ठान हेतु उद्देश्यपूर्ण न्यादर्श प्रणाली का उपयोग किया गया है। समस्या समाधान हेतु शैक्षिक अभिवृत्ति मापन हेतु डॉ. एस.पी. अहलूवालिया द्वारा निर्मित अभिवृत्ति मापनी एवं व्यावसायिक संतुष्टि मापन हेतु डॉ. प्रमोदकुमार एवं डी. एन. मूथाद्वारा निर्मित व्यावसायिक संतुष्टि मापनी का उपयोग किया है। शासकीय एवं अशासकीय शिक्षकों की शैक्षिक अभिवृत्ति में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया एवं शासकीय एवं अशासकीय शिक्षकों की व्यावसायिक संतुष्टि में सार्थक अन्तर पाया गया। 
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शैक्षिक अभिवृत्ति, व्यावसायिक संतुष्टि.

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10. शर्मा, कविता (2017) सेवास्त, शिक्षकों की शिक्षण व्यवसाय के प्रति प्रतिबद्धता तथा व्यवसायिक सन्तुष्टि के सन्दर्भ में उनके विद्यार्थियों शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एजूकेशन एंड सांइस रिसर्च, वाल्यूम 04, अगस्त 2017, पृ. 52-57।
11. सुनील कुमार व नितिन कुमार वर्मा (2015), कानपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध स्ववित्त एवं अनुदान प्राप्त शिक्षक-शिक्षा संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों की कार्य सन्तुष्टि का विश्लेषणात्मक अध्ययन, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेनेजमेंट सांइस एंड टेक्नालाजी, वाल्यूम 06,पृ. 68-75।
12. कावरे, सुधीर सुदाम (2018) उच्चतर माध्यमिक स्तर के शासकीय एवं अशासकीय विद्यालयों के शिक्षकों के मध्य कक्षीय वातावरण से कार्यसंतुष्टि का अध्ययन, त्मअपमू व ित्मेमंतबीए वाल्यूम संख्या 07 अगस्त 2018, पृ. 1-5।
13. नवोदय विद्यालय (2012) प्रतिबद्धता का प्रभाव, स्टाफ एण्ड एज्युकेशनल डेवलपमेंट इंटरनेशनल, वाल्यूम 16, 01 मई 2012, पृ. 23-36।
14. गौड, शोभा, विश्वकर्मा, ऋषिकेश (2016) गोरखपुर मण्डल के प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत बी.टी.सी. एवं विशिष्ट बी.टी.सी. प्रशिक्षित अध्यापकों की कार्य सन्तुष्टि एवं प्रभावशीलता एवं समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च थाट्स, वाल्यूम 10, मई 2016, पृ. 223-227।

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This study investigates the influence of digital education on the academic performance of Government and private senior secondary school students in Patna district. Using data from urban and rural schools, it evaluates the role of digital tools, infrastructure, and teacher preparedness in shaping student outcomes. The research employs a mixed-methods approach, analysing academic records, conducting surveys with students and teachers, and interviewing school administrators. Findings indicate that digital education positively impacts student engagement and learning outcomes across both Government and private institutions. However, disparities exist in the accessibility and utilization of digital tools. Private schools demonstrated better access to advanced e-learning technologies, consistent internet connectivity, and trained educators. In contrast, Government schools, particularly in rural areas, faced challenges such as inadequate infrastructure, limited teacher training, and inconsistent power supply. The study highlights the need for targeted interventions to bridge these gaps. Recommendations include improving digital infrastructure in Government schools, implementing teacher training programs on e-learning methods, and fostering public-private partnerships to ensure equitable access to digital resources. By addressing these challenges, policymakers and educators can leverage digital education to create a more inclusive and effective learning environment in Patna district.

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Digital Education, Academic Performance, Senior Secondary Schools, Digital Infrastructure, Teacher Training.

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  1. Behera, S. (2020). Challenges and Opportunities in the Digital Transformation of Indian Education System. Journal of Digital Learning and Education, 5(3), 56-67.

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बच्चे किसी भी राष्ट्र के भविष्य के प्रतीक होते हैं और बाल साहित्य इस भविष्य की एक महत्वपूर्ण आधारशिला है, जो आने वाले समय की दिशा को निर्धारित करती है। आज का युग पूरी तरह से आधुनिकता की ओर अग्रसर हो चुका है। बाल साहित्य, जो बच्चों की सोच और भावनाओं को विकसित करने का एक साधन है, अब डिजिटल माध्यमों के जरिए एक नए स्वरूप में उभर रहा है। आधुनिक डिजिटल युग में बाल साहित्य ने कई नए आयामों को अपनाया है, जो न केवल बच्चों के मनोरंजन के लिए आवश्यक हैं, बल्कि उनकी सोच, रचनात्मकता और शैक्षिक एवं सामाजिक कौशल के विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान समय में, इंटरनेट, ई-बुक्स, और विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्मों ने बच्चों के साहित्यिक अनुभव को और भी विस्तारित किया है। यह अध्ययन डिजिटल मीडिया के माध्यम से बच्चों में विकसित होने वाले नए कौशलों, जैसे डिजिटल साक्षरता, क्रिटिकल थिंकिंग और समस्या समाधान पर गहराई से विचार करता है। बाल साहित्य में कहानी कहने की विधियों को विभिन्न तकनीकी साधनों के माध्यम से और भी रोचक बनाया गया है। कार्टून, वीडियो, और इंटरैक्टिव सामग्री का समावेश बच्चों के ज्ञान और कौशल के विकास में सहायक होता है। यह भी जांच करता है कि कैसे डिजिटल मीडिया बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करता है और उन्हें नई दुनिया की खोज करने के लिए प्रेरित करता है। डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने की प्रक्रिया में रुचि में वृद्धि हुई है, जिससे बच्चे अपनी रचनात्मकता को व्यक्त करने के लिए नए और अभिनव तरीकों का उपयोग कर सकते हैं।

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बाल साहित्य, डिजिटल मीडिया, कौशल विकास, ई- बुक्स, सामाजिक विकास.

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  1. पाण्डे, नागेश संजय (2012) बाल साहित्य छृजन और समीक्षा, विनायक पब्लिकेशंस, इलाहाबाद, यूपी। 

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Scientometrics study is an important research tool for understanding the subjects. It aims at measuring the utility of documents and relationship between documents and fields. The present study entitled “Authorship Pattern and Degree of Collaboration in Shodh Samagam Journal” is based on 903 papers published in 20 issues of Shodh Samagam Journal during 2019-2023. The present study tries to find out the literature growth, authorship and collaboration pattern. Concluding results, from the analysis of collected data appended to the total of 903 papers published in Shodh Samagam during 2019- 2023, are presented in a manner to fulfil the objectives of the study. Hindi 475 (52.60 %) is most important language found during the study undertaken. Maximum numbers of papers were published in the year 2021 with 244 (27.02 %) papers and minimum number of papers published in 2019 with 45 (4.98 %) papers. The average productivity per author is 0.69 during the year 2019 - 2023. In the degree of collaboration of all years i.e. from 2019 -2023 is almost same of the mean value as 0.55 whereas the degree of collaboration during the overall five year

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Authorship Pattern, Author Productivity, Degree of Collaboration.

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यह शोधपत्र विद्यालय में प्राचार्य की कार्यशैली और उसके शिक्षकों और छात्रों के मनोबल तथा प्रेरणा पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करता है। शिक्षा एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होती है, और इसका सबसे बड़ा आधार विद्यालय होता है। किसी भी विद्यालय की नींव को मजबूत बनाने में प्राचार्य की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। विद्यालय मे प्राचार्य न केवल प्रशासनिक कार्यों का संचालन करते हैं, बल्कि वे विद्यालय के समग्र वातावरण को आकार देते हैं, और शिक्षकों व छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत होते हैं। शिक्षकों तथा छात्रों के प्रदर्शन पर स्कूल के माहौल का प्रभाव पड़ता है। शिक्षकों के प्रदर्शन को कई कारकों द्वारा बढ़ाया जा सकता हैं। प्राचार्य की नेतृत्व शैली का शिक्षकों के प्रदर्शन पर प्रत्यक्ष एवं प्रेरणा पर अधिक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इस शोध में प्राचार्य की नेतृत्व शैली, संवाद, प्रोत्साहन व मान्यता, समर्थन और विद्यालय के वातावरण के प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की गई है। यह शोध इन बिंदुओं के आधार पर यह समझने का प्रयास करेगा कि प्राचार्य की कार्यशैली शिक्षकों और छात्रों के प्रेरणा स्तर, मनोबल, और उनकी शैक्षणिक और व्यक्तिगत प्रगति को प्रभावित करती है। प्रमुख निष्कर्षों के आधार पर, यह शोध यह सुझाव देने का प्रयास करेगा कि एक सफल और प्रभावी नेतृत्व संवाद कौशल, समर्थन और संसाधन प्रदान करने की क्षमता, और विद्यालय के समग्र वातावरण को किस प्रकार सकारात्मक रूप से   सुधार सकते हैं। इस प्रकार, यह शोध यह साबित करने का प्रयास करेगा कि, प्राचार्य की प्रभावी कायशैली न केवल शैक्षणिक परिणामों को प्रभावित करती है, बल्कि पूरे विद्यालय के वातावरण को समृद्ध करती है।

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प्राचार्य की कार्यशैली, प्रेरणा, शिक्षक, छात्र.

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  1. बत्रा, पी. (2021) नेतृत्व शैली और शिक्षकों की प्रेरणा का विश्लेषण, शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबंधन, 32(1), 89-104.

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युवा किसी भी देश में सामाजिक बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाते हैं। संचार इस बदलाव में उपकरण की तरह कार्य करता है। वर्तमान में सोशल मीडिया ने पूरे वैश्विक परिदृश्य को प्रभावित किया है जिससे युवा संस्कृति एक उपसंस्कृति का निर्माण कर रहे हैं। वर्तमान शोध अध्ययन का उद्देश्य सोशल मीडिया से युवा संस्कृति में आए बदलाव का अध्ययन करना तथा साथ ही इस बदलाव से समाज की सकारात्मक और नकारात्मक लाभों का अध्ययन करना है। शोध प्रविधि हेतु द्वितीयक स्रोतों का प्रयोग किया गया है। परिणामस्वरूप सोशल मीडिया ने युवा संस्कृति को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित किया है परंतु युवा के जीवन शैली पर आए बदलाव में सकारात्मक पहलू उभरे हैं जिससे युवाओं को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिली है। युवा ही राष्ट्र के निर्माण में सकारात्मक कदम उठाते हैं।

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युवा संस्कृति, सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव, सोशल मीडिया.

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यह शोध पत्र भारत और बांगलादेश के बीच पिछले तीन दशकों में राजनीतिक संबंधों का अनुभवात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। भारत और बांगलादेश के संबंधों का इतिहास जटिल रहा है, जिसमें सहमति और विवाद दोनों ही प्रमुख तत्व रहे हैं। इस अध्ययन में सीमा विवाद, आर्थिक सहयोग, सुरक्षा चिंताएँ और कूटनीतिक पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। 1991 के बाद से, दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौतों और कूटनीतिक पहलुओं ने इन संबंधों को आकार दिया है, जिनमें सीमा विवादों का समाधान, जल साझीकरण समझौतों की परिपाटी और सुरक्षा सहयोग शामिल हैं उदाहरण के तौर पर, 2015 का भूमि सीमा समझौता और जल साझीकरण पर भारत-बांगलादेश के बीच कई संवादों ने सहयोग को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच आतंकवाद, सीमा सुरक्षा और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी समस्याओं के समाधान के लिए सुरक्षा सहयोग भी महत्वपूर्ण रहा है। क्षेत्रीय कूटनीति, विशेष रूप से ै।।त्ब् और ठप्डैज्म्ब् जैसे संगठनों के माध्यम से दोनों देशों के सहयोग में वृद्धि हुई है। यह शोध पत्र सरकारी रिपोर्टों, कूटनीतिक दस्तावेजों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए यह आंकलन करता है कि इन दो पड़ोसी देशों के बीच सहयोग और संघर्ष के बीच कौन से प्रमुख कारक प्रभाव डालते हैं, और यह संबंध कैसे विकसित हुए हैं।

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भारत-बांगलादेश संबंध, कूटनीति, सीमा विवाद, आर्थिक सहयोग, सुरक्षा, राजनीतिक संबंध.

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  1. मिश्रा, ए.के. (2017) भारत-बांग्लादेश संबंधः ऐतिहासिक और समकालीन दृष्टिकोण, ग्रंथालय पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली।

2. चौधरी, पी.एस. (2018) सुरक्षा और सीमा विवादः भारत-बांग्लादेश का अनुभव, सेंट्रल पब्लिशिंग हाउस, वाराणसी।
3. गुप्ता, मनीषा (2021) दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संगठनः भारत और बांग्लादेश की भूमिका, यूनिवर्सिटी प्रेस, इलाहाबाद।
4. भारत सरकार, विदेश मंत्रालय (2015) भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता रिपोर्ट, नई दिल्ली, भारत सरकार।
5. भारतीय वाणिज्य मंत्रालय (2022) भारत-बांग्लादेश व्यापार और आर्थिक सहयोग रिपोर्ट, नई दिल्ली, वाणिज्य मंत्रालय।
6. बांग्लादेश जल संसाधन मंत्रालय (2020). तीस्ता नदी जल विवादः भारत और बांग्लादेश के दृष्टिकोण, ढाकारू बांग्लादेश सरकार।
7. सेन, अनुपम (2021) भारत-बांग्लादेश राजनीतिक संबंधों पर चीन का प्रभाव, भारतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान जर्नल, 59(4), 23-34।
8. विश्व बैंक (2020) दक्षिण एशिया में सीमा विवाद और आर्थिक सहयोग पर रिपोर्ट, वर्ल्ड बैंक पब्लिकेशन।

OCTOBER TO DECEMBER
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संस्कृत साहित्य में अत्यंत विशद साहित्य हैं। पुरुषार्थ चतुष्ट्य का यथार्थ निदर्शन वैश्विक साहित्य को संस्कृत वांगमय की ही देन हैं। ऐसा कोई विषय नहीं जो वैज्ञानिक चिंतन सह देववाणी में सामदृत न हो। इसी क्रम में संस्कृत कवियों का प्रकृति वर्णन मनोज्ञ रूप में समीक्षकों को चिंतन आलाप की नई दृष्टि देता हैं। कवियों द्वारा प्रकृति का सांगोपांग निदर्शन काव्य जगत में उन्हें विशिष्ट स्थापित करता हैं। वे प्रकृति के विविध घटकों यथा - नदी, प्रस्तर, निर्झर, वन्यजीव, वनस्पति का यथार्थ समन्वित मनोज्ञ निदर्शन करते हैं। शोध्य विषय में नदियाँ का विशिष्ट वर्णन हुआ। वे साहित्य में अत्यंत द्योतक स्वरूप में समादृत हैं। वे आलंकारिक नायिका, मोक्षदायनी, पुण्य प्रदायिनी, शुभदा, मंगलदायनी, जीवनदायनी, मातृ स्वरूपा, पुण्य फल प्रदायनी इत्यादि स्वरूपों में लोकमंगल का पुण्य कर्म कर रही हैं। उनकी प्रसंग वर्णन में उपस्थित सादर स्वतः प्रार्थनीय बन पड़ती हैं। यदि प्रकरण वर्णन में उन्हें छोड़ दिया जाएँ तो समस्त प्रसंग वर्णन अधूरे बन पड़ेंगे। इसी से उनका महत्व स्वतः स्पष्ट हो जाता हैं। शोध्य विषय में अत्यंत द्योतक एवं पतितपावनी इत्यादि महनीय स्वरूपों में      समादृत गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, वेत्रवती, आकाशगंगा, सरस्वती एवं मंदाकिनी देव सरिताएं लोक मंगल का पुण्यकर्म कर रही हैं। वर्तमान भौगोलिक परिस्थितियों में इनकी पवित्रता, शुचिता का हृास हुआ हैं जो अत्यंत चिन्ता का विषय हैं। भारत जैसे महादेश में जहाँ नदियों को माता कहाँ जाता हैं वहाँ उनकी प्रदूषण युक्त दशा भारतीय मनीषा पर प्रश्नचिन्ह हैं। केवल यमुना के प्रसंग में प्रदूषण का स्तर मानव जीवन के लिए सबसे बडा अभिशाप हैं। केवल यमुना ही नही अपितु अन्य देव सरिताओं की भी यही स्थिति हैं। प्रदूषित नदियों का जल मानव जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा हैं। इस दिशा में अत्यधिक कार्य करने की आवश्यकता हैं।

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महाकवि बाणभट्ट, कादम्बरी, नदी, संस्कृत.

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  1. 233/पूर्वभागः - कैलास इव सवत्सोतस्विनोसोतोराशिः।

2. 248/पूर्वभागः - उत्सिञ्चन्सरित।
3. 252/पूर्वभागः -तदेनं तावदागृहीतकतिपयदूर्वा प्रवालकवलं कस्मिश्चित्सरसि शिलाप्रस्त्रवणे वा सरिदम्भसि वा स्नातपी- तोदकमप नीतश्रमं...........।
4. 265/पूर्वभागः - अन्तरान्तरा कैलासतरंगिणीतरंङ्गित सिकतिलतल भूमिभागैः।
5. 322/पूर्वभागः - यतौ हि निवारयसि प्रबलरजः प्रसरकलुषितानि.........।
6. 379/पूर्वभागः - चान्तर्निपत-न्तमाभरणकिरणालोकं संपिण्डितं, नदीवेणि काजलप्रवाहमिव वहन्तम् पश्यत्।
7. 433/पूर्वभागः - अत्र कुसुमधुलिसि-कतिले गिरिनदीकातटे भगवानर्चितः शूलपाणिः।
8. 437/पूर्वभागः - सर्वतो निसृन्ष्टदष्टि५ष्ट वान्क्व चिदुभयतट निखाततमाल-पल्लवकृतवनलेखाः कुमुदधूलिबालुकापुलिनमालिनी श्चन्दनरसेन प्रवर्त्यमाना।
9. 488/उत्तरभागः - क्रीडापर्वतके बालगिरिनदिकासु।
10. 539/उत्तरभागः - विस्तारयöिरिव सरित्पुलिनानि।
11. 565/उत्तरभागः - एकसन्तानावलीघा-रावर्षवेगवाहिन्या निर्झरिण्येव कुल्लया परिक्षिप्तम्।
12. 601/उत्तरभागः - अवसाने स्त्रोतस्विनीनां पात्रम्। अपि च दुस्तरैर्नदीपूरैरेव.........।
13. 604/उत्तरभागः - विशीर्यमाणपर्याणसमायोगेनोपर्युपरिवाहिनीतीरोत्तार संतानावान पृष्ठेना।
14. 614/उत्तरभागः -किं वा लीला सरित्पु-लिनैर्मलयानिलेन वा इति।
15. 647/उत्तरभागः -इद्दमफुल्लेन्दीवरजोवाससुरभिषु वासरेषु सलिलापसरण क्रमतरुङ्गयमाणसु सु कुमारतीरसैकतरेखासु।
16. 51/पूर्वभागः - सुरगजोन्मूलितविगलदाकाशगङ्गाकमलिनी शङ्कामुत्पादयन्तः।
17. 107/पूर्वभागः - हरजटाचन्द्रेणेव कोटिसारेण मैनाकेनेवाविदि-तपक्ष पातेन मंदाकिनी प्रवाहेणेव प्रकटितकन कपद्यराशिना।
18. 233/पूर्वभागः - ऐरावत इव मन्दाकिनी मृणालजालजटिलः।
19. 292/पूर्वभागः - अभ्रगङ्गास्त्रोतो जलप्रक्षालितेन।
20. 386/पूर्वभागः - आकाशकमलिनीमिव..............।
21. 410/पूर्वभागः - आहोस्विदनिलविकीर्यमाणसीकरधवलितभुवनाम्बरसिन्धुः कुतूहलाद्धरातलमवतीर्ण इति।
22. 443/पूर्वभागः - आकाशकमलिनीमिव स्वच्छाम्बरतलदृश्यमानमृणाल।
23. कुमारसम्भवं - 1/1।
24. भारत का बृहद भूगोल - पृ. 77।
25. पूर्वभाग विन्ध्यावटी वर्णन पृ. 43 - सरिता च कलशयोनिपरिपीतसागरमार्गानुगतयेव बद्धवेणिकया गोदावर्या परिगतमाश्रम पदमासीत्।
26. भारत का वृहद भूगोल - पृ. 79।
27. रामायण, 3.13.13।
28. वराह पुराण।
29. एपिगै्रफिया इण्डिका, जिल्द 8, पृ. 59-96।
30. बम्बई गजेेटियर, जिल्द 6, पृ. 517-518, 529-531 एवं 522-526।
31 नवभारत टाइम्स - 20 दिसम्बर 2018, 1.30 (मुम्बई उच्च न्यायालय)।
32. पूर्वभाग पृ. 56 - कम्पयन्निव तरून्भगीरथावतार्यमाणगङ्गाप्रवाहकलकलबहलो।।
33. पूर्वभाग पृ. 78 भगीरथ इवासकृद्दृष्टगंगावतारः।
34. पूर्वभाग वहीं - त्रिपुण्ड्रकेण तिर्यक्प्रवृŸात्रिपथगास्त्रोतस्त्रयेणहिमगिरिशिलातलेनेव ललाटफलकेनोपेतम्।।
35. पूर्वभाग पृ. 89 - उद्वमदमलगङ्गाप्रवाहमिव जह्नुम्।
36. पूर्वभाग पृ. 114 - प्रलयानलशिखाकलाप कपिलजटाभारभ्रान्तसुर सिन्धुरन्धकारातिः भगवान्।
37. पूर्वभाग पृ. 131 - हरमुकुटचन्द्रलेखेव गङ्गास्त्रोतसा......।
38. पूर्वभाग पृ. 191 - महातीर्थमिव।
39. पूर्वभाग पृ. 195 - अचलमध्यस्त्रवदगङ्गाप्रवाहमिव मेदिनीम्।।
40. पूर्वभाग पृ. 237 - तिर्यगावर्जितश्वेतगंगाप्रवाहेण।
41. पूर्वभाग पृ. 221 - गङ्गेव वसुजनन्यपि तरंगबुद्बुदचंचला।।
42. पूर्वभाग पृ. 241 - त्रिपथगाप्रवाह इव हरिचरणप्रभवः।
43. पूर्वभाग पृ. 291 - गङ्गाप्रवाहमुद्धासमानम्।
44. पूर्वभाग पृ. 319 - निदाधगंगाप्रवाहमिव क्रशिमानमागतम्।
45. पूर्वभाग पृ. 333 - वहता चन्दनरसनिर्झरनिकरानिव क्षरताऽमृतसागर पूरा-निवोन्दिरता श्वेतगङ्गाप्रवाह  सहस्त्राणीववमता........।
46. पूर्वभाग पृ. 441 - अशेषसरित्परिन्वारामिव भगवती गङ्गा हिमवतो गुहातलगताम्।।
47. पूर्वभाग पृ. 461 - स्वदेशभाषानिबद्धभागीरथी भक्तिस्त्रोतत्रनर्तकेन।
48. उŸार भाग पृ. 484 - गङ्गा प्रविश्य भुवि तन्मय तामुपेत्य स्फीताः समुद्रभितरा अपि यान्ति नद्यः।
49. द्विवेदी कै.ना., का. की. कृ भौ. प्रत्यः, पृ. 96।
50. भारत का बृहद भूगोल- पृ. 77।
51. आने वाले समय में मैली नहीं रहेंगी राम की गंगा-दैनिक भास्कर अभिगमन तिथि - 30 जून 2009।
52. पूर्वभाग पृ. 60 - अभिमुखमापतच्च तस्माद्वनान्तरादर्जुनभुजदंडसहस्त्र पिप्रकीर्णमित्र नर्मदाप्रवाहम्।
53. पूर्वभाग पृ. 115 - नर्मदाप्रवाह इव महावंशप्रभवः।
54 भारत का भूगोल- पृ. 97।
55. वृहद्ध भारत का भूगोल- पृ. 76।
56. वहीं पृ.76 
57. ीजजचेरूध्ध् ीपदकपण्प्दकपंूंजमतचवतजंसण्वतहए  ीजजचेरूध्ध् ूूूण्इींेांतण्बवउ.दमूे
58. चन्द्रापीड़ वर्णन पृ. 193 - महानदीप्रवाहमिव सर्वदुरितापहरम्।
59. भारत का वृहद भूगोल- पृ. 78।
60. पूर्वभाग पृ. 33 - अतिधवलजलधरच्छेदशुचिता दुकूलपटपल्लवेन तुहिन गिरिरिव गमनसरि-त्स्त्रोतसा कृतशिरोवे- ष्टनः।
61. पूर्वभाग पृ. 53 - मन्दाकिनी पुलिनादपरजलनिधितटमवतरति चन्द्रमसि।
62. पूर्वभाग पृ. 114 - मधुसूदनचरण इव सुरसरित्प्रवाहस्य प्रभवः सत्यस्य।
63. पूर्वभाग पृ. 268 - शुचिभिर्मन्दाकिनीपुण्डरीकैः।
64. पूर्वभाग पृ. 286 - तां च द्वितीयकुलाधिपतिर्हसो मन्दाकिनीमिव क्षीरसागरः प्रणयिनीमकरोत्।
65. पूर्वभाग पृ. 275 - अमरापगामिव नभसाऽवतीर्णाम्।
66. पूर्वभाग पृ. 300 - हरहसित सितस्त्रोतसं मन्दाकिनीमवततार।
67. द्वि. कै. ना. का. की. कृ.भौ. प्र. पृ. 128Law B. C. Geographical Aspect of Kalidas works p. 41.
68. लाहा बि.च, प्रा. भा.ए.भू. पृ. 53 ।
69. द्विवेदी कै. ना. का. की. कृ.भौ. प्र. पृ. 224।
70. पूर्वभाग चाण्डालकन्या वर्णन - उन्मदह्लिहलाकर्पणभयपलायितामिव कालिन्दीम्। (कथान्तर में एक बार मदिरा पीकर मतवाले बलराम ने जलक्रीडा के लिए यमुना को निमंत्रण दिया किन्तु उसका अनादर करती हुई वह उनके समीप नही आयी। इससे कुपित होकर उन्होंन उसे हल से अपनी ओर खींच लिया था।)
71. पूर्वभाग पृ. 51 - मदकलबलभद्रहलमुखाक्षेप विकीर्ण बहुस्त्रोतसमम्बर तले कलिन्दकन्यामिव दर्शयन्तः।
72. पूर्वभाग पृ. 61 - असितकुवलयश्यामलेन देहप्रभाप्रवाहेण कालिन्दीजलेनेव पूरितारण्यम्।
73. पूर्वभाग पृ. 409 - सीरायुधहलभय।
74. बंसल, सुरेश चन्द्र (2015-16) भारत का भूगोल, मीनाक्षी प्रकाशन, मेरठ, पृ. 94।
75. वहीं-(1)
76. वन पर्व महाभारत - 84, 85।
77. पूर्वभाग पृ. 470 - तत्र च सुधाधवलां कालिन्दीजलतरङ्गमय्येव मरकतसोपान मालया..........।
78. पूर्वभाग - कादम्बरी पृ. 470।
79. मेघदूत - पूर्वमेघ- 26।
80. वहीं (1)
81. पूर्वभाग पृ. 11 चाण्डालकन्या वर्णन -मज्जन्मालवविलासिनी कुचतटास्फालनजर्जरिन्तोर्मिमालया जलावगाहनागत-  जलकुञ्जरकुम्भसिन्दूरसंध्यायमानसलिल-योन्मदकलहंसकुलकोलाहल मुखरीकृतकूलया वेत्रवत्या परिगता विदिशाभिधाना नगरी राजधान्यासीत्।
82. 52 पूर्वमेघ।
83. सिरमौर जिला - विकिपीडिया, 2021-02-12, अभिगमन तिथिः 2022-03-30।
84. 9/3 - रघुवंशम्।
85. महाभारत- 3.81.115, वी. एस. वाकणकर और भी सी एन, पश्चुरी;द लॉस्ट सरस्वती रिवर, मैसूर 1994,     पृ. 45।
86. पूर्वभाग पृ. 291 - पुण्यपताकायमानसा सरस्वतीसभागमोत्कण्ठा कृत.........।
87. पूर्वभाग पृ. 107 - भगवतो महाकालस्य शिरसि सुरसरितमालोक्योप जातेर्ष्ययेव सततसमाबद्धतरङ्गभृकुटिलेखया खमिवक्षालयन्त्या सिप्रया परिक्षिप्ता।
88. उत्तरभागः पृ. 501 - सचक्रवाकचक्रवालाक्रान्तसरससुकुमार सैकतानि सिप्रातटान्य नुसरन्।
89. उत्तरभागः पृ. 502 - आत्मनाप्यूरुदध्नेन पयसोतीर्थ सिप्रां तस्मिन्नेव भगवतः कार्तिकेयस्या-यतनेततप्रतिवार्तां प्रतिपालयन्न तिष्ठत्।
90. उत्तरभागः - तरतरङ्गा निलस्पर्शमात्रोपलक्ष्य सलिलसंनिधि...........।
91. उत्तरभागः पृ. 565 - एकसन्तानावलीघा-रावर्षवेगवाहिन्या निर्झररिण्येव कुलयया परिक्षिप्तम्।
92. अयोध्या मथुरा माया- काशी कांची अवन्तिका । पुरी द्वारावती चौव सप्तैता मोक्षदायिकाः।
93. द्विवेदी कै. ना.,का. की. कृ.भौ. प्रत्यः पृ. 215।
94. चतुर्वेदी सी. रा., अभिधान कोश, पृ. 173।
95. मार्कण्डेय पुराण 57.19-20 Law B. C. Geographical Aspect of Kalidas works p. 38.
96. लाहा वि.च, वहीं, पृ. 549।

OCTOBER TO DECEMBER
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इस शोध पत्र का उद्देश्य नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आदिवासियों के सामाजिक आर्थिक स्थिति का अध्ययन करना है, अतः इस शोध पत्र में नक्सल प्रभावित क्षेत्र उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के शहाबगंज ब्लॉक को अपने डाटा संग्रहण हेतु चयन किया गया है। इसमें नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति को साक्षात्कार अनुसूची के माध्यम से जानने का प्रयास किया गया है। नक्सलवाद ने सबसे ज्यादा आदिवासी समुदाय के लोगों को प्रभावित किया है,जो नक्सलवादियो के हाथों का शिकार तो बने ही, साथ ही साथ पुलिस प्रशासन के भी हाथों का शिकार बने । कभी नक्सलवादियों के द्वारा उनको प्रताड़ित किया गया, ज़बरदस्ती उनको अपने समूह में शामिल होने के लिए विवश किया गया तो कभी उनकी बहन बेटियों के साथ गलत व्यवहार किया गया, वहीं दूसरी तरफ पुलिस के द्वारा भी उनके ऊपर नक्सलवादी होने का आरोप लगाकर झूठा मुकदमा चलाना, उनको जेलों में डाल देना, तो कभी फर्जी एनकाउंटर में मार दिया गया। जब इन क्षेत्रों की तरफ सरकार का ध्यान गया तो सरकार के द्वारा बहुत सारे विकासात्मक कार्य संपन्न किए गए,लेकिन इसके बावजूद भी आज भी उन इलाकों में आदिवासियों की जीवन में कुछ ज्यादा परिवर्तन देखने को नहीं मिला। कई वर्षों के अथक प्रयास के बावजूद आज भी वह इलाका मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह गया है। उन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी अपनी अभावग्रस्त जिंदगी जीने के लिए विवश है। उन लोगों के पास न तो अपनी संपत्ति है और न हीं अपना मकान है। सरकारी टूटी-फूटी भवनो पर कब्जा करके, तहसील की जमीन पर झोपड़ी लगाकर तो कहीं जंगल के जमीन पर झोपड़ी लगाकर अपना जीवन बसर करने के लिए मजबूर है।

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आदिवासी, समुदाय, नक्सलवाद, सामाजिक, परिसंपत्ति, शिक्षा.

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  1. दीक्षित, ब्रम्हदेव (1964) भारत के आदिवासी, जनता प्रेस, आगरा।

2. जैन, श्री चंद्र (1980) आदिवासियों के बीच, किताबघर, दिल्ली। 
3. सिंह, अमर बहादुर (2017) नक्सल समस्या और भारत, मनीष प्रकाशन, बी. एच. यू., वाराणसी।
4. गुप्ता, रमणिका (2014) आदिवासी साहित्य माला, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली।
5. हसनैन, नदीम (2003), जनजाति भारत, जवाहर पब्लिकेशन एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली।

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हिमालय की तराई में बसा बिहार का पश्चिमोत्तर जिला चम्पारण कृषि प्रधान क्षेत्र था और उसकी परिस्थिति कृषि के अनुकूल थी। भारत में कम्पनी राज कायम होने के बाद इस क्षेत्र में परम्परागत कृषि-व्यवस्था पर आधारित आर्थिक स्वरूप पूर्णतः बदल गया। इसका असर सामाजिक-राजनीतिक पर भी कमोवेश पड़ा। अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम (1775-83) के बाद यूरोपीय बाजारों में नील की बढ़ती मांग ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का ध्यान नील के उत्पादन की ओर आकृष्ट किया। उस समय नील का व्यापार सर्वाधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय था। नील की अप्रत्याशित मांग को पूरा करने के लिए बंगाल तथा बिहार में नील की कई कोठियों स्थापित की गई। 1782 से 1785 ई. के बीच तिरहुत के कलेक्टर प्रेकोस ग्रेड के प्रयास से बिहार में नील उद्योग काफी विकसित हुआ। उन्होंने यूरोपीय तरीके से नील के उत्पादन का प्रारंभ कराया। चम्पारण में कोठी का नील का प्रथम कारखाना 1801 ई. में राजपुर में, दूसरा इसी वर्ष सिरहों में, तीसरा 1804 ई० में बाराचकिया में, कालान्तर में पीपरा, तुरकौलिया और मोतिहारी आदि अनेक स्थानों पर कोठियों के साथ कारखाने स्थापित किए गए। उत्तर बिहार में यूरोपीय निलहों के द्वारा नील की खेती दो प्रकार से कराई जानी थी-जीरात तथा आसामीवार। अंग्रेज निलहे (कोठी वाले) अपने लाभ के लिए चम्पारण के किसानों एवं मजदूरों का काफी शोषण और दोहन करते थे। इस शोषण के खिलाफ जहाँ कहीं भी किसानों एवं मजदूरों के द्वारा प्रतिकार किया गया, वहीं विभिन्न मुकदमों में फंसाकर तंग-तबाह करते हुए उनका दमन किया गया। इसी के विरोध करने के कारण लोमराज सिंह चम्पारण के किसान आन्दोलन के अग्रणी नेता बन गए।1

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चम्पारण, निलहे, किसान आंदोलन, बिहार हार्सपावर, टिनेंसी एक्ट, राष्ट्रीय नेतृत्व.

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  1. कुमार, अजीत (2001) ‘‘बिहार में अंग्रेजी राज और स्वतंत्रता आन्दोलन’’, उषा प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 97-98।

2. चौधरी, हरिश्चन्द्र (2016) ‘‘चम्पारण का किसान आन्दोलन और गाँधी’’, प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली, पृ. 155।
3 पूर्वोक्त, पृ. 156।
4. पाण्डेय, ओम प्रकाश (2012) ‘‘महात्मा गाँधी का चम्पारण सत्याग्रह’’ भारती प्रकाशन, वाराणसी, पृ. 155।
5. चौधरी, वी.सी. राय (1960) ‘‘बिहार डिस्ट्रीक्ट गजेटियर चम्पारण’’ सेक्रेटारिएट प्रेस, बिहार (पटना), पृ. 157।
6. प्रसाद, राजेन्द्र (1949) ‘‘महात्मा गाँधी एण्ड बिहार’’ ब्रिटिश इंडिया प्रेस, बॉम्बे, पृ. 14।
7. प्रसाद, राजेन्द्र (1928) ‘‘सत्याग्रह इन चम्पारण’’ एस. गणेशन पब्लिशर्स, मद्रास, पृ. 121।
8. चौधरी, हरिश्चन्द्र (2016) ‘‘चम्पारण का किसान आन्दोलन और गाँधी’’ प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली, पृ. 156
9. पूर्वोक्त, पृ. 160-161।
10. पूर्वोक्त, पृ. 163।

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अनेक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन हुए लेकिन इतिहास के पन्नों पर सविनय अवज्ञा आंदोलन एक ऐसा अहिंसात्मक सत्याग्रह था जिसने भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद को हिलाकर रख दिया। यह अमीर और गरीब के लिए समान महत्त्व का था। 12 मार्च, 1930 ई. को गाँधीजी ने अपने 79 समर्थको के साथ साबरमती स्थित अपने आश्रम से 240 किमी दूर दाण्डी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिनों बाद 6 अप्रैल 1930 ई. को दाण्डी पहुँचकर गाँधीजी ने नमक कानून तोड़ा। इसकी लहर पूरे देश में तेजी से फैल गयी। बिहार के किसानों इसे एक जन आंदोलन में परिगत कर दिया, जिसकी अनुगूंज शहरी ही नहीं अपितु देहाती क्षेत्रों में भी सुनवाई पड़ी।

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नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा, शिविर, आबकारी, स्वयंसेवक, वीहपुर, नसहभागिता.

Read Reference

  1. शुक्ल, रामलखन (2006) ‘‘आधुनिक भारत का इतिहास’’, हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, पृ. 625।

2. पूर्वोक्त, पृ. 626।
3. तेन्दुलकर, डी.जी. (2016) ‘‘महात्मा’’ द पब्लिकेशन डिवीजन, दिल्ली, वाल्यूम-01, खंड-3, पृ. 31।
4. द सर्चलाईट, 8-11 अप्रैल, 1930।
5. पूर्वोक्त, 1930।
6. प्रांतीय कांग्रेस कमिटी की सप्ताहिक रिपोर्ट, 1930।
7. गाँधी, महात्माः ‘यंग इंडिया’, 15 मई, 1930।
8. मई के आरंभ में गया जिला और औरंगाबाद थानान्तर्गत करमा गाँव में नमक बनाया गया था। 
9. इस काम के सिलसिले में राजेन्द्र बाबू और प्रोफेसर अब्दुल बारी मई के अंत में भभुआ और सासाराम गए. पटना आयुक्त का अभिलेख।
10. गाँधी, महात्मा, ‘यंग इंडिया’, 10 अप्रैल 1930।
11. सिंह, अर्जुन प्रसाद (1930) ‘।वीहपुर सत्याग्रह’, रामगति सिंह, ए फ्यू पेजेज ऑफ माई डायरी।
12. दत्त, के. के. (1974) ‘‘बिहार में स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास’’, बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी, पटना, खंड-2, पृ. 96।
13. पटना आयुक्त रिपोर्ट, 26 मई, 1930।

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संथाली समाज में लोकसंगीत का बहुत अधिक महत्व है और संथाल समाज से गहरा संबंध है क्योंकि संथाल संगीत और नृत्य के बड़े प्रेमी होते हैं। संथाली लोकसंगीत का निर्माण युग और समाज के ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर ही हुआ है। इतिहास संबंधी प्राचीन सामग्री लोकसंगीत में मिलता है। लोकसंगीत की सहायता से इतिहास के तात्कालिक स्थिती के दर्शन होते हैं। अतः संथाली लोकसंगीत अनेक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है और कोई भी लोकसंगीत बिना वाद्ययंत्रो के अधुरा है अतः संथालो के जीवन में वाद्ययंत्रों का महत्व भी बहुत बढ़ जाता है। इसके साथ ही जब लोकसंगीत का निर्माण वाद्ययंत्रों की सहायता से किया जाता है तो वह लम्बे समय तक स्मरणशील रहने के कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानतरित होते रहते है। बंसी, ढोल, नगाड़ा, केन्दरा इत्यादि इनके प्रमुख वाधयंत्र हैं। जन्म हो या विवाह, पर्व त्योहार हो या कोई अन्य उत्सव। संथाल लोकसंगीत में विभोर हो जाते हैं। इनके लोकसंगीत मधुर व कर्णप्रिय होते हैं। नगाड़े के थाप पर इनके लोक नृत्य संगीत मधुरिमा बिखेरते हैं।
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संथाली, लोगगीत, वाद्ययंत्र, संगीत.

Read Reference
1. प्रसाद, ओंकार (1985) संथाल म्यूजिक, इंटर-इंडिया पब्लिकेशन, न्यू दिल्ली, पृ. 108-111।
2. हेम्ब्रम, रतन (2005) संथाली लोकगीतों में साहित्य और संस्कृति, माधा प्रकाशन, जमशेदपुर,  पृ. 202।
3. प्रसाद, राम रतन (2014) आदिवासी लोकगीतों की संस्कृति, अनंत प्रकाशन, दिल्ली, पृ-97।
4. चौधरी, बी.ए. (1987) दा संथाल्स रिलिजन एण्ड रिचुवल्स, आशीष पब्लिशिंग हाउस, न्यू दिल्ली।
5. रणेन्द्र (2008) झारखण्ड इनसाइक्लोपीडिया, खंड-प्ट, मांदर की धमक और गुलईची की खुशबू, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, 2008
6. शर्मा, राघव शरण एवं राय, विक्रमादित्य (2014) झारखंड दर्पण, मनोहर, नयी दिल्ली।
7. शुक्ला, हीरालाल (2012) आदिवासी संस्कृति, संगीत एवं नृत्य, बी. आर. रैहथमस, दिल्ली।
8. गौंझू, गिरिधारी राम (2015) झारखंड का लोकसंगीत, गिरिराज झारखंड झरोखा, राँची।
9. वीरोत्तम, बी (2013) झारखंडः इतिहास एवं संस्कृति, बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी, पटना, पृ. 474-475।

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संस्कृत वांग्मय वैश्विक साहित्य में सर्वाधिक प्राचीनतम हैं। इसमें संस्कृत साहित्य वैदिक और लौकिक से द्विधा विभक्त हैं। लौकिक संस्कृत साहित्य भी दृश्य और श्रव्य से द्विधा हैं। दृश्य काव्य में नाट्य साहित्य अत्यंत रूचिप्रद और आनन्दजनक एवं शोक अमंगल का शमन करने वाला कहा गया हैं। महाकवि भास को प्रथम नाटककार तो महाकवि कालिदास को सर्वश्रेष्ठ नाट्यकार स्वीकार किया गया हैं। ‘‘भासो हासः। कवि कालिदासः विलासः।‘‘ महाकवि भास से अद्याावधि पर्यनत समस्त नाट्यकारों ने संस्कृत रूपकों में नाट्य के समस्त विषयों का सांगोंपांग निदर्शन किया हैं। संस्कृत रूपकों के विषय यथा - प्रेम-प्रसंग, विवाह, प्रकृति चित्रण, नायक-नायिका विलास, य़ुद्ध, द्यूतक्रीडा, राजनीति, कूटनीति, अमात्य, राज्यांग इत्यादि का यथार्थ समन्वित विशिष्ट वर्णन किया हैं। प्रस्तुत शोध्य विषय में रामायण आश्रित महाकवि भवभूति प्रणीत महावीरचरितम् रूपक में प्रसंग सह अमात्य विषयक राजनीतिक वर्णन अप्राप्य हैं किन्तु राक्षसराज रावण के प्रधान अमात्य ‘माल्यवान्‘ एवं महाराज दशरथ के प्रधान अमात्य सुमन्त्र का पृथक स्वरूप निदर्शन प्राप्त होता हैं। लक्षण ग्रथों में प्राप्त अमात्य के गुणधर्मों को चरितार्थ करते हुए अमात्य माल्यवान राक्षसराज रावण के उत्कर्ष को सदैव सज्ज रहते हैं। अमात्य का यही परम कर्त्तव्य है कि सभी परिस्थितियों मे ंनायक/राजा का छायेव रक्षण, आज्ञापालन कर राजा एवं राज्य का मंगल करें। उच्च शिक्षित व श्रेष्ठ गुण सम्पन्न अमात्य माल्यवान के कौशल व ज्ञान से लोक के मंत्री देश के प्रत्येक क्षेत्र में आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक व न्यायिक उन्नति कर सकते हैं जिसकी आवश्यकता वर्तमान भारतीय समाज को हैं। शोध विषय में समादृत अमात्य माल्यवान के समस्त सम्पादित कर्त्तव्य कर्मों की जितनी प्रशंसा की जाएं उतनी कम ही होंगी। वर्तमान के मंत्रियों हेतु वे एक आदर्श चरित्र है, जिनके कर्मों एवं आचरण से शिक्षा ग्रहण कर लोक के मंत्री राष्ट्र का हित चिन्तन कर सकते हैं। 

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महाकवि भवभूति, अमात्य, राष्ट्र.

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  1. द्वितीयोऽङ्क पृ. 58 प्रारम्भिकः (ततः प्रविशत्युपविष्टः सचिन्तो माल्यवान्)

2. 6/2 - उत्पŸयैव हि राघवः किमपि तद्भूतं जगत्यद्भुतं 
मर्त्यत्वेन किमस्य यस्य चरितं देवासुर्रेर्गीयते।
7/2 - निसर्गेण स धर्मस्य गोप्ता धर्मदु्रहो वयम्।
अर्थ्याे विरोधः शक्तेन जातो नः प्रतियोगिना।।
3. 8/2 - तन्नामास्तु दुरासदेन तपसा दीप्तस्य दीप्तश्रियः
पौलस्त्यस्य जगत्पतेरपि कथं जाता हृदि न्यूनता।।
4. 9/2 - उत्कर्शं च परस्य मानयशसोर्विस्त्रंसनं चात्मनः
स्त्रीरत्नं च जगत्पतिर्दषमुखो दृप्तः कथं मृश्यते।।
5. 10/2 - ब्राह्मणातिक्रमत्यागो भवतामेव भूतये।
जामदग्न्यष्च वो मित्रमन्यथा दुर्मनायते।।
6. 11/2 - व्यपदिषति नः षैवप्रीत्या कथंचिदनास्थया 
प्रभुरिव पुनः कार्ये कार्ये भवत्यतिकर्कषः।।
7. 12/2 - यदि प्रपद्येत धनुःप्रमाथौ षिष्यस्य शंभोर्न तितिक्षते सः।
आयोधने चेदुभयोनिघासः संरम्भयोगादति हि प्रियं नः।।
8. द्वितीयोऽङ्क पृ. 68 - तदैव रावणपराक्रान्तिनिभृततूर्या देवाः प्रसह्यैनमधिकुर्युः।
9. 13/2 - तस्मिन्नप्युपनीतयुक्तदमनः स्यादुज्झितास्मöयः
सामर्थ्ये सति धर्मसौम्यचरितो विश्वस्य रामः पतिः।। 
10. द्वितीयोऽङ्क पृ. 69 माल्यवान् - परषुरामोत्तेजनं कर्तव्यमिति।
11. चतुर्थाेङ्क पृ. 143 माल्यवान - दृष्टस्त्वया दिवौकसामेकायनीभावः यदिन्द्रादयः स्वतोे बन्दित्वमुपागताः।
12. वहीं पृ. 143 माल्यवान - या सा राज्ञा दशरथेन प्राक्प्रतिश्रुतवरद्वया राज्ञो भरत माता कैकेयी, तया मन्थरा नाम, परिचारिका दशरथस्थ वार्ताहारिणी मिथिलामयोध्यातः प्रेशिता मिथिलोपकण्ठे वर्तत इति संप्रत्येव मम निवेदितं चारैः। तस्यास्त्वया षरीरमाविष्यैवमेवं च कर्तव्यम्।
13. वहीं पृ. 144-145 माल्यवान् - ते हि शक्ताः लुप्तप्रभुषक्तेरुत्साहषक्तिं छद्मनातिसन्धातुम्। अनिवर्तनीयष्च
रावणस्य सीतास्वीकारग्रहः। स चौवमीषत्करः सप्रयोजनश्चेति।
14. 2/4 - वीरोऽस्त्रपारगष्चिन्त्यो यथा रामस्तथैव सः।
छद्मदण्डप्रयोगस्तु यथैकस्मिंस्तथा द्वयोः।।
15. वहीं पृ. 147 3/4,4/4 माल्यवान् - पाल्यं तस्य जगद्वयं तु जगतो नित्यं हठादेषिनः-
3/4 - सामैत्रं सति कोद्दगप्रियकृता शश्वद्विरुद्धात्मना।
कानर्थान् रघुनन्दनो मृगयते देवैः पतिर्याे वृत-
स्तस्माद्दानमपीह नास्ति न भिदा तस्यैव नः साधनम्।।
4/4 - दण्डोऽप्यभ्यधिके शत्रौ न प्रकाषः प्रषस्यते।
तूश्णींदण्डस्तु कर्तव्यस्तस्य चायमुपक्रमः।।
16. 6/4 - उŸिाष्ठेत वधाय नः परिभवप्रेद्धेन चेन्मन्युना नेष्टे तत्प्रसरं निरोद्धुमुदधिस्तिग्मांशुवीर्याे हि सः।
किन्तु प्राक्प्रतिपन्नरावणसुहृöावेन भीमौजसा षत्रुवज्रवरात्मजेन हरिणा घोरेण घानिश्यते।।
17. 7/4 - क्षितेरानन्तर्यादपकृदपकृत्यश्च सततं द्विधा रामः शत्रुः प्रकृतिनियतः क्षत्रिय इति।
तृतीये मे नप्ता रजनिचरनाथस्य सहजो रिपुः प्रत्यासŸोरहिरिव भयं नो जनयति।। 
18. चतुर्थाेङ्क पृ. 150-151 खरदूशणप्रभृतयस्तु संघवृŸायो राजानमुपतिश्ठनते, यतस्तेन वत्सेनेव राजानमर्थान्दुहन्ति।
उपजापिताष्च प्रत्युपजपन्ति प्रकृतयः। तदिदमन्तर्भेदजर्जरं राजकुलमभियुक्तमात्रं रामेण भिद्यते।........
19. वहीं पृ. 151 तत्र विभीशणावग्रहस्य प्रतिविधानं कर्तव्यम्। स तु प्रकाषदण्डस्तूष्णींदण्डः संरोधनमपसारणं वा स्यात्।
20. वहीं पृ. 153 माल्यवान् - ईदृशः खलु कुलपुत्रकाचारः।
21. वहीं पृ. 153 माल्यवान् - प्राज्ञः खल्वसाववेक्षितविकारः स्वयमेवापसर्पेत्, उपेक्षणीयस्तवमस्माभिः। न चौवं मन्तव्यमौरसाöयमिति। यत्रू-
9/4 - बाल्यात्प्रभृत्येव निरूढसख्यं सुग्रीवमेष ध्रुवमाश्रयेत्।
बालिप्रसादीकृतभूमिभागे कुमारभुक्तौ स्थितमृमूष्यके।।
22. 10/4 माल्यवान् - यो बालिनं हन्ति हता बयं च तेन धु्रवं तत्र तु सर्वनाशे।
एकः सजीव्यात्कुलतन्तुरस्मै रामः श्रियं धर्ममयो ददातु।।
23. चतुर्थाेङ्क पृ. 155 माल्यवान् - हा हा वत्सविभीशण त्वमपि मे कार्येण हेयः स्थितः।12/4
24. 1/6 - यस्य विदेहराजतनयायाच्ञाङ्कुरोऽपि स्वसुर्यात्रा तौ परिवञ्चितुं किसलयं मारीचमायाविधिः।
षाखाजालमयोनिजापहरणं तस्य स्ुुटं कोरकाः कीशाधीषवघोऽनुजस्य गमनं सख्यं तयोस्तेन च।।
25. षष्ठोऽङ्क प्रारम्भिकः 1/6 के बाद का संवाद - अयमचिरादेव फलोन्मुखोऽपि भवितेति मन्ये। यतो
वृद्धबुद्धिरनागतं पष्यति। (निःष्वस्य) अहो वामता भागधेयानाम्!
26. 2/6- व्यसनेऽस्मिन मन्त्रषक्त्या यद्यत्प्रतिकृतं मया
अलसस्य यथा कार्यं तत्तत्प्रच्युतमात्मना।। (सानुतापम्) - साचिव्यं नाम महते संतापाय।
27. 3/6 - यत्किंचिद् दुर्मदाः स्वैरमाद्रियन्ते निरर्गलम्।
तत्र तत्र प्रतीकारष्चिन्त्यो वक्रे विधावपि।।
28. षष्ठोऽङ्क पृ. 247 माल्यवान् - (सखेदम्) किं नाम दग्धं नगरम्। हतोऽक्षः कुमारः। अपि को नामायं कपिः स्यात्। (सस्मरणम्) उक्तं च चारकेण हनूमानवाचीं दिशामिति। अहह!
5/6 - तूलदाहं पुरं लङ्का दहतैव हनूमता।
अपि लङ्कापतेस्तीव्रः प्रतापो निरवाप्यत।।
29. वहीं पंृ. 248 त्रिजटा - कनिश्ठमातामह! पुरत एव कोऽपि मर्कटपरमाणुस्तया समं मन्त्रयमाणो दृष्टः।...
माल्यवान् - किं न पर्याप्तं। (साशङ्कम्) एतेनैव कपिपरमाणुना तावदेवमनुष्ठितम्। एवं परःशताः कोट्यः
श्रूयन्ते सम्प्रति सुग्रीवभुजबलपरिपालिते कपिसर्गे। 
30. 6/6 माल्यवान् - वत्से! युुज्यतेऽपि। 
पतिव्रतामयं ज्योतिः षान्तं दीपं च घुश्यते। 
(विमृष्य) अथवा। किं नाम सा वराकी।
दुश्कर्मणां परीपाकः स्वयमेवैष दीप्यते।।
31. 7/6 दुर्गाेऽयं चित्रकूटस्तदुपरी नगरं सप्तधातुप्रकारप्राकारं दुस्तरैषा निरवधिपरिखाप्यब्धिरभ्रङ्कषोर्मिः।
दोर्दण्डा एव दृष्यद्रिपुदलनमहासत्रदीक्षाः प्रतीक्ष्या रक्षोनाथस्य किं नो विधिरिह वचनेऽप्यक्षमो दुविपाकः।। 
32. वहीं पृ. 251 माल्यवान् - विमृष्यमाने तु दिश्ट्या कनिश्ठवत्स एव दूरदर्षी यस्याविमृष्यकारितापि षुभोदर्का.......
33. 8/6 न कुत्राप्यन्यत्र प्रबलभवितव्यादयमहो विषुद्धेवोत्पŸया पतति न च तत्पापधिषणा।
यथा स्वैरं भ्राम्यन्निरवधि वियत्यस्तशिखरं व्युदस्यायं भास्वांस्तदनुगतघस्त्रार्चिरपि सा।।
34. षष्ठोऽङ्क पृ.सं. 253 माल्यवान् - वत्से ! स्त्रीत्वेऽपि वरं सा खलु देवी मन्दोदरी यन्मतिप्रतिबोधनायोŸााम्यति। न पुनर्देवो यः प्रतिबोधितोऽद्यापि न बुध्यते।
35. बालरामायण 2/6
36. अनर्घराघवम् 
37. द्वितीयोऽङ्क पृ. 104 सुमन्त्रः- भगवन्तौ वशिष्ठविश्वामित्रौ भवतः सभार्गवानाह्नयतः।

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भारतीय साहित्य और समाज दोनों ही मूल्य आधारित हैं। जन्म देने वाले माता-पिता देव तुल्य हैं। इन माता-पिता के संस्कार स्वरूप ही व्यक्ति अपने जीवन की नींव का निर्माण करता है। हमारी उन्नति के स्वर्ण कलश की आभा का प्रमुख स्रोत यही वृद्धजन हैं। संस्कृत साहित्य में कहा गया है कि अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः, चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम्। अर्थात् वृद्धजनों की प्रतिदिन सेवा व सत्कार करने वाले व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल में बढ़ोत्तरी होती है। लेकिन निज बुद्धि को ही सर्वश्रेष्ठ मानने वाली आज की यह पीढ़ी इसका महत्व कहां जानती है। नई पीढ़ी तो आधुनिकता के नाम पर अपने बड़े बुजुर्गों से दूर होती जा रही है। समकालीन हिंदी उपन्यास में साहित्यकारों ने अपने अपने समय और समाज को अपने उपन्यासों की कथावस्तु का आधार बनाया है। हिंदी साहित्य में इक्कीसवीं सदी में विभिन्न विमर्शों की दस्तक हुई जिनमें स्त्री, दलित, किन्नर, बाल, विकलांग, वृद्ध तथा पर्यावरण विमर्श आदि प्रमुखता से सुनाई दे रहे हैं। इन्हीं विमर्शों में से एक वृद्धविमर्श भी है। प्रस्तुत शोध पत्र में काशीनाथ सिंह कृत ‘रेहन पर रग्घू‘ उपन्यास का अध्ययन वृद्धविमर्श के परिप्रेक्ष्य में किया गया है। अपने जीवन की युवास्था से लेकर वृद्धावस्था तक जिस रघुनाथ ने अपना सारा जीवन अपने परिवार को एक सुखमय भविष्य देने के लिए खपा दिया उसी रघुनाथ के लिए रिटायर होने के बाद अपने बच्चों के जीवन में कोई स्थान नहीं है। स्वयं को आधुनिक और प्रगतिशील दिखाने की अंधी दौड़ में हमारा युवा समाज किस तरह से परंपरा से प्राप्त पारिवारिक, सामाजिक, और नैतिक मूल्यों के पतन की ओर अग्रसर है, इसकी महागाथा है ‘रेहन पर रग्घू‘।

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वृद्धविमर्श, भूमंडलीकरण, बाजारवाद, आधुनिकता.

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  1. बिहारी राकेश (2013) केंद्र में कहानी, पुस्तकनामा प्रकाशन, गाजियाबाद, पृ. 18। 

2. प्रसाद चंद्रमौलेश्वर (2016) वृद्धावस्था विमर्श, परिलेख प्रकाशन, नजीबाबाद, पृ. 10।
3. सिंह काशीनाथ (2008) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 52।
4. वही पृ. 18।
5. वही पृ. 50।
6. वही पृ. 56।
7. वही पृ. 89।
8. वही पृ. 104।
9. वही पृ. 125।
10. वही पृ. 149।
11. वही पृ. 153।

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A 2018 study by the National Crime Records Bureau (NCRB) found that stalking incidents occur in India at least once every fifty-five minutes. Offenders have a great potential to misuse cyber technology, even while this widespread cyber development opens up new avenues for knowledge acquisition. As the number of internet users rises, stalking has also become more common in the online community, where it is now referred to as “cyberstalking,” “e-stalking,” or “online stalking.” In addition, a number of software programs, such as spyware and stalk ware, are now readily accessible and can be used to misuse technology and carry out covert monitoring without a person’s knowledge or agreement. It is noteworthy that a recent study discovered that the crime of cyberstalking increased significantly during the 2020 COVID-19 shutdown period. 

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Data Protection, Cyberbullying, Online Harassment, Cyberstalking, United Kingdom, India.

Read Reference

  1. Joel Best, Stalking, Encyclopaedia Britannica, June 6, 2016 available at: www.britannica.com/topic/stalking crime/cyberstalking accessed, Accessed on  13/08/2024.

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5. International Covenant on Civil and Political Rights, G. A. Res. 2200A (XXI) (December 16, 1966), Art. 17.
6. Justice K. S. Puttaswamy (Retd.) & Ors v. Union of India & Ors. (2017) 10 SCC 1; AIR 2017 SC 4161.
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15. Protection from Harassment Act, 1997 (c 40) § 2A and 4A (U.K.).
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19. Communications Act, 2003 (c 21) § 127 (U.K.).
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22. The Protection from Harassment Act 1997 (c 40) § 2A (4) (U.K.).
23. In 1890, Louis Brandeis, and his law partner Samuel Warren (1928) wrote the most famous article on the right to privacy in American history. Warren and his young wife, Mabel, were upset about gossip items in the Boston society press including stories about Mrs. Warren’s friendship with President Grover Cleveland’s young bride  and this aristocratic distaste for invasions of what Warren called their “social privacy” led him to seek Brandeis’s help in proposing a new legal remedy. https://www.washingtonpost.com/opinions/clash-between-free-speech-and-privacyin-the-digital-world/2015/03/20/bee390e6-c0f8-11e4-ad5c-3b8ce89f1b89_story.html?utm_term=.b26b05f931c5, 24 277 U.S. 438, Accessed on 05/09/2024.

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वर्तमान समय में आतंकवाद भारत में एक भयावह रूप धारण कर चुका हैै। स्वतंत्र भारत मंे जो आतंकवादी व्यवहार पनप रहा है वह राष्ट्र में व्याप्त असमानताओं का परिणाम है। भारत में आतंकवाद दुनिया के किसी भी राष्ट्र से अधिक है। पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद व बांग्लादेश के हरकत-उल- जहाद-ए -इस्लामी बांग्लादेश जैसे आतंकवादी समूहों से ’लगातार और गंभीर बाहरी खतरों के अलावा भारत घरेलू आतंकवादी समूहों के भी हमले झेल रहा है। आतंकवाद एक ऐसी समस्या है जिसके महत्वपूर्ण अंर्तराष्ट्रीय पक्ष हैं। आतंकवाद आंतरिक या बाह्य शक्तियों द्वारा प्रेरित या संचालित होता है। एक देश द्वारा दूसरे देश के आतंककारियों को प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता, हथियार तथा अन्य तरीकों से समर्थन देने की प्रवृत्ति व घटनाएं वर्तमान समय में अधिक पाई जाती हैं इसीलिए इस समस्या का समाधान केवल आंतरिक कानून और सुरक्षा साधनों के द्वारा संभव नहीं है। अतः इस समस्या को अंर्तराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में समझने की बहुत आवश्यकता है। आज आतंकवाद लगभग सभी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक एवं राजनयिक चुनौती बन गया है। 

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भारतीय कानून, राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, आतंकवाद निरोधक कानून, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980.

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महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित ‘‘नई तालीम‘‘ (नैतिक शिक्षा) एक समग्र शिक्षा दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों का सर्वांगीण विकास करना था। गांधी जी का मानना था कि शिक्षा केवल साक्षरता प्रदान करने का माध्यम नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, कौशल विकास, आत्मनिर्भरता और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने का साधन भी है। नई तालीम का दृष्टिकोण पारंपरिक शिक्षा पद्धति से भिन्न है, जो मुख्य रूप से पुस्तकों और परीक्षाओं पर आधारित होती है। गांधी जी का जोर शिक्षा को जीवन के साथ जोड़ने पर था, ताकि विद्यार्थी न केवल सैद्धांतिक ज्ञान अर्जित करें, बल्कि व्यवहारिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी प्रबल बनें।

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बुनियादी शिक्षा, आत्मनिर्भरता, औपनिवेशिक, अनुयायी, जागरूकता,

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This study explores the intricate tapestry of religion, culture, and tradition among the Gond tribes in Chhattisgarh, offering a comprehensive socio-cultural analysis. The Gond tribes, one of the largest indigenous communities in India, possess a rich cultural heritage deeply rooted in their unique religious beliefs, traditional practices, and vibrant cultural expressions. This research delves into the various aspects of Gond life, including their animistic religious practices, rituals, and festivals, which are integral to their cultural identity. By examining the interplay between their religious beliefs and everyday life, the study highlights how these elements contribute to social cohesion and community solidarity. Additionally, the research investigates the impact of modernization and external influences on the preservation and transformation of Gond traditions. Through ethnographic methods, including participant observation and interviews, the study captures the lived experiences of the Gond people, providing insights into their worldview and cultural resilience. This socio-cultural study aims to contribute to a deeper understanding of the Gond tribes, emphasizing the importance of preserving their cultural heritage in the face of contemporary challenges.

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Gond Tribes, Religion, Animistic Practices, Culture, Tradition, Rituals.

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  1. Chauhan, M. (2017) “Impact of Urbanization on Gond Tribal Settlements: A Study from Raigarh District, Chhattisgarh.” Urban Studies Quarterly, vol. 43, no. 4, p. 223-236.

2. Das, P. (2017) “Impact of Government Policies on Gond Tribes: A Study from Surguja District, Chhattisgarh.” Economic and Political Weekly, vol. 52, no. 26-27, p. 112-125.
3. Kujur, J. (2017) “Religious Practices and Social Change among the Gond Tribe in Chhattisgarh.” Journal of Tribal Intellectual Collective India, vol. 1, no. 1, p. 45-56.
4. Mahapatra, A. (2017) “Social Structure and Kinship System among the Gonds: A Case Study from Chhattisgarh.” Indian Journal of Social Anthropology, vol. 51, no. 3, p. 211-225.
5. Majumdar, A. (2018) “The Gonds of Chhattisgarh: A Study of Cultural Continuity and Change.” Indian Anthropologist, vol. 48, no. 2, p. 165-178.
6. Markandey, K. (2019) “Cultural Heritage and Resilience: A Case Study of Gond Tribes in Chhattisgarh.” International Journal of Indigenous Studies, vol. 5, no. 2, p. 78-91.
7. Mishra, S. (2019) “Adaptation and Change in Gond Music and Dance: A Study from Dantewada District, Chhattisgarh.” Journal of Folklore Research, vol. 37, no. 2, p. 89-102.
8. Nayak, S. (2018) “The Role of Women in Gond Society: A Study from Jagdalpur, Chhattisgarh.” Women’s Studies International Forum, vol. 72, p. 45-58.
9. Patel, N. (2016) “Folklore and Oral Traditions among the Gond Tribes: A Study from Bastar, Chhattisgarh.” International Journal of Oral History, vol. 25, no. 1, p. 34-47.
10. Reddy, A. (2018) “Education and Social Change among the Gond Tribes: A Case Study of Kanker District, Chhattisgarh.” Journal of Educational Sociology, vol. 42, no.3, p. 167-180.
11. Sahu, P. (2019) “Rituals and Festivals among the Gond Tribes: A Study from Bastar, Chhattisgarh.” Tribal Tribune, vol. 13, no. 2, p. 56-67.
12. Sharma, D. (2019) “Healthcare Practices among the Gonds: A Study from Narayanpur District, Chhattisgarh.” Journal of Health Studies, vol. 15, no. 2, p. 78-91.
13. Singh, A. K. (2016) “Community Initiatives for Cultural Preservation among the Gonds: A Case Study from Sukma District, Chhattisgarh.” Community Development Journal,        vol. 28, no. 1, p. 56-68.
14. Singh, R. K. (2020) “Impact of Urbanization on Gond Culture and Society: A Case Study of Raipur District, Chhattisgarh.” Journal of Tribal and Indigenous Studies, vol. 6, no. 1,     p. 112-125.
15. Thakur, S. (2016) “Gond Tribal Art and Its Socio-Cultural Significance.” Journal of Tribal and Folk Studies, vol. 4, no. 1, p. 23-36.

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भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान बहुत है। पहले कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का रीढ़ कहा जाता था, परन्तु समय के साथ अन्य सेवा क्षेत्रों में विस्तार होने के कारण धीरे-धीरे कृषि क्षेत्र की भागीदारी कम होती जा रही है। अगर हम भारत मे ग्रामीण महिलाओं की बात करे, तो यह देखा गया गया है कि कृषि के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। कृषि क्षेत्र में कुछ ऐसे कार्य है जो केवल अधिकांश रुप से महिलाएं ही करती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं कृषि में विकास कार्यों को आगे ले जाने में हमारी ग्रामीण महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। वह कृषि में स्थाई विकास के लिए हर तरह के उत्थान के लिए नेतृत्व वाली भूमिका में उभर कर सामने आ रही है। भारत में खेती बगवानी के कामों में ग्रामीण महिलाओं की व्यापक भागीदारी को देखते हुए   कृषि क्षेत्र में महिलाओं का सशक्तिकरण न केवल व्यक्तिगत, परिवारिक बल्कि सामाजिक खुशहाली के लिए जरुरी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं भारत में आर्थिक विकास एवं उत्पादकता के लिए वर्तमान समय महिलाओं की हिस्सेदारी की आवश्यकता है।

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महिला, कृषि, किसान आन्दोलन, महिला नेतृत्व, महिला सशक्तिकरण.

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This article explores the evolution of leadership in the Indian military, tracing its deep roots in ancient Indian philosophy and ethics, while examining the integration of modern technologies and strategies. From the timeless wisdom of the Bhagavad Gita to the ethical principles embedded in the nation’s military heritage, Indian military leadership has always been grounded in values like duty (Dharma), integrity, and selflessness. The article discusses how these traditional values continue to shape leadership within the Indian Armed Forces, even as the nature of warfare evolves with new challenges such as cyber threats, artificial intelligence, and multi-domain operations. The evolution of leadership, from pre-independence warrior-kings to modern-day officers navigating complex geopolitical and technological landscapes, highlights the Indian military’s capacity to adapt without losing sight of its foundational principles. Additionally, it explores the growing importance of joint leadership across different branches of the armed forces, the necessity of innovation in leadership training, and the future role of India’s military leaders in global security. By balancing tradition with modernity, India’s military leadership stands as a resilient force, committed to national defense while embracing the complexities of 21st-century warfare.

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Indian Military Leadership,Traditions Ethics & Dharma, Modernization of Military, Leadership Evolution, Multi-Domain Warfare, National Security Strategy.

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  1. Chatterji, S.K. (2011). Leadership in the Indian Armed Forces. Manohar Publishers & Distributors, 1/18 Ansari Road, Daryaganj, New Delhi 110002. p. 45-70 (Analysis of leadership principles in the Indian military).

2. Easwaran, E. (2007). The Bhagavad Gita. Nilgiri Press, P.O. Box 446, Tomales, CA 94971. p. 35-50 (The ethics of duty and selfless action in leadership).
3. India Today. (2022). “The Indian Military: Leadership and Strategy”. Retrieved from https://www.indiatoday.in, p. 45-60 (Analysis of how the Indian military integrates leadership principles with modern strategic needs), Accessed on 05/08/2024.
4. Indian Armed Forces Leadership Doctrine. (2019). Ministry of Defence, New Delhi. p. 1-25 (Overview of leadership principles and organizational structure in India’s armed forces).
5. National Defence Academy (2021) “The Evolution of Indian Military Leadership: From Ancient Times to the 21st Century”, International Journal of Military Studies, 4(2), p. 89-110 (Historical development and future direction of Indian military leadership).
6. National Defence Academy. (2019). Leadership Training Curriculum. National Defence Academy, Pune 411031, Maharashtra. p. 10-20 (Curriculum details for leadership training at the NDA).
7. Sharma, R. (2017). The Indian Military and Contemporary Warfare. Pentagon Press, 45, Community Centre, New Friends Colony, New Delhi 110025. p. 180-210 (Integrating modern strategies with traditional leadership values in the Indian military).
8. The Economic Times. (2021). “Challenges to Leadership in the Indian Armed Forces”. Retrieved from https://www.economictimes.indiatimes.com, p. 100-120 (Challenges and opportunities in military leadership in the 21st century), Accessed on 15/08/2024.

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प्रत्येक शिक्षण प्रणाली में शिक्षक और शिक्षार्थी के मध्य अंतःक्रिया होती है। पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में शिक्षक छात्रों को अपने विषय को व्याख्यान विधि से पढ़ाते है और कभी-कभी उसका प्रदर्शन अपने समझ अनुसार संसाधन जुटाकर करता है फिर मूल्यांकन करता है। चूँकि अलग-अलग छात्रों में समान क्षमताएं नहीं होती और उनके उपलब्धियों में भी काफी अंतर पाया जाता है जिसके कारण शिक्षा के पारंपरिक विधाओं में बदलाव की आवश्यकता महसुस की गयी और प्रौद्योगिकी द्वारा नवीन तरीकों पर चर्चा की जाने लगी। भारत के शिक्षा विभाग ने भी मौजूदा शिक्षा प्रणाली की सीमाओं को स्वीकार किया है और शिक्षा प्रणाली में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी (आई.सी.टी.) को शामिल करने की पहल की है। आई.सी.टी. की मदद से शिक्षक आसानी से छात्र को जटिल विषय वस्तु की व्याख्या आसानी से कर सकते हैं। जटिल संकल्पनाओ के लिए आई.सी.टी. से विषय वस्तु को सरलीकृत किया जा सकता है जिससे छात्रों को सीखने में सहायता मिलती है। अतः ऐसे आई.सी.टी. आधारित सॉफ्टवेयर जो छात्रों के अधिगम को बढ़ाने में सहायक हो उन पर अधिक से अधिक शोध की आवश्यकता होगी। सिमुलेशन तकनीक में विद्यार्थियों को जटिल संकल्पनाओ को प्रत्यक्ष रूप से जानने का अवसर मिलता है और छात्र क्रियाशील होते है, अतः ऐसे आई.सी.टी. आधारित सॉफ्टवेयर पर अधिक से अधिक शोध की आवश्यकता होगी। विद्यार्थियों को विषयवस्तु लंबे समय तक याद रखने में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी (आई.सी.टी.) आधारित सॉफ्टवेयर सहायक होते है तथा कमजोर कम बुद्धिलब्धि वाले बालको के लिये अधिक उपयोगी है। अतः ऐसे तकनीकों पर अधिक से अधिक शोध की आवश्यकता होगी। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी (आई.सी.टी.) आधारित दृश्य-श्रव्य सामग्री के उपयोग द्वारा शिक्षक अपना अध्यापन प्रभावशाली तरीके से कर सकते है, आई.सी.टी. आधारित अध्यापन न सिर्फ गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक होगा अपितु शिक्षक आई.सी.टी. के अंतर्गत उपलब्ध शिक्षण सामग्री द्वारा विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धियों को ज्ञात कर पायेंगे।

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सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी, शिक्षा, शिक्षक.

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  1. चालौने, बी. (2020) स्कूली गणित पढ़ाने में जियोजेब्रा की प्रभावशीलता पर अध्ययन करना, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।

2. चन्द्रा, ए. (2021) छत्तीसगढ़ कक्षा-कक्ष शिक्षण में प्ण्ब्ण्ज्ण् संसाधनों के उपयोग से विद्यार्थियों के शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
3. देवांगन, डी. (2015). परंपरागत शिक्षण विधि और कंप्यूटर शिक्षण विधि से गणित शिक्षण की शैक्षिक उपलब्धि पर पढ़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
4. गेण्डरे, जी. (2021) हाई स्कूल स्तर में फत् ब्वकम द्वारा शिक्षण का विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़।
5ण् ळवचपए।ण् ;2023द्ध। ेजनकल वद ंजजपजनकम जवूंतके पबज व िेमबवदकतल ेबीववस जमंबीमते पद तमसंजपवद जव जीमपत पबज तमसंजमक ेजतमेे ंदक इंततपमतेण् क्मचंतजउमदज व िम्कनबंजपवदए ।ददंउंसंप न्दपअमतेपजलण्
7ण् ळनचजंए ैछण् ;2018द्ध । ेजनकल व िपदसिनमदबम व िअंतपवने प्ब्ज् इंेमक चतवरमबजे वद मकनबंजपवदण् क्मचंतजउमदज व िम्कनबंजपवद न्दपअमतेपजल व िस्नबादवूए स्नबादवूण्
10. नागे, के. (2021) उच्च प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों के विज्ञान विषय की शैक्षिक उपलब्धि एवं वैज्ञानिक अभिरुचि पर आई.सी.टी. के अंतर्गत उपलब्ध शिक्षण सामग्री एवं आई.सी.टी. के अंतर्गत स्वनिर्मित शिक्षण सामग्री की प्रभावशीलता का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
11. साव, उषा (2021) उच्च प्राथमिक स्तर पर जियोजेब्रा द्वारा गणित विषय के अध्यापन से प्राप्त शैक्षिक उपलब्धियों का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
13. सेन, एम. (2020) हाई स्कूल स्तर पर विज्ञान विषय में प्रज्ञा वीडियो लेक्चर और परंपरागत शिक्षण विधि द्वारा अध्यापन का शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़।
1 1. चालौने, बी. (2020) स्कूली गणित पढ़ाने में जियोजेब्रा की प्रभावशीलता पर अध्ययन करना, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
2. चन्द्रा, ए. (2021) छत्तीसगढ़ कक्षा-कक्ष शिक्षण में प्ण्ब्ण्ज्ण् संसाधनों के उपयोग से विद्यार्थियों के शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
3. देवांगन, डी. (2015). परंपरागत शिक्षण विधि और कंप्यूटर शिक्षण विधि से गणित शिक्षण की शैक्षिक उपलब्धि पर पढ़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
4. गेण्डरे, जी. (2021) हाई स्कूल स्तर में फत् ब्वकम द्वारा शिक्षण का विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़।
5ण् ळवचपए।ण् ;2023द्ध। ेजनकल वद ंजजपजनकम जवूंतके पबज व िेमबवदकतल ेबीववस जमंबीमते पद तमसंजपवद जव जीमपत पबज तमसंजमक ेजतमेे ंदक इंततपमतेण् क्मचंतजउमदज व िम्कनबंजपवदए ।ददंउंसंप न्दपअमतेपजलण्
7ण् ळनचजंए ैछण् ;2018द्ध । ेजनकल व िपदसिनमदबम व िअंतपवने प्ब्ज् इंेमक चतवरमबजे वद मकनबंजपवदण् क्मचंतजउमदज व िम्कनबंजपवद न्दपअमतेपजल व िस्नबादवूए स्नबादवूण्
10. नागे, के. (2021) उच्च प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों के विज्ञान विषय की शैक्षिक उपलब्धि एवं वैज्ञानिक अभिरुचि पर आई.सी.टी. के अंतर्गत उपलब्ध शिक्षण सामग्री एवं आई.सी.टी. के अंतर्गत स्वनिर्मित शिक्षण सामग्री की प्रभावशीलता का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
11. साव, उषा (2021) उच्च प्राथमिक स्तर पर जियोजेब्रा द्वारा गणित विषय के अध्यापन से प्राप्त शैक्षिक उपलब्धियों का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
13. सेन, एम. (2020) हाई स्कूल स्तर पर विज्ञान विषय में प्रज्ञा वीडियो लेक्चर और परंपरागत शिक्षण विधि द्वारा अध्यापन का शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़।
1. चालौने, बी. (2020) स्कूली गणित पढ़ाने में जियोजेब्रा की प्रभावशीलता पर अध्ययन करना, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
2. चन्द्रा, ए. (2021) छत्तीसगढ़ कक्षा-कक्ष शिक्षण में प्ण्ब्ण्ज्ण् संसाधनों के उपयोग से विद्यार्थियों के शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
3. देवांगन, डी. (2015). परंपरागत शिक्षण विधि और कंप्यूटर शिक्षण विधि से गणित शिक्षण की शैक्षिक उपलब्धि पर पढ़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
4. गेण्डरे, जी. (2021) हाई स्कूल स्तर में फत् ब्वकम द्वारा शिक्षण का विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़।
5ण् ळवचपए।ण् ;2023द्ध। ेजनकल वद ंजजपजनकम जवूंतके पबज व िेमबवदकतल ेबीववस जमंबीमते पद तमसंजपवद जव जीमपत पबज तमसंजमक ेजतमेे ंदक इंततपमतेण् क्मचंतजउमदज व िम्कनबंजपवदए ।ददंउंसंप न्दपअमतेपजलण्
7ण् ळनचजंए ैछण् ;2018द्ध । ेजनकल व िपदसिनमदबम व िअंतपवने प्ब्ज् इंेमक चतवरमबजे वद मकनबंजपवदण् क्मचंतजउमदज व िम्कनबंजपवद न्दपअमतेपजल व िस्नबादवूए स्नबादवूण्
10. नागे, के. (2021) उच्च प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों के विज्ञान विषय की शैक्षिक उपलब्धि एवं वैज्ञानिक अभिरुचि पर आई.सी.टी. के अंतर्गत उपलब्ध शिक्षण सामग्री एवं आई.सी.टी. के अंतर्गत स्वनिर्मित शिक्षण सामग्री की प्रभावशीलता का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
11. साव, उषा (2021) उच्च प्राथमिक स्तर पर जियोजेब्रा द्वारा गणित विषय के अध्यापन से प्राप्त शैक्षिक उपलब्धियों का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़।
13. सेन, एम. (2020) हाई स्कूल स्तर पर विज्ञान विषय में प्रज्ञा वीडियो लेक्चर और परंपरागत शिक्षण विधि द्वारा अध्यापन का शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़।
14. Sengamalaselvi, J. (2016) Studies on effectiveness of I.C.T. with geogebra and winplot as learning tools. Department of Mathematics Shri Chandrasekharendra Saraswathi Viswa Mahavidyalya Enathur, Kanchipuram.
16. Thangamani, D. (2020) Status study on I.C.T. educationAttitude of student teachers towards I.C.T. and usage of available resources in college of education. Shri sararda college of education, Salem.
17. Verma,A.(2008)A study on Implementation of Computer Enabled Learning Schemes (ECELS)And its impact of students of upper primary level, Govt. College of Teacher Education Raipur (C.G.)

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This study explores the life and contributions of Guru Ghasidas, a revered figure in Chhattisgarh, whose establishment of the Satnam Panth heralded a new era of social, religious, and spiritual thought in central India. Guru Ghasidas, emerging in the early 19th century, challenged the caste-based societal structure, advocating for equality, humanity, and spiritual emancipation. His teachings were rooted in the principles of Satnam—‘ the actual name’ emphasizing an unyielding devotion to truth, simplicity, and a rejection of idol worship, aligning closely with broader movements against religious orthodoxy in India. Guru Ghasidas’ influence extended beyond religious ideology to social reform, addressing the caste-based injustices faced by marginalized communities in Chhattisgarh. His creation of a distinct cultural identity for Satnam followers offered a platform for social solidarity, fostering community cohesion among historically oppressed groups. Furthermore, his teachings promoted non-violence, respect for all life forms, and environmental stewardship, thus contributing to a holistic worldview that resonates with modern ecological and humanitarian values. In a historical context, Guru Ghasidas’ legacy remains integral to the social and spiritual fabric of Chhattisgarh, inspiring successive generations to uphold the values of equality, truth, and compassion. His life exemplifies the rich tradition of indigenous spiritual leaders who resisted systemic oppression and provided ethical and cultural frameworks that continue to shape regional identities. This paper seeks to highlight the enduring impact of Guru Ghasidas’ teachings and his pivotal role in establishing Satnam as a movement of social and spiritual liberation, focusing on its implications for contemporary society.

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Guru Ghasidas, Satnam Panth, Social Reform, Chhattisgarh history, Caste Equality, Spiritual Liberation.

Read Reference

  1. Das, A., & Sinha, R. (2020). “The Legacy of Guru Ghasidas: Social Justice and Cultural Identity in Chhattisgarh.” Indian Journal of Social Sciences, 35(4), 200-215.

2. Desai, S. K., & Patel, A. (2021). “The Environmental Teachings of Guru Ghasidas: Ancient Values for Modern Sustainability.” Journal of Indian Ecological Studies, 12(3), 198-210.
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4. Kumar, R. (2021). “The Cultural Impact of the Satnam Panth on Chhattisgarhi Identity.” Journal of South Asian Studies, 29(1), 88-104.
5. Kaur, P., & Narayan, S. (2020). “The Cultural Legacy of Guru Ghasidas: Rituals, Art, and Collective Identity.” South Asian Cultural Studies Journal, 25(2), 150-166.
6. Mehta, J., & Sinha, P. (2022). “Legacy of Guru Ghasidas: Inspiring Social and Spiritual Reform.” Indian Journal of Social and Religious Studies, 31(4), 45-60.
7. Patel, D. & Singh, L. (2022). “Guru Ghasidas and the Modern Environmental Movement: Lessons from Indigenous Traditions.” Environmental Ethics Quarterly, 17(3), 123-138.
8. Verma, A. (2017). “The Satnam Panth’s Ethical Teachings: Relevance for Modern Spirituality.” Journal of Indian Spiritual Studies, 15(2), 75-90.

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The research paper focuses on the modified version of the talk delivered by Chimamanda Ngozi Adichie at TEDxEusten in December 2012. Its modified version is in the form of book entitled We Should All Be Feminists. Adichie, being a feminist in her views, desires a world which is free and fair to all human beings. She envisages a world which poise man and woman equal in all fields. The paper examines the role assigned to women by the society especially Nigerian which is inappropriate from the point of view of feminists. Through the personal anecdotes of Adichie, attempt has been made to highlight the disparity of treatment to male and female. This disparity comes in the way of human beings especially women having a dream of fair world to be fulfilled. Though the lowest status quo of Nigerian woman in her society is highlighted, it is not restricted to Nigerian society but it is the position of women in all countries. The realistic presentation of various unnoticed shades of women’s daily life is portrayed in the book.

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Chimamanda Adichie, Feminists, Gender, Patriarchy.

Read Reference

  1. Adichi, Chimamanda Ngozi (2014). We Should All Be Feminists. Fourth Estate, Nigeria.

2. Bara, Farrah (2020), editor in chief Duke Law Journal. “Women and Law”. p. 1-180.
3. Friedan, Betty (2010). The Feminine Mystique. Penguin, United Kingdom.
4. Khan, Nazneen (2015). Introduction. Shashi Deshpande: Texts and Contexts. Adhyayan Publishers, New Delhi, p. 5-8.  
5. McCloskey, Stephen, (2014) editor. Development Education in Policy and Practice. Pulgrave Macmillion, 4th Edition, India.  
6. Millett, Kate (1971). Sexual Politics. Rupert Hart Davies, New York.

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This paper explores the evolution of educational policies in India, focusing on the National Policy on Education (NPE) 1986 and the National Education Policy (NEP) 2020. NPE 1986 was introduced to promote equality and access to education, emphasizing vocational training, technical education, and the eradication of disparities. However, it largely maintained a content-heavy, examination-centric approach, which led to challenges in fostering critical thinking and creativity. In contrast, NEP 2020 represents a paradigm shift towards a more holistic, flexible, and inclusive education system. It emphasizes competency-based learning, critical thinking, and the integration of technology to prepare students for the 21st-century global landscape. By comparing the objectives, curricular approaches, assessment methods, and inclusivity measures of both policies, this paper highlights the transformative vision of NEP 2020. It also discusses the challenges and realities of implementing such ambitious reforms, drawing lessons from the implementation of NPE 1986 to provide insights for the successful realization of NEP 2020’s goals. This paper underscores the importance of adapting education policies to meet the evolving needs of society and the global knowledge economy.

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NEP 2020, NPE 1986, Curriculum Development, Assessment Reform, Inclusivity in Education, Educational Reform.

Read Reference

  1. Achuth.P,.& Gupta.,S.(2021), National Education Policies of India: A Comparative Study concerning Higher Education, HANS SHODH SUDHA, 1(3), 20-27.

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प्रस्तुत शोधालेख में सुशीला टाकभौरे और मृदुला सिन्हा क्रमशः दलित और गैर दलित समाज का प्रतिनिधीत्व करते हैं। सुशीला टाकभौरे ने अपने उपन्यास नीला आकाश में दलित नारियों की स्थिति का सजीव और मार्मिक चित्रण अत्यंत संवेदनशीलता के साथ किया है। लेखिका स्वयं दलित समाज से होने के कारण उपन्यास में भारतीय समाज व्यवस्था का पोल खोल कर रख दिया है। मृदुला सिन्हा भारतीय संस्कृति की पुरजोर समर्थक रही हैं, उनके उपन्यास अतिशय में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। नारी समाज का विकास भारतीय संस्कृति के दायरे में रह कर किया जा सकता है ऐसा लेखिका का मानना है। भारतीय समाज व्यवस्था पितृसत्तात्मक, धर्म और जाति आधारित होने के कारण पुरुषवादी समाज ने अपनी सुविधानुसार सारे नियम बनाये और नारी को नियंत्रित किया गया। दलित स्त्रियॉ अपनी जाति, स्त्री और दलित होने के कारण तिहरा शोषण की शिकार होती हैं, वहीं उच्चवर्गीय नारी समाज द्वारा निर्मित कानून व्यवस्था के जंजीर में फंसी रही हैं लेकिन दलित स्त्रियों की अपेक्षा उनकी स्थिती बेहतर रही है। दोनांे ही लेखिका अलग-अलग परिवेश और क्षेत्र से आती है इसलिए उनकी रचनाओं में नारी के अलग-अलग स्वरुप का दर्शन होता है। प्रत्येक क्षेत्र और परिवेश की नारियों की समस्या एक जैसी नहीं होती है और उन सभी समस्याओं का समाधान एक तरीके से नहीं किया जा सकता है।

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सुशीला टाकभौरे, मृदुला सिन्हा, नीला आकाश, अतिशय, भारतीय समाज, नारी विमर्श.

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  1. टाकभौरे, सुशीला (2013) ‘नीला आकाश’, विश्वभारती प्रकाशन, विश्व भारती प्रकाशन, नागपुर, पृ. 15, 20, 22, 24-25, 27, 38, 47, 50, 52।

2. वाल्मीकि, ओमप्रकाश (2001) दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, राधाकृष्ण प्रकाशन, राधा कृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 76।
3. सिंह, एन. (2012) ‘दलित साहित्य के प्रतिमान’, वाणी प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 261।
4. पद्यावती, जी. (2021) ‘इक्कीसवीं सदी की लेखिकाओं की कहानियों में स्त्री विमर्श’, विकास प्रकाशन,  कानपुर, पृ. 86।
5. टाकभौरे, सुशीला (2023) ‘शिकंजे का दर्द, वाणी प्रकाशन’, नई दिल्ली, पृ. 48।
6. सिन्हा, मृदुला (2016) ‘अतिशय, प्रतिभा प्रतिष्ठान, नई दिल्ली, पृ. 43, 45, 54, 85, 127।
7. शर्मा, अखिलेश कुमार, (2017) ‘मृदुला सिंहा के कथा साहित्य में मूल्यबोध’ शोध प्रबंध 19।
8. सिहमार, बलराज (2002) ‘मानव-मूल्य और स्वातंर्त्योत्तर हिन्दी उपन्यास’, खामा पब्लिशर्स, दिल्ली, पृ. 58।

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किसी क्षेत्र की प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास को जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। किसी क्षेत्र में संसाधन एवं जनसंख्या का संतुलन भी विकास के स्तर को निर्धारित करता है। मानव संस्कृति के निर्माता एवं प्राकृतिक संसाधनो के उत्पादन एवं उपभोक्ता के रूप में महत्वपूर्ण संसाधन है। जनसंख्या की विशेषताओं के अर्न्तगत आयु लिंग, साक्षरता, व्यवसाय, धर्म, इत्यादि समाहित है। आज शिक्षा जनसंख्या नियंत्रण में कारगर साबित हो रही है। शिक्षित लोगो की तुलना में अशिक्षितों के बीच जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। आँकलन किया जाए तो अच्छे परिणाम हो सकते है। निरंतर बढ़ती जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों के भौतिक साधनों पर व्यापक प्रभाव डालते है। बैहर पठार में बढ़ती जनसंख्या और शिक्षा का स्तर एवं गम्भीर चुनौती के रूप में उभरी है। जनसंख्या प्रतिरूप विश्लेषण एवं शिक्षा का स्तर का आंकलन इस तथ्य की ओर इंगित करता है कि संबंधित नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि और शिक्षा का सतर के मध्य सहसंबंध है। क्या उपलब्ध शिक्षा के साधन वर्तमान जनसंख्या के अनुकुल है एवं जनसंख्या के समक्ष शिक्षा का स्तर दयनीय है। प्रस्तुत शोध-पत्र में बैहर पठार की जनसंख्या पर शिक्षा का क्या प्रभाव है इसका विश्लेषण करना एवं शिक्षा स्तर के मध्य अन्तर को समझने का प्रयास एवं रेखांकित करने की कोशिश की गई। भविष्य में जनसंख्या वृद्धि एवं शिक्षा स्तर के संदर्भ में कैसी नियोजन नीति की आवश्यकता हो सकती है इस का अध्ययन किया गया हैं।

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जनसंख्या वृद्धि, शिक्षा प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक विकास.

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  1. हीरालाल (1997) जनसंख्या भूगोल, वसुन्धरा प्रकाशन गोरखपुर।

2. सिंह, राजेश कुमार ;2016द्ध सिवान जनपद के जनसंख्या संभाग, Journal of Integrated Development and Research, Dec 2016, volume 6, Issue 2, p. 71-75.
3. राय, दुर्गेश ;2021द्ध तहसील सिकंदरफर (जनपद बलिया) में जनसंख्या वृद्धि एवं कृषिगत विकास एक भौगोलिक अध्ययन, Uttar Pradesh Geographical Journal, Vol. 26, p. 146-151.
4. तिवारी, आर.के. (2015) जनसंख्या भूगोल, प्रवालिका पब्लिकेशन, इलाहाबाद।
5. पांड़ा बी.पी. (2007) जनसंख्या भूगोल, मध्यप्रदेश ग्रंथ अकादमी भोपाल।
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Jan Tinbergen’s gravity model is one of the most successful empirical models of international trade. Economists have used it extensively to explain international trade trends from time to time. Many researchers have applied it to the Indian context, and a consistent view in the literature is that the gravity model explains more than half of India’s trading patterns. Using data from the World Bank and CEPII database on the world economy, which has been coded in stata, we estimate the gravity equation for India for the year 2013. The main conclusions that have emerged from this analysis are: Firstly, the gravity model explains nearly 53 percent of India’s trading patterns. Secondly, it remarkably explains India’s trading position within the ASEAN countries. Thirdly, the postulates of the gravity model hold strongly in the case of India. Finally, this paper also looks at the possible impacts that financial shocks and the Trans-Pacific Partnership can have on the gravity equation.

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Gravity, International Trade, Partnership, India.

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  1. Whiteside, D. T. (1991) The prehistory of the Principia from 1664 to 1686. Notes and Records of the Royal Society of London, 45(1), 11–61.

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This paper empirically explores the impact of the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA) on rural employment, income stability, and livelihood enhancement in India. MGNREGA, introduced in 2005, aims to provide one hundred days of guaranteed wage employment to rural households, particularly those in poor regions. Despite its ambitious scope, questions remain about its effectiveness in various states. Focusing on three districts in Uttar Pradesh, this study assesses the program’s success in enhancing employment opportunities and boosting rural income. The research employs a mixed-methods approach, utilizing household surveys from three hundred beneficiaries and focus group discussions (FGDs) to provide qualitative insights into the experiences of MGNREGA workers. The study analyses how the scheme has contributed to employment generation, income enhancement, and the reduction of seasonal migration. The findings reveal that MGNREGA has had a positive impact on rural employment, with an increase in job opportunities, particularly for marginalized communities. Beneficiaries also reported moderate improvements in income and livelihood security. However, significant challenges persist, particularly in terms of implementation, including delayed wage payments, lack of awareness about entitlements, and the presence of local corruption that hampers access to the scheme. The study concludes that while MGNREGA has contributed to rural development and poverty alleviation, structural reforms are needed to address operational inefficiencies. Ensuring timely payments and enhancing program awareness are critical to realizing the full potential of the scheme in improving rural livelihoods.

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MGNREGA, Rural Employment, Income Stability, Livelihood Enhancement, Poverty Alleviation.

Read Reference

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This study explores the impact of Corporate Social Responsibility (CSR) on corporate financial performance across various industries. By analysing a diverse sample of firms from multiple sectors, the research aims to understand how CSR activities influence key financial metrics, including profitability, return on assets (ROA), and return on equity (ROE). Utilizing quantitative methods, the study examines data derived from financial reports and CSR disclosures to provide a detailed assessment of how CSR affects financial performance across different industries. CSR has increasingly become a principal component of corporate strategy, with firms investing in social and environmental initiatives to enhance their public image and address stakeholder expectations. However, the financial benefits of CSR can vary significantly across industries due to differing stakeholder pressures, industry norms, and regulatory environments. This study employs regression analysis to determine the relationship between CSR practices and financial performance indicators, revealing how CSR impacts profitability, ROA, and ROE in sectors such as manufacturing, services, and technology. The findings offer valuable insights into the industry-specific effects of CSR, highlighting that the relationship between CSR and financial performance is not uniform across sectors. This research contributes to a deeper understanding of how CSR can be strategically leveraged to enhance financial outcomes, providing practical implications for managers seeking to align CSR activities with financial objectives. The study also identifies areas for future research to further explore the nuanced effects of CSR across different industrial contexts.

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Corporate Social Responsibility, Financial Performance, Profitability, Return on Assets (ROA), Return on Equity  (ROE), Industry Comparison.

Read Reference

  1. Brammer, S., Brooks, C., & Pavelin, S. (2006). Corporate social performance and stock returns: UK evidence from disaggregate measures. Financial Management, 35(3), 97-116.

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आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंस कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इण्टेलिजेंस तरीके से सोचने वाला सॉफ्टवेयर बनाने का एक तरीका है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता/आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंस (एआई) की शुरुआत वर्ष 1950ई. के दशक के आस पास हुई थी, लेकिन इसकी महत्ता को वर्ष 1970ई. के दशक में पहचान मिली। जापान ने सर्वप्रथम वर्ष 1981ई. में फिफ्थ जनरेशन नामक योजना की शुरुआत की थी। ब्रिटेन एवं यूरोपीय संघ के देशों ने क्रमशः ‘एल्वी‘ एवं ‘एस्प्रिट‘ नामक कार्यक्रम आरम्भ किया। कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नूतन तकनीकी व्यवस्था है। इसके अनुप्रयोग दैनिक दिनचर्या के घरेलू कामों से लेकर क्वांटम स्तर तक की गणना और ऑकड़े एकत्र करने में देखने को मिलता है। वास्तविक दुनिया में उपयोग की जाने वाली अधिकांश तकनीक वास्तव में अत्याधिक उन्नत मशीन लर्निंग का निर्माण करती है जो वास्तविक कृत्रिम बुद्धिमत्ता, या ‘सामान्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता‘ (जीएआई) की ओर बढ़ता हुआ पहला कदम है। एआई का उपयोग स्मार्ट ऊर्जा उपयोग के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को कम करने के लिए भी किया जा सकता है। बर्लिन में, विण्डनोड परियोजना घर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए एआई का उपयोग करती है।डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने स्वचालित फोटो ट्रैप का उपयोग करके ली गयी हजारों तस्वीरों का मूल्यांकन करके बाघ की तस्वीरों को छांटने हेतु एआई तकनीक का उपयोग किया है। सेंट्स पिट्सबर्ग में ‘स्थायी परिवहन प्रणाली’ एआई तकनीक के माध्यम से स्थापित की गयी है, जहाँ सेंसर के द्वारा यातायात के प्रवाह के अनुसार ट्रैफिक लाइट को समायोजित किया गया है।

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कृत्रिम बुद्धिमत्ता/आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंस (एआई), अनुप्रयोग, प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, डिजिटल मैन्युफैक्चरिंग, बिग डाटा इण्टेलिजेंस.

Read Reference
1. https://blogs.dal.ca/melaw/2019/01/14/the-future-of-environmental-law/, Asscessd on 15/06/2024.
2. https://law.stanford.edu/stanford-lawyer/articles/using-ai-to-improve-the-environment/, Asscessd on 15/06/2024.
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5. https://www.ciiblog.in/technology/artificial-intelligence-in-indian-agriculture/, Asscessd on 18/06/2024.
6. https://www.thelawyerportal.com/blog/artificial-intelligence-law/, Asscessd on 15/06/2024.
7. http://www.legalserviceindia.com/legal/article-631-impact-of-artificial-intelligence-on-indian-legal-system.html, Asscessd on 15/06/2024.
8. https://en.wikipedia.org/wiki/Artificial_intelligence#Basics, Asscessd on 17/06/2024.
9. https://hackr.io/blog/benefits-of-artificial-intelligence, Asscessd on 18/06/2024.
10. https://education.cfr.org/learn/reading/how-can-artificial-intelligence-combat-climate-change, Asscessd on 16/06/2024..

Publishing Year : 2023

Publishing Year : 2022