Higher education institutions play a key role in building a skilled workforce to boost student employability and solve the problem of job seekers. Employability is a common problem when looking for a job, where low employability has become a barrier to entering the labor market. Student employability depends on various factors such as academic achievement, self-esteem, emotional intelligence, motivation, communication and many more, but in Indian context,academic achievement is one of the most important and fundamental factors for future employability. The main purpose of this article is to understand the importance of students’ academic performance in improving their employability in the future and to conceptually understand the relationship between students’ academic performance and employability. A qualitative approach was taken and secondary data were used to analyze the importance of students’ academic performance in promoting their employability in higher education.Studies have shown that academic success is important because it is strongly associated with expected positive outcomes. Highly educated and well-educated adults are more likely to be employed, have stable jobs and more job opportunities than those with less education and earn higher wages, and are less dependent on welfare, less likely to get involved, are more active citizens and volunteers for charities, are healthier and lucky(Regier, undated). Economic and social status depends on the education of the individual, as education helps individuals take control of their quality of life.It can lift a person out of poverty while promoting social harmony and democracy (Idris et al., 2012).
Academic achievement, Employability, Higher Education, Skilled Workforce.
1. Academia.edu—Share research. (n.d.-a). Retrieved January 30, 2023, from https://www.academia.edu/signup?a_id=52120344
Teacher Education is a pivotal programme to improve the quality of Indian Education. There have been number issues and challenges in teacher education. Teacher Education programme provides the solutions regarding how effective and powerful teaching is performed and how teaching work. The quality of educational process largely depends upon the quality of teachers. Challenges in the educational system have no permanent and fixed answers because of the dynamic nature of human society. So, no teacher education programmer can prepare good teachers for all situations that they will face. Teachers themselves should have to make the final choices from among many alternatives. Therefore it is necessary for teachers to constantly reevaluate their choices and it can be take in account through introducing and promotion of innovative ideas and practices in teacher education. This paper will focus on concern challenges and innovation in teacher education.
Teacher Education, Pivotal, Innovative Ideas, Education Programmer, Innovative Practices.
1. Bruner. (1960/1977) The Culture of Education, M.A.: Harward University Press, Cambridge.
Saving is a critical aspect of financial planning, and understanding the factors that motivate individuals to save can provide insights into financial behavior and decision-making. It is an essential aspect of financial planning for households, as it provides a buffer against unexpected expenses and helps to achieve long-term financial goals. By studying the reasons for savings in households in the urban area of Nagpur district, policymakers, financial institutions, and households themselves can gain a better understanding of the factors that drive saving behavior. There is a need for a comprehensive study to identify the reasons for saving among households in the region and to understand the factors that drive household savings behavior. This study aims to address this research gap and provide valuable insights into household financial behavior in the urban area of Nagpur district. The data has been collected with the help of questionnaire and statistical tests like one way ANOVA and Turkey’s HSD test has been used to analyse the data collected from 100 households. The study concludes that reasons to save for households with different demographic and socio economic attributes differ significantly.
Households, Savings, Demographic, Reasons to Save, Socio-economic Attributes.
1. Asemota, O. M., & Asemota, A. E. (2019). Determinants of household savings behaviour in Nigeria. International Journal of Development and Economic Sustainability, 7(4), 37-48.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, शिक्षा, संस्तुति.
1. अग्निहोत्री रविन्द्र, भारतीय शिक्षा की वर्तमान समस्या, दिल्ली, रिसर्च पब्लिकेशन्स, 1994।
भारतीय अर्थव्यवस्था में बैंक का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। बैंकिंग सेक्टर में एनपीए में बहुत बढ़ोतरी बैंकों के लिए अनेक समस्याएं उत्पन्न कर रही हैं जिसके कारण बैंकों की वित्तीय क्षमता प्रभावित होने के साथ-साथ कई बैंक ध्वस्त होते जा रहे हैं। इसी समस्या से निजात पाने हेतु दिसंबर 1967 में राष्ट्रीय ऋण परिषद्1, (एनसीसी) की स्थापना की गई जिसने 1968 में प्रोफेसर डीआर गाडगिल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति की विस्तृत रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि वाणिज्यिक बैंकों की ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त शाखाएं नहीं है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त बैंकिंग और ऋण संबंधी कार्यक्रम अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाते। 2 भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों की शाखाएं वृद्धि हेतु नरीमन समिति का गठन किया। समिति ने 1969 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा की अग्रणी बैंक योजना जिसे लीड बैंक स्कीम भी कहा जाता है बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक बैंक को कुछ विशेष जिलों पर ध्यान केंद्रित करने करके कार्य करना चाहिए। 3 आरबीआई ने दिसंबर 1969 में पूरे देश में लीड बैंक स्कीम लागू करके प्रत्येक बैंक को एक जिला आवंटित किया और अपेक्षा की कि वे जिले में कृषि लघु एवं कुटीर उद्योग एवं आर्थिक नेता के रूप में कार्य करें, जिससे सरकार और भारतीय रिजर्व योजनाओं का लाभ जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंच सके। अब देखना यह है कि बैंक एनपीए समस्या पर कैसे काबू पा सकती है।
एनपीए, अर्थव्यवस्था, गाडगिल समिति, नरीमन समिति, लीड बैंक योजना, आरबीआई.
1. राष्ट्रीय ऋण परिषद् (एनसीसी)।
Right to Life, Right to Food, Constitution, Hunger, Food Safety, Initiatives.
1. A.K. Gopalan vs. State of Madras (AIR 1950 SC 27)
भारत में ऐसी बहुत सी समस्याएं व्याप्त है जिनका समाधान करना आवश्यक है। जब तक इन समस्याओं को समाप्त नही किया जाएगा तब तक देश को पूर्ण विकसित बनाना संभव नहीं होगा। भारत में मुख्य रूप से बेरोजगारी, बढ़ती हुई जनसंख्या, जातिगत भेदभाव, गरीबी, अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति, अशिक्षा मुख्य समस्याओं में है इसके अलावा नशे की समस्या भी युवाओं और किशोरों को सबसे अधिक संकट में डाल रही है। जैसे-जैसे बालक किशोरावस्था में प्रवेश करता है वैसे-वैसे उसमें विभिन्न शारिरिक, मानसिक, सामाजिक और शैक्षणिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं, इन परिवर्तनो ंके कारण उसे नई चीजों को सीखना और उन्हे देखना अच्छा लगने लगता है। 16 से 18 वर्ष के बालकों को किशोरावस्था में रखा गया है, किशोरों की संख्या भारत में लगभग 8 करोड़ है। इससे यह ज्ञात होता है कि भारत के विकास में किशोरों का बहुत अधिक महत्व है क्योकि यही किशोर युवावस्था में पहुंचकर भारत को विकसित बनाने में सहायता करेंगे, लेकिन किशारों के विकास में नशे का उपयोग एक बड़ी बाधा के रूप में देखने को मिल रहा है। वर्तमान समय में हमारा देश सतत् विकास की तरफ अग्रसर है, वही हमारे देश के बालकों का भविष्य खतरे में है, क्योकि इस अवस्था को समस्याओं का काल कहा जाता है। नशा हमारे समाज में तीव्र गति से अपना पैर पसार रहा है। नशे से हमारा अर्थ उस मादक द्रव्य के सेवन से है जिसे किशोर बालक अपनी जिंदगी की आवश्यकता मान बैठे हैं। नशा एक ऐसी लत है जिसके चपेट में बालक अत्यधिक बढ़ रहें हैं, उन्हे अपने अंदर की बुराईयों का पता भी नहीं चल रहा है जिससे उनकी शारिरिक, मानसिक एवं शैक्षणिक स्तर पर अत्यधिक प्रभाव पड़ रहा है। वे नशे के तौर पर ड्रग्स, शराब, गुटखा, सिगरेट, नशे की गोलियां जैसे पदार्थों का सेवन करते हैं जिससे उन्हें मानसिक संतुष्टि की अनुभूति प्राप्त होती है। नशे का प्रयोग बालको के मानसिक, शारिरिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक स्तर पर एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने प्रकट हो रही है। नशीले पदार्थ जब बालको के शरीर में प्रवेश करता है तो उनके भीतर विभिन्न बदलाव होते जाते है जिसके परिणामस्वरूप वह अपराधिक प्रवृत्ति के होते जाते है। ऐसे समय में किशोरों को उचित मार्गदर्शन तथा सलाह देना अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है।
नशा, समाज, शैक्षणिक, मानसिक, सामाजिक, किशोर बालक.
1. यशपाल, नशे की बात है, विप्लव प्रकाशन लखनऊ (1652)
Since the ancient period woman had given importance in the society. In present time men and women both have given equal-importance and they play an important role in the growth and development of society and country. In ancient times women got the chance to get educated. They will be aware of their rights; If they will be educated. Through education they can uplift their status and secure an important position in the society. It is true said that “Family is the first school where mother is the first teacher.” Many philosophers and leaders of social, religious movements advocated for women education. Today so many women like Kiran Bedi, Anna George, Bachendri Pal, Sunita Williams, Mrs. Pratibha Patil, Mrs. Draupadi Murmu; etc, have touched their Zenith and they all became the source of inspiration for women. So women empowerment through education is the need and demand of present time for the all-round development of society and country.
Education, Women Empowerment.
1. Altekar A.S., Education in Ancient India Banaras: Nanda Kishore and brothers, 1948
स्वानुभूति, कल्पना, प्रकृति के मानवीकरण, आध्यात्मिक छाया, मूर्तिमत्ता, लाक्षणिक विचित्रता आदि विशेषताओं को संजोये हुए तथा समकालीन सामाजिक परिस्थितियों की अभिव्यक्ति छाया रूप में करते हुए छायावाद ने स्वाधीनता-संग्राम की खुशबू को अपनी कविताओं में स्वर दे दिया। राष्ट्रीय जागरण के आन्दोलनों में स्त्री स्वाधीनता के स्वर समाये हुए थे। ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि छायावाद के पूर्ववर्ती काव्यों में नारी-सम्बन्धी रचनायें नहीं थीं परन्तु उनमें सम्मान के स्थान पर दया की भावना थी। पर कालान्तर में नारी शिक्षा, सुधार आंदोलनों से स्वयं लड़कियों में स्त्री स्वाधीनता की जो भावना उत्पन्न हुई भला काव्य में जागरण का एहसास दिलाती स्वछंदता की प्रहरी छायावादी कवितायेँ इनमें कहाँ पीछे रहतीं।
छायावाद, स्त्री स्वातंत्र्य, स्त्री विमर्श, राष्ट्रीय जागरण, स्वछंदतावाद.
1. सिंह नामवर, छायावाद, पृ.- 71।
मीडिया, एक शक्तिशाली सामाजिक व्यवस्था के रूप में, एक व्यक्ति में वास्तविकता की भावना पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है (गेर्गन, 1999)। अपने व्यापक सांस्कृतिक अर्थों में, मीडिया ने उन मूल्यों और मानदंडों को काफी हद तक मजबूत किया, जो पहले से ही एक गहरी सहमति की नींव हासिल कर चुके थे। मानार्थ और स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकताएं हैं (बजोहर, 2006)। मास मीडिया अपने सबसे शक्तिशाली रूप में तब होता है जब वो प्रेरक परामर्शदाता का कार्य कर अनुमान लगाने या निष्कर्ष तक पहुचने में सहायक सिद्ध हो और यदि शत्रुतापूर्ण धारणा का प्रयोग करे तो इस प्रक्रिया में कम प्रभावी होते है (गुंथर और क्रिस्टन 2002)। प्रेरक प्रेस परामर्श दर्शाता है कि आम जन अक्सर मीडिया कवरेज की सामग्री को जनता की राय मानते हैं, और खासे प्रभावित होते हैं (गुंथर, क्रिस्टन, लिबर्ट, और चिया 2001)। संस्कृति सीखी जाती है और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है। यह “एक एकीकृत तंत्र है“ (गीर्ट्ज़, 1973; स्कीन, 1983), संस्कृति एक सामाजिक या नियामक गोंद है, जो संगठनात्मक सदस्यों के संभावित विविध समूह को एक साथ रखता है। संस्कृति गहराई की विभिन्न परतों में प्रकट होती है। किसी विशेष समूह या संगठन की संस्कृति तीन मूलभूत स्तरों को अलग करने के लिए वांछनीय है, जिस पर संस्कृति स्वयं प्रकट होती हैः (ए) कलाकृतियां, (बी) मूल्य, और (सी) बुनियादी अंतर्निहित धारणाएं (शेइन 1984)। संस्कृति सीखी जाती है, एक समाज में नए सांस्कृतिक तत्वों का स्रोत दूसरा समाज भी हो सकता है, जैसे की एक संस्कृति के सांस्कृतिक तत्वों को उधार लिया गया और प्राप्तकर्ता संस्कृति में शामिल किया गया, इसे ही सांस्कृतिक प्रसार कहा जाता है। प्रसार और संस्कृतिकरण की प्रक्रियाएं, संस्कृति में कई प्रकार के सांस्कृतिक परिवर्तन लाती हैं। कभी-कभी प्रसार तीसरे पक्ष के माध्यम से होने वाले मध्यवर्ती संपर्क के कारण होता है। मास मीडिया की हमारे ऊपर एक राजनीतिक और प्रेरक शक्ति है। रेडियो, टीवी, ’प्रेस’ आदि पूरे समाज में हेरफेर कर सकते हैं। राजनीतिक प्रचार, विज्ञापन और मीडिया की तथाकथित ’दिमाग झुकाने’ की शक्ति लंबे समय से बहस और चिंता के कारण रही हैं। मीडिया का हमारे सामाजिक व्यवहार पर बहुत प्रभाव पड़ता है, जो हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह पत्र संस्कृति पर जनसंचार माध्यमों के प्रभाव के विभिन्न विधियों का आंकलन करेगा जैसे संज्ञानात्मक, व्यवहारिक, व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक। अध्ययन का उद्देश्य मीडिया, संस्कृति और उनके संबंधों और एक दूसरे पर प्रभाव के महत्व को स्पष्ट करना है।
मीडिया, संस्कृति, लोकप्रिय संस्कृति, जन संस्कृति, उपभोग.
1. अलाइरे वाई, फ़िरसीरोटू एमई, थेओरिस ऑफ़ ऑर्गेनाइज़ेश्नल कल्चर, ऑर्गेनाइज़ेश्नल स्टडीज, 1984।
किसी महापुरुष की इस उक्ति से असहमत होना बड़ा कठिन है कि मनुष्य अपने समय का शिशु होता है। ‘यहां पर यह एक ऐसा सार्वलौकिक सत्य है’, जिससे इन्कार किया जाना लगभग असंभव है। हाँ ऐसा हो सकता है कि कोई विचारधारा, कोई विचार, कोई संदर्भ, कोई घटना अथवा दुर्घटना विचारों को कहीं और मोड़ दे। प्रत्येक विचारक के जीवन में ऐसे मोड़ बड़े स्पष्ट दिखाई देते हैं। मानवेंद्रनाथ राय भी इससे पृथक नहीं है। उनका राजनीतिक चिंतन को सबसे बड़ा योगदान मानवतावाद माना जाता है, और इसमें कोई संदेह भी नहीं कि मार्क्सवाद से प्रभाव तथा विरक्ति दोनों उनके इस दर्शन को स्पर्श करती हैं। अपने शुरुआती दौर में क्रांतिकारी, उसके बाद मार्क्सवाद से अति प्रभावित आगे जाकर मार्क्सवाद से संदेह और फिर स्पष्टतः मानवतावाद का समर्थन उनके राजनीतिक सफर को स्पष्ट करता है।
विचारयात्रा, मानवतावाद, विचारधारा, मार्क्सवाद, विरक्ति, संदर्भ.
1. आर्शीवादम एडी, मिश्र कृष्णकांत, राजनीति विज्ञान, एस चंद एंड कंपनी, प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, 2014, पृष्ठ-5,6।
जॉन स्टुअर्ट मिल ने उदारवाद की जो संकल्पना प्रस्तुत की वह समाज में राजनैतिक उपचारों के द्वारा सुधारों के लिए मार्ग बनाने का मानचित्र बनी। समाज परंपरागत संदर्भों को लेकर आधुनिकता में प्रवेश करता है। यद्यपि मिल अपनी विवेचना ब्रिटेन के समाज के संदर्भ में कर रहे थे पर उनके विचारों से मिलती-जुलती पृष्ठभूमि यथा पुरुष वर्चस्ववादी मूल्य और संस्थायें भारत में भी उपस्थित थीं। स्त्री के आर्थिक-सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्षों को वैश्विक स्वर प्रदान करने में मिल की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। ब्रिटिश उपनिवेश के रूप में तथा स्वतंत्र भारत के रूप में दोनों ही स्तरों पर भारतीय राजनैतिक व सामाजिक संस्थाएं तथा आंदोलन व उनकी निर्माण प्रक्रियाएं स्त्री संघर्षों की गाथा सामने लाती हैं।
उदारवाद, समाज सुधार, स्त्री अधिकार, स्त्री आन्दोलन, संवैधानिक उपचार, लोकतंत्र.
1. ऑन लिबर्टी, जे.एस. मिल की रचना का हिंदी अनुवाद ‘स्वाधीनता‘ - अनु. महावीर प्रसाद द्विवेदी, राधा पब्लिकेशंस, दिल्ली, 2006, पृष्ठ-51।
This pilot study aimed to explore the personality traits and coping strategies of farmers in Chhattisgarh, India. The study included a sample of 50 farmers, who completed a personality assessment and a coping strategies questionnaire. The results showed that the farmers in Chhattisgarh were predominantly conscientious, agreeable, and emotionally stable. In terms of coping strategies, they relied heavily on problem-focused coping strategies such as seeking information, planning, and taking action, while they used less emotion-focused coping strategies such as seeking social support and using positive reinterpretation. The findings suggest that farmers in Chhattisgarh may have a unique personality profile and coping strategies that are tailored to their specific environmental and cultural context. Further research is needed to better understand the relationships between personality, coping strategies, and agricultural outcomes in this population.
Farmers, Personality, Agriculture, Coping Strategies.
1. Davis, C. A., & Hill, J. (2018). The role of personality and coping strategies in farming stress. Journal of Agromedicine, 23(2), 171-181.
The extensive use of technology in education is altering our ability to learn and teach. Artificial intelligence is one creative way for personalising the experiences of various learning groups, teachers, and tutors. Most AI technologies follow three basic principles: The process of obtaining, analysing, and modelling new experiences and behaviours is known as learning. Self-correction is the process of improving algorithms to obtain the most precise results. Using reasoning, select specific algorithms to perform a specific task. The application of AI techniques has enormous implications for all industries, including education. The embracing of technology looks to be one of the most appealing techniques to reforming businesses. This paper investigates the role of artificial intelligence in education fields.
Education, AI technologies , Modelling.
1. https://www.researchgate.net/publication/228618921_A_literature_review_on_artificial_i ntelligence#:~:text=Bhattacharyya.
The pandemic has agitated economies around the world. It has mainly affected individual’s life and it raised many challenges for commuters and their health. During the lockdown, many companies and Government offices allowed work from home to their employees. It gave rise to the adoption of flexible work models like hybrid and remote for office employees. After a few months of lockdown and restrictions, the companies recognized that the corona has had a long impact on the work life of people. Long months of corona lockdown have brought many merits of new work models with companies and now some companies are ready to give their employees more flexible working opportunities. Retaining employees in the new normal is a difficult task, so this study aims to analyze the influence of flexible work models on employee retention in the new normal.
Pandemic, Employee Retention, Hybrid Work.
1. S. Tipping, J. Chanfreau, J. Perry, & C. Tait. (2012). The Fourth Work-Life Balance Employee Survey. Department for Business, Innovation and Skills (BIS). https://scholarship. law.georgetown.edu/cgi/viewcontent.cgi?article=1009&context=legal
A well-functioning immune system is crucial for survival. For better functioning of immunity system nutritional status plays an important role. Macro- and micronutrients play a critical role in cellular functioning, and therefore an appropriate diet for the best immunological outcomes would be one that supports immune cell functions and allows them to initiate effective responses against pathogens, but also to rapidly terminate the response when needed and avoid underlying chronic inflammation. Nutrition can affect the micro biome, gut barrier function, inflammatory processes, and white blood cell function, all of which can influence immune function. In this article from nutrients, investigate the relationship between diet, nutrients, and the immune system. It describes the key functions of nutrients important to the immune system and their importance to a healthy body.This includes the role of macro and micro nutrients and the gut microbiome in intervene immunological effects.. The rainbow diet is a diet rich in colorful nutrients that boost the immune system, and millet is a traditional Indian food rich in macro and micronutrients that also boost the body’s immune system. Diet modifications for theimmune system applies in maximum clinical set ups, but may also play a role in society by reducing or delaying the onset of immune-intervene chronic diseases. Future research in this field will ultimately lead to a better understanding of the role of nutrition and immunity system and expedite the proper use of macro and micro nutrients to improve human health.
Nutrition, Micronutrients, Immune System, Macronutrients, Inflammation, Diet and Health.
1. Raymond J,Morrow K. Krause and Maha and the Nutrition Care Process,15th Philadelphia : Saunders: 2020.
वरुणा नदी के पश्चिम एवं दक्षिण भाग तथा गंगा के बायें तट पर स्थित काशी जिसके अन्य नाम वाराणसी तथा बनारस भी है। इस नगर के नाम के विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद है। कुछ विद्वानों नें काशी को वरुणा एवं असि नदियों के मध्य क्षेत्र को माना है, तो कुछ ने वरणावती नदी को वरुणा का प्राचीन नाम और वरणावती का परिष्कृत रूप वाराणसी को माना है। डॉ० मोतीचंद्र के अनुसार1 - वरणा शब्द एक वृक्ष का द्योतक है। प्राचीन काल में वृक्षों के नाम पर नगरों के नाम पड़ते थे, जैसे कोशम्ब से कौशाम्बी, रोहीत से रोहीतक इत्यादि। सम्भव है कि वाराणसी और वरणावती दोनों का ही नाम इस वृक्ष विशेष के नाम पर पड़ा है। गुप्त काल में काशी के सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक बिन्दुओं पर प्रकाश डालने हेतु साक्ष्य रूप में हमारे पास साहित्यिक एवं पुरातात्विक विवरण दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। काशी परिक्षेत्र के उत्खनित पुरास्थलों से काशी में गुप्तकालीन विभिन्न पक्षों पर प्रकाश पड़ता है। इन सभी साक्ष्यों में पुरातात्विक साक्ष्यों की प्रामाणिकता सर्वाधिक मानी गयी है। गुप्तों के काशी क्षेत्र पर अधिकार के समय निर्धारण के लिए कोई पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं किन्तु समुद्रगुप्त के राज्य में बनारस सम्मिलित था क्योंकि राजघाट से उसकी मुद्राएं मिली हैं।2 हालांकि समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भ लेख में काशी विजय का कोई प्रमाण नहीं मिलता। इसी प्रकार से प्रस्तुत शोध पत्र में गुप्तकालीन राजाओं के शासन एवं उनकी काशी परिक्षेत्र में अवस्थिति का विवेचन करने का प्रयास किया जायेगा।
गुप्त, काशी, संस्कृति, पुरातत्व, बौद्ध, जैन, हिन्दू धर्म.
1. मोतीचन्द्र, काशी का इतिहास, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी 1962, पृष्ठ - 04।
Businesses have the ability to develop a heightened awareness of the ways in which they have an effect on the economic, social, and environmental elements of society by engaging in the practice of corporate social responsibility, which is also referred to in certain circles as corporate citizenship. When a firm demonstrates what is known as “corporate social responsibility,” or CSR for short, it demonstrates that it operates its business in a way that is not only good to society but also to the environment, as opposed to a way that is destructive to both of these areas. Therefore, it is critical to comprehend what the key CSR activities are for both corporate executives and recipients in order to achieve more successful and pleasant outcomes. It is thus important to understand that what the important CSR initiatives are for beneficiaries and company executives so that more fruitful and satisfying results can be attained. The study moved further to explore the most important Voluntary CSR initiatives are for beneficiaries and company executives in Jammu division. With the use of a questionnaire, primary data were gathered for this purpose from 727 respondents in the Jammu division. Using version 25 of the SPSS software, the data were examined with the assistance of a cross tab analysis as well as an exploratory factor analysis. The results revealed that there was some disparity between CSR beneficiaries & company executives for the most important Voluntary CSR initiatives.
Corporate Social Responsibility, Company Executives Beneficiaries, CSR Perspective.
1. Becker-Olsen, K.L., Cudmore, A.B. and Hill, P.R. (2006) The Impact of Perceived Corporate Social Responsibility on Consumer Behavior. Journal of Business Research, 59, 46-53. http://dx.doi.org/10.1016/j.jbusres.2005.01.001.
In the current work, we have looked at how a Systematic Investment Plan (SIP) might help investments in mutual funds develop momentum and boost income percent. Additionally, research is done to determine the percentage of bank clients who invest in mutual funds, particularly through SIP, with particular reference to individual investors living in Lucknow, India. According to the results of the current investigation, higher-income individuals have a tendency to take more risks, and employees typically favor investments in fixed deposits, bonds, and post offices. The risk associated with investments made through Systematic Investment Plans (SIPs) is anticipated to be lower than that associated with one-time lump sum mutual fund purchases, according to our current mathematical analysis.Consequently, SIP appears to be a safer and advantageous style of investment for small investors, and in a larger context, it is advantageous for big investors as well. Our sample study also indicates that younger individuals are more likely to invest in mutual funds and like SIPs than older investors.Keywords: Mutual fund through SIP, Investors‘ behavior, Factors responsible.
Investment, Systematic Investment Plan (Sip ), Individual Investors.
1. Barclay, M. J., Pearson, N. D., & Weisbach, M. S. (1998, July). Open-end mutual funds and capital-gains taxes. Journal of Financial Economics, 49(1), 3–43.
भारतीय सामाजिक पितृसत्तामक व्यवस्था में स्त्रियों की भूमिका की सदैव उपेक्षा की गयी है। स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित इतिहास लेखन की ओर यदि दृष्टिपात करें तो विभिन्न वनवासी क्षेत्रों में हुए संघर्षो में अपने पारम्परिक हथियारों व कुशल युद्धनीति से औपनिवेशिक शक्ति को पछाड़ने वाली वनवासी स्त्री शक्तियों को पूर्णतः विस्मृत किया गया है। वनवासी संघर्षों का मुख्य आधार उनकी संगठित जनशक्ति रही है जिसमें महिलाओं व पुरुषों को समान स्थान दिया जाना चाहिए। वनवासी संग्रामी स्त्रियों के योगदान के चर्चा के बिना स्वतन्त्रता संग्राम का लेखन अधूरा है। अतः आवश्यकता है कि ब्रिटिशकालीन स्वतन्त्रता संघर्षों की एक ऐसी श्रृंखला का लेखन किया जाये जिसमें वनवासी स्त्रियों के योगदान से सम्बंधित विषयों कों समाहित कर उनके साथ न्याय किया जा सके। अब तक इन वनवासी स्त्री योद्धाओं को इतिहास लेखन में अन्य की भाँति गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ है, जबकि आज भी वनवासी समाज विभिन्न उत्सवों, लोक गीतो व श्रुतिकथाओं के माध्यम से अपने ऐतिहासिक धरोहर को संजोये हुए है। अतः इस शोधपत्र में प्रारम्भिक स्तर में हुए स्वतन्त्रता आन्दोलनों व विस्मृत वनवासी स्त्री योद्धाओं की भूमिका की चर्चा की गयी है।
वनवासी, नारी, शक्ति, स्वतन्त्रता.
1. गुप्ता रमणिका : “आदिवासी सौर एवं विद्रोह” सुरभि प्रकाशन, 2015, नई दिल्ली
आजकल भाषा अध्ययन-अध्यापन अधिकांश शिक्षार्थियों में एक लोकप्रिय विषय है। दुनियाभर के विद्यार्थी अपनी मातृभाषा ग्रहण करने के बाद द्वितीय भाषा या विदेशी भाषा सीखते है। प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य भाषा शिक्षण में व्यतिरेकी पद्धति की भूमिका का महत्व चर्चा करना है। शिक्षक को कोई भाषा जानने से ही शिक्षक को भाषा शिक्षण की क्षमता नहीं आती। आजकल पारंपरिक भाषा शिक्षण प्रविधियों के बदले आधुनिक शिक्षण प्रविधि और सामग्रियों का प्रयोग न करें तो शिक्षार्थियों में द्वितीय या विदेशी भाषा शिक्षण की उत्सुकता होते हुए भी छात्र अपने अपेक्षित उद्देश्य प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। भाषा शिक्षण-अधिगम में आज भी पारंपरिक विधियों का ही प्रयोग किया जाता है जिनसे भाषा शिक्षण शिक्षार्थियों से दूर होता जा रहा है। व्यतिरेकी पद्धति के सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्तकर स्रोत और लक्ष्य भाषाओं के व्यतिरेकी स्थान पहचान कर उन्हीं के अनुसार शिक्षण प्रविधियों और सामग्रियों के निर्माण से द्वितीय या विदेशी भाषा शिक्षण कार्य सुचारु बनाया जा सकता है। इस शोध कार्य के लिए प्राथमिक और द्वितीय आंकड़ों का प्रयोग किया गया जो त्रुटि विश्लेषण पद्धति के अनुसार विश्लेषण किया गया है।
व्यतिरेकी विश्लेषण, भाषा शिक्षण, द्वितीय भाषा, विदेशी भाषा, भाषा की त्रुटियाँ.
1. Ethnologue: Languages of the World (stylized as Ethnolo‘ue) is an annual reference publication in print and online that provides statistics and other information on the living Languages of the world. https://hi.wikipedia.org/wiki/
वेद शब्द विद् धातु $ घञ् प्रत्यय से निष्पन्न है जिसका अर्थ होता है ज्ञान विद् धातु जानने के अर्थ में जिसे जाना जाए, अर्थात् जो जानने योग्य हो, वह सब विद् धातु $ और $ घञ् प्रत्यय से बने वेद शब्द बोधक है। इस प्रकार हम देखते है कि सम्पूर्ण चराचर जगत् में जो भी है सभी वेद है अर्थात् अन्नतैः वेदः की अवधारणा है, इस अर्थ में वेद अनन्त है। हम कह सकते हैं कि विश्व का समस्त ज्ञान जो भी जान लिया गया है या भविष्य में जाना जाएगा सभी वेद शब्द की परिधि में है इसलिये वेदों को विश्व कोष अर्थात् ज्ञान विज्ञान का मुख्य स्रोत कहा गया है। वर्तमान युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है जहाँ सम्पूर्ण विश्व नित-नूतन आविष्कारों को अंजाम दे रहे हैं। नये-नये आविष्कारों ने ऊर्जा के महत्त्व को और अधिक बढ़ा दिया है। बढ़ते ऊर्जा के उपयोग और सीमित होते ऊर्जा के संसाधनों के दृष्टिगत विश्व वैज्ञानिकों का ध्यान सौर ऊर्जा की तरफ हुआ है और शासन स्तर पर सोलर प्लांटों के माध्यम से विद्युत ऊर्जा के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। इस शोधालेख का ध्येय वैज्ञानिकों एवं सामाजिकों को सौर ऊर्जा के प्राचीनतम ज्ञान से अवगत कराना है।
सौर उर्जा, अश्वशक्ति, सप्तरश्मि, सप्तपदी, ब्रह्माण्डीय, नक्षत्र.
1. ऋग्वेद 1-115, यजुर्वेद 7-42, अथर्ववेद 13-2-35
We are living in the age of information and technology where every aspects of life is affected by it. Specially the applications and services available on Internet is very useful and important in our daily life. It is vital in the field of marketing, purchasing, medical, politics, social, and education also. Now days the communication, education and learning through internet is very common, less expensive, fast, and popular for every person. Hence the big market of interactive distance learning in corporate field is now known as Electronic learning or in short ‘e-learning,’ It has exponentially boomed with the increase and advancement in the Internet technology and also due to intranets established by corporates.” Growth of e-learning the global market for corporate e-learning will grow nearly 27%, compounded annually (McGee, 2004). Percent increase over the number reported the previous year e-learning platforms are generally created with one or more of these three types of tools: HTML, PowerPoint and some Specialty Tools: such as Captivate, Articulate, Lectora, Raptivity, eXe etc.
WBT(web based training), JIT.
1. Adrich, Clark (2004). Simulations and the Future of Learning. San Francisco: Pfeiffer, p.240.
भारत के विकासशील देश में गरीबी तथा भुखमरी से उभरने के लिए अनेक रोजगार कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण विकास को केन्द्र में रखकर सीमित अवधि के लिए अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए उपलब्ध कराया जाता है। संकट के समय पर रोजगार कार्यक्रम मील का पत्थर साबित होते हैं। इन कार्यक्रमो से व्यक्तिगत एवं सामुदायिक स्थायी संपत्तियो में वृद्धि होने से दूसरे चक्र के रोजगारो का भी सृजन हो रहा है। इन कार्यक्रमो में मनरेगा प्रमुख स्थान रखती है। इसका प्राथमिक लक्ष्य ग्रामीणों की आजीविका को सुरक्षित कर अतिरिक्त आय के अवसरो में वृद्धि करना है। मनरेगा से लाखों लोगो को प्रतिवर्ष रोजगार मिलता हैं। प्रस्तुत शोध के अंतर्गत छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा विकासखंड में मनरेगा योजना के लाभार्थियो की स्थिती मे आए बदलाव को उजागर करने का प्रयास किया गया हैं। मनरेगा योजना के तहत कार्य करने वाले श्रमिकों के आर्थिक स्थिती में सुधार लाने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम प्रत्येक ग्रामीण परिवारों को जो शारीरिक श्रम करने के लिए तैयार है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक वित्तीय वर्ष के दौरान 100 दिवस का गांरटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। यह योजना रोजगार गांरटी के साथ-साथ श्रमिको के आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के लिए, गांव से शहरो की ओर होने वाले पलायन पर अंकुश लगाने और सामाजिक समानता तथा आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायता प्रदान करता है।
मनरेगा, श्रमिक, ग्रामीण क्षेत्र, रोजगार कार्यक्रम, विकासशील देश, गरीबी उन्मूलन.
1. Kumar Dhrmendra, Pal Chandra (2018) मनरेगा योजना प्रभावो एंव उपलब्धियो का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन, Online Journal of Multidisciplinary subject (ISN: 2349& 266X)
Virtual reality in current scenario has become very essential part in every sector. Due to its importance it has emerged significantly in education sector also after COVID-19. It has got tremendous growth in India. This study examined the usage, impact and expansion of virtual reality in villages. Study was based on secondary data and it is found that there is need for expansion of virtual reality in villages and for this purpose step for digitalization with affordable price is required. After that there is need to educate the students about the use of virtual reality for their studies. The growth of usage of virtual reality has seen significant boost in cities but it is still not up to the mark in villages.
Artificial, Virtual, Education, Technology, 3-D.
1. Al-Gindy, Ahmed & Felix, Chema & Ahmed, Ali & Matoug, Amani & Alkhidir, Munia. (2020). Virtual Reality: Development of an Integrated Learning Environment for Education. International Journal of Information and Education Technology. 10. 171-175. 10.18178/ijiet.2020.10.3.1358.
वर्तमान समय में पर्यटन उद्योग सबसे तेजी से बढ़ रहे उद्योगों में से एक है, जो विश्व में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला है साथ हीं सभी देशों के लिए विदेशी मुद्रा प्राप्ति का भी स्रोत है। पर्यटन का संबंध खुशी, छुट्टी, यात्रा और कहीं आने-जाने से है जिसमें पर्यटक अस्थाई तौर पर अपने निवास स्थान को छोड़कर यात्रा करते हैं। पारिस्थितिक पर्यटन, पर्यटन का एक प्रकार है जिसके अंतर्गत अपेक्षाकृत अबाधित या अनियंत्रित प्राकृतिक क्षेत्रों के दृश्यों व जंगली पौधों और जानवरों के साथ-साथ इन क्षेत्रों में पाए जाने वाले किसी भी मौजूदा संस्कृति का अध्ययन करने, प्रशंसा करने और आनंद लेने के विशिष्ट उद्देश्य के साथ यात्रा किया जाता है। इस शोध पत्र का प्रमुख उद्देश्य बड़कागाँव प्रखण्ड में पारिस्थितिक पर्यटन स्थलों की वर्तमान स्थिति का पता लगाना तथा बड़कागाँव प्रखण्ड में पारिस्थितिक पर्यटन स्थलों के विकास का प्रव्रजन पर प्रभाव की संभावनाओं का पता लगाना है। संकलित आंकड़ों से यह निष्कर्ष निकलता है कि 42.4 फीसदी लोग जो अपने आर्थिक उन्नति के लिए प्रवासित होना चाहते थे, किंतु स्थानीय रूप से पर्यटन उद्योग में रोजगार मिलने से वे लोग उस रोजगार का हिस्सा बनना चाहते हैं। यह शोध पत्र प्राथमिक आंकड़ें जैसे कि साक्षात्कार एवं प्रश्नावली विधि एवं द्वितीयक आंकड़ें जैसे कि हजारीबाग की आधिकारिक वेबसाइट, पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं तथा इंटरनेट इत्यादि के माध्यमों से संकलित आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन क्षेत्र में आंकड़ों की प्राप्ति हेतु सोद्देश्य प्रतिचयन का प्रयोग किया गया है। वर्णनात्मक एवं विश्लेषणात्मक विधियों के द्वारा आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
पर्यटन उद्योग, पारिस्थितिक पर्यटन, पर्यटक, पर्यटन स्थल, रोजगार, विकास.
1. बंसल, सुरेश चन्द्र (2019). पर्यटन भूगोल एवं यात्रा प्रबन्धन, मेरठ, मीनाक्षी प्रकाशन.
प्रस्तुत शोध पत्र में वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी के अपत्याधिकार नामक तद्धित प्रकरणगत गोत्रापत्यार्थ उदाहरणों के अर्थों का संस्कृत वाङ्गमय में प्रयोग पूर्वक पर्यालोचन किया गया है। प्रस्तुत शोधपत्र में केवल गोत्रापत्य अर्थ में आने वाले उदाहरणों का संस्कृत वाङ्गमय में प्रयोग देखा गया है। वर्तमान समय में पाणिनीय व्याकरण अध्ययन परम्परा अत्यन्त शिथिल हो गई है। अतः व्याकरण द्वारा व्याकृत पद का अर्थ क्या है? इसका वाक्य में प्रयोग कैसे होगा? यह अर्वाचीन वैयाकरणों में प्रायः उपेक्षित हो गया है। आज व्याकरण की अध्ययन-अध्यापन परम्परा में प्रक्रियापूर्वक पद-सिद्धि करना ही मुख्य रह गया है। व्याकरण द्वारा सिद्ध साधु शब्दों का प्रयोग गौण व उपेक्षित हो गया है। यद्यपि तद्धित विषयक ज्ञान हेतु अनेक पारम्परिक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं परन्तु नित्य नूतन विषय की खोज ही विषय में रुचि उत्पन्न करती है। अतः प्रस्तुत शोधपत्र वैयाकरण सिद्धांत कौमुदी के अपत्याधिकार प्रकरणगत गोत्रापत्यार्थ प्रयोगों के अर्थ पर्यालोचन द्वारा तद्धित प्रकरण के सौन्दर्य को एक नवीन दृष्टि से देखने का प्रयास है।
वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी, तद्धित, अर्थप्रयोग, अपत्याधिकार, गोत्रापत्य.
1. महाभारतम्/14.92.53(6)
Covid-19 Pandemic was challenging for all individuals worldwide. Its adverse impact was seen in every economic sector, including taxation. Individuals faced additional challenges in e-filing the return despite the existing challenges. The study intends to examine the number of individuals filing returns themselves or through a tax professional and the challenges they faced before and after the pandemic. 210 responses across India were gathered using a close-ended structured questionnaire. A reliability test was done, followed by percentage and mean. Cross Tabulation, Multiple Regression Analysis and Related-Samples Wilcoxon Signed Rank Test were done to check the hypotheses. Individuals moved towards tax professionals for e-filing their returns due to the pandemic. Also, there is a significant relationship between individuals’ challenges in e-filing the return themselves or through a tax professional before and after the pandemic. The insight into this study will help the Government frame relevant policies for such unforeseen circumstances and will guide individuals to face such challenges. It will guide future research in the area.
E-filing Return, Covid-19 Pandemic, Challenges, Self-filing of Return, Tax Professionals.
मानव जीवन के व्यवहारिक तीन पक्ष होते हैः ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियाशीलता। इन तीन पक्षों से मानव का समुचित उन्नति होती है। शिक्षक के व्यवसायिक निष्ठा से राष्ट्र का विकास होता है, क्योंकि अध्यापक ही अग्रिम पीढ़ी के नागरिकों के नैतिक चरित्र का निर्माता, मानवीय मूल्यों का निर्माता और अनुशासन का स्तम्भ है। ड्रेबर के अनुसार ‘‘शिक्षा एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बालक के ज्ञान, चरित्र तथा व्यवहार को ढाला तथा परिवर्तित किया जाता है।’’ वर्तमान शोध आलेख में उच्चतर माध्यामिक विद्यालयों के अध्यापकों की कार्य संतुष्टि का अध्ययन किया जायेगा।
कार्य सन्तुष्टि, अनुशासन, व्यवसायिक निष्ठा, मानवीय मूल्य.
1. भटनागर, सुरेश (2010), शिक्षा मनोविज्ञान, मेरठ आर लाल बुक डिपो।
शिक्षा, तकनीक, शक्तिशाली, जीवकोपार्जन, मस्तिष्क, अनुभूति.
1. माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें स्वयं विचार-विमर्श के बाद विद्यालयी शिक्षा के सभी के व्यक्तिगत अनुभव का समायोजन।
2. https://e-gyan-vigyan.com/uchchshiksha-mein-mukhy-samasyaayen/
3. https://www.etvbharat.com/hindi/jharkhand/state/ranchi/shortage-of-teachers-in-universities-of-jharkhand-in-ranchi/jh20210109054936758
किसी भी देश की जनसंख्या में परिवर्तन वहाँ की आर्थिक स्वरूप पर निर्भर करता है। छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है, जहाँ के अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर रहती है। कृषि के लिए अधिकतर किसान मानसून पर निर्भर रहते है, जिन क्षेत्रों में वर्ष भर जल की उपलब्धता रहती है, वहाँ साल में दो फसल पैदा करने की क्षमता बढ़ जाती है। प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य जनसंख्या परिवर्तन एवं जीवन स्तर में जल संसाधन की भूमिका का अध्ययन करना, जनसंख्या परिवर्तन एवं जीवन स्तर से जल संसाधन में प्रभावों का अध्ययन करना एवं जनसंख्या परिवर्तन एवं जीवन स्तर में जलसंसाधन के प्रति लोगों को जागरूक करना। अध्ययन क्षेत्र छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के अंतर्गत दुर्ग एवं धमधा विकासखंड का चयन किया गया है, जिनमें जल संसाधन के कारण जनसंख्या में परिवर्तन एवं जीवन स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया है। दुर्ग जिले की जनसंख्या वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 1503146 है एवं 2011 की जनगणना के अनुसार 1721948 है जिसका 10 वर्षीय जनसंख्या वृद्धि (प्रतिशत में) 14.56 प्रतिशत आंका गया है। इसी प्रकार दुर्ग जिले के अंतर्गत विकासखंड में दुर्ग की जनसंख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 997848 है। 2011 की जनगणना के अनुसार 1126731 है जिसका 10 वर्षीय जनसंख्या वृद्धि (प्रतिशत में) 12.91 प्रतिशत आंका गया है। धमधा विकासखंड की जनसंख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 223087 है 2011 की जनगणना के अनुसार 269990 है। 10 वर्षीय जनसंख्या वृद्धि (प्रतिशत में) 21.02 प्रतिशत आंका गया है जो कि जनसंख्या परिवर्तन को दर्शाती है। इसमे जल संसाधन की अहम भूमिका देखी जा सकती है।
जनसंख्या, परिवर्तन, जीवन स्तर, जल, संसाधन.
1. अग्निहोत्री, आशुतोष (2016). जनपद कन्नौज में घटते अधोभौमिक जल स्तर की स्थिति का भौगोलिक अध्ययन, शोध पत्रिका-रिसर्च स्ट्रैटजी, टवस.6,पृष्ठ क्र.165-168.
उद्यमिता एक ऐसा क्षेत्र है जिस ओर महिलाएं लगातार आकर्षित हो रहीं हैं। उद्यमी वह अभिकर्ता है जो एक देश की आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उद्यमी कोई भी हो सकता है, पुरुष उद्यमी या महिला उद्यमी। दोनों ही देश की अर्थव्यवस्था के लिए इंजन का कार्य करते हैं। पिछले कुछ दशकों में महिलाओं ने व्यवसायों की ओर अपनी रुचि दिखाई है तथा महिला स्वामित्व वाली व्यवसायों की संख्या में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है। महिला श्रम मुख्यतः सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रम क्षेत्रों की ओर प्रोत्साहित हो रही हैं। उद्यमों का विकास आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समग्र औद्योगिक विकास से प्रत्यक्षतः जुड़ा है। महिलाओं की राय है कि पारंपरिक कृषि की तुलना में सूक्ष्म, लघु, तथा मध्यम उपक्रमों में उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार की बेहतर संभावनाएं हैं। अतः महिलाओं को उद्यमी के रुप में स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। प्रस्तुत शोध पत्र भारत में सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रमों में महिलाओं की भागीदारी के आंकड़ो का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रम, तकनीकी प्रगति, वित्तीय समस्याएं, निवेश की राशि, वार्षिक कारोबार.
1. तंवर, नितेश कुमार और कुमार लोकेश (2021), कृषि उद्यमिता के माध्यम से महिला सशक्तीकरण, राजस्थान प्रताप खेती, 7-8
किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली एक परिस्थतिकी तंत्र के रूप में कार्य करती है, जिसमें स्कूली शिक्षा प्रणाली में निरंतर सुधार के लिए एक समूह शिक्षा प्रणाली को निष्पादित करने के लिए कई प्रकार की योजनाएं रणनीतियों को अपनाते हैं। इस कार्य को स्कूल प्रबंधन मिलकर नियोजित करते हैं जिसमें सेवा प्रदाताओं के साथ-साथ अनेक प्रकार के हितधारक शामिल होते हैं। ईसीसीई कार्यक्रमों में देखभाल करने वाले शिक्षक एवं हितधारक ऐसे सूत्रधार होते हैं जो बच्चों के विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण प्रबंधन योजना बनाते हैं। चुंकि प्रत्येक संस्था के अपने लक्ष्य और आदर्श होते हैं और उनकी सफलता पूर्वक प्राप्ति के लिए एक बेहतर प्रबंधन की जरूरत होती है। प्रभावशाली प्रबंधन द्वारा स्कूल की कई समस्याओं का निवारण होता है इसलिए प्रबंधन प्रणाली का सशक्त होना अत्यधिक आवश्यक है। स्कूल प्रबंधन प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न सेवाएं शामिल होती हैं जैसे भवन की आधारभूत संरचनाओ का रखरखाव, स्कूल के स्वच्छता, स्कूल का बजट, स्कूल के शिक्षक एवं स्टाफ सदस्य एवं प्रयोगशाला, पुस्तकालय,छात्रों की उपलब्धि एवं मूल्यांकन, शिक्षा को सहकारी बनाना जिसमें अध्यापक और छात्र दोनों भाग ले सकें, विद्यालय की नीतियों को आधुनिक शैक्षिक दर्शन अनुरूप बनाना, विद्यालय के कार्यालय की देखभाल, विभिन्न कार्यक्रमों का गठन, विभागीय अधिकारियों का सहयोग इस प्रकार के विभिन्न कार्य विद्यालय प्रबंधन के अंतर्गत आते हैं। इन सभी स्कूली प्रबंधन प्रणाली को व्यवस्थित ढंग से संचालित करने में स्कूल के संस्थापक एवं संचालकों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शोध का उद्देश्य स्कूल संचालन व्यवस्थाओं में स्कूली प्रबंधन प्रणाली संबंधित चुनौतियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना है। वर्तमान शोध चयनित सार्वजनिक और निजी स्कूलों में कार्यान्वयन प्रारंभिक बचपन और शिक्षा की व्यापक चुनौतियों को समझने के लिए किया गया है। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पटना नगर पालिका क्षेत्र के अंतर्गत निजी एवं सार्वजनिक स्कूलों में ईसीसीई कार्यान्वयन की जांच करना एवं संचालन में विभिन्न चुनौतियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना था तथा सुधार के तरीकों की पहचान करके उनकी अनुशंसा करना था।
ईसीसीई केंद्र, हितधारक, समग्र विकास, परिस्थितिकी तंत्र.
1. Kadariah, K. (2020). Analysis of the Principal’s Role in Improving the Quality of Primary School Management Jurnal Ilmiah Ilmu Administrasi Publik, 2, 305. https://doi.org/10.26858/jiap.v9i2.12333
छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है। आज भी यहाँ की दो-तिहाई से अधिक आबादी कृषि कार्य में संलग्न है और इनकी आजीविका का मुख्य आधार कृषि है। कृषि राज्य की अर्थव्यवस्था को केवल मजबूती प्रदान नहीं करता है, अपितु राज्य की सभी औद्योगिक इकाईयों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराती है। कृषि राज्य की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ है, यही कारण है कि कृषि एवं यहां के कृषकों के विकास के लिए सरकार द्वारा दर्जनों प्रकार की कृषि विकास योजनाओं संचालित हैं। कृषि विकास एवं कृषकों के विकास के लिए संचालित योजनाओं में केन्द्र एवं राज्य दोनां सरकारों की ओर से संचालित योजनाएं सम्मिलित हैं। प्रस्तुत शोध पत्र मे इन्हीं योजनाओं का अध्ययन किया गया है।
कृषकोन्मुखी, जैविक खेती, फसल बीमा योजना, किसान मेला, अक्ती बीज संवर्धन.
भारत के सशस्त्र सेनाओं के ज्यादातर हथियार सोवियत काल के तथा रूस उत्पादित है। इन हथियारांे के लगातार प्रतिस्थापन होने से भारत द्वारा नए वैश्विक व्यवस्था के आधार पर स्वदेशीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत, वर्श 2001 से इस दिशा में नवीन कदम उठाए है। वर्ष 2014 के पष्चात् मैक इन इंडिया, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया, नकारात्मक सूची, स्वदेशी क्रम को बढ़ावा जैसे कदम उठाने से रक्षा उत्पाद के वैश्विक क्रय में कमी होना शुरू हुआ है। इन कदमों से निजी इकाईयों को रक्षा क्षेत्र में बढ़ावा मिल रहा है।
स्वदेशीकरण, रक्षा अधिग्रहण, मैक इन इंडिया, निजी इकाई.
1. iDR> 1 Feb 2023
Anthocyanins are water soluble polyphenol natural pigments. They are responsible for the wide range of colors in the petals of flowering plants and they may vary the color from salmon- pink, through scarlet, magenta and violet to deep blue (Haslam, 1995). Chemically anthocyanin are B-glycosides of anthocyanidins. The anthocyanins are sub divided into the sugar-free anthocyanidin aglycones and the anthocyanin glycosides. The anthocyanins have as well been used in chemotaxonomy, where they have provided a positive contribution in the reclassification of certain plants. The objectives of the study were to extraction and characterization of anthocyanin pigments from three species of Indigofera (Linn.) viz., From spectral value and compatibility of Rf value, eight spots were identified as anthocyanins from all three species of Indigofera. Delphinidin 3, 5 diglucoside and Cyanidin 3-( 2G- glucosylrhamnosylglucoside) were found in all three species; Cyanidin 3-rhamnosylglucoside was found in Indigofera enneaphylla and Indigofera linifolia. Cyanidin 3-rhamnosylglucoside-5-glucoside and Pelargonidin 3-glucoside was detected in Indigofera endecaphylla, Pelargonidin 3,5-diglucoside in Indigofera enneaphylla and that of Peonidin 3,5-diglucoside & Cyanidin 3-glucoside in Indigofera linifolia.
Anthocyanin, Indigofera, Polyphenol, Glycosides, Chemotaxonomy, Paired affinity.
1. Harborne, J.B. 1966. The Evolution of Flavonoid Pigments in Plants, In:.Swain, T. (ed.), Comparative Phytochemistry, pp: 271-296, Academic Press, London
Migration refers to the movement of the people from one place to another. It occurs due to multiple factor such as push factor which forces people to out migrate and pull factors which attracts people by providing better socio-economic opportunities. According to Demographic Dictionary,” Migration is a form of geographical mobility or spatial mobility between one geographical unit and another, generally involving a change in residence from the place of origin or place of departure to the place of destination or place of arrival, for a considerable period of time”. Rural to urban migration from Chatra is still rising for obtaining better employment opportunities, health facilities, education and better standard living provided by urban centre. Among three criteria (Intra-district, Inter-district and Inter-state) used in this paper, rural to urban migration in Intra-district is the highest which accounts for 43.30%. This paper tries to find out the various reasons behind the rural to urban migration and examines the Rural- Urban Migration from the Chatra district of Jharkhand and its consequences on the source region. Analyzed data reflects that sociological factors dominate over the employment and other factors. The research paper is based on the secondary data. Secondary data have been collected from District Census Handbook, Research Paper, Newspaper etc. The nature of the paper is descriptive and analytical.
Migration, Rural-Urban, Socio-economic, Employment, Standard of Living.
1. Bhagat R., (2016). Migration Patterns in Jharkhand: Nature, Extent and Policy Issue
प्रस्तुत लेख में ई-कामर्स का विस्तृत परिचय दिया गया है जिससे ई-कामर्स को समझने में आसानी हो। वर्तमान में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में ई-कामर्स की क्या भूमिका है तथा ई-कामर्स के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है। ई-कामर्स के विकास में आने वाली चुनौतियों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी गयी है साथ ही साथ इन चुनौतियों का किस प्रकार समाधान किया जा सकता है इस पर भी प्रकाश डाला गया है।
ई-कामर्स, अर्थव्यवस्था, इण्टरनेट, व्यापार.
1. ई-कामर्स की अनिवार्यता (एम0के0 मलिक)
2. आर्थिक सर्वेक्षण-2020-21
3. दैनिक जागरण, अमर उजाला (लेख)
4. सूचनार्थ प्रणाली और ई-व्यवसाय (प्रो0 एस0एल0 अरोड़ा)
प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा परिवार नियोजन की जानकारी एवं लाभप्रद योजनाओं का प्रभाव : एक अध्ययन करना है। भारत देश की तेजी से जनसंख्या बढ़ रही है। इस हेतु सरकार की ओर से अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से महिला एवं पुरुष नसबंदी सेवा सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क दी जा रही है साथ ही प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। जागरूकता अभियानों के कारण जागरूकता बढ़ी है। शोध पत्र हेतु शोधकर्ता द्वारा शोध समस्या को ध्यान में रखते हुए अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप और वर्णनात्मक शोध प्ररचना का सम्मिलित रूप से उपयोग किया है। मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र को चुनते हुए ग्वालियर जिले के 30 (15 शहरी तथा 15 ग्रामीण) पुरुषों का चयन किया गया। संबंधित तथ्यों के संकलन हेतु स्व-निर्मित प्रश्नावली का प्रयोग किया गया है। समंकों के विश्लेषण हेतु प्रतिशत सांख्यिकीय विधि का प्रयोग किया गया है। निष्कर्ष रूप में ज्ञात होता है कि घर में परिवार नियोजन कार्यक्रम की जानकारी देने शासन या अस्पताल की ओर से कोई नहीं आता है, वहीं लोगो ने परिवार नियोजन से संबंधित सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया है।
सरकार, परिवार नियोजन, जानकारी, योजना.
1. चाकले ए.एम., (2003), परिवार नियोजन और परिवार कल्याण, आगरा।
2. गुप्ता एम.एल. एवं शर्मा डी.डी., (2019), समाजशास्त्र, आगरा।
3. कपिल एच.के., (2010), अनुसंधान विधियाँ, एच.पी. भार्गव बुक हाउस, आगरा, 2010।
प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा दिव्यांगां के लिए चलाई गई योजनाओं के लाभ एवं उनके सामाजिक स्तर में सुधार का अध्ययन करना है। दिव्यांग बालक-बालक (बच्चे) जो अपनी योग्यताओं, क्षमताओं, व्यक्तित्व अन्य व्यवहार के कारण अपनी आयु के अन्य (सामान्य) बालकों से भिन्न होते हैं, वे विशेष आवश्यकता वाले बालक कहलाते हैं। शोधार्थी द्वारा मध्यप्रदेश के ग्वालियर महानगर के 30 दिव्यांग बालकों को न्यादर्श में सम्मिलित करते हुए स्व-निर्मित प्रश्नावली बनाकर तथ्यों का संकलन किया तथा सांख्यिकीय विधि का प्रयोग कर निष्कर्ष में पाया कि भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही दिव्यांग बच्चों के लिये योजनाये लाभकारी हैं। वह भारत सरकार के द्वारा दी जा रही योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। समाज में दिव्यांग बच्चों को विशेष सुविधायें दी जाती है तथा भारत सरकार के द्वारा प्रदान की गई योजनाओं से उनके सामाजिक स्तर में सुधार हुआ है।
सरकार, दिव्यांग योजना, लाभ, सामाजिक स्तर.
1. चटोपाध्याय अंजना, (1986), ऑल इण्डिया डायरेक्ट्री ऑफ एजुकेशनल एण्ड वोकेशनल ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट फार द हैन्डीकैप्ड, पैट्रिएट पब्लि., नई दिल्ली।
2. राना मनी डी., (1988), फिजीकली हैन्डीकैप्ड इन इण्डिया, साउथ एशिया बुक 1ेज एडिशन।
2. शर्मा, वाई. के., (2009), शारीरिक विकलांग बालक-सिद्वान्त, प्रक्रिया एवं विकास, कनिष्क पब्लिकेशन, नई दिल्ली।
3. सिंह सीमा, (2000), एजुकेशन रिहेबिलिटेशन ऑफ हैन्डीकैप्ड चिल्ड्रेन, क्लासिक पब्लि., जयपुर।
4. भार्गव महेश, (2001), आधुनिक मनोविज्ञान परीक्षण एवं मापन, पी. भार्गव हाउस, आगरा।
उराँव को जनजाति शब्द के पर्याय के रूप में आदिम जाति, वन्य-जाति, आदिवासी-वनवासी, असाक्षर, निरक्षर, प्रागैतिहासिक, असभ्य जाति आदि नाम दिया जाता रहा है, परन्तु इसमें से अधिकांश एक ही अर्थ को घोषित करने वाले हैं। इन्हें असभ्य, निरक्षर या असाक्षर आदि कहना आज पूर्णतया अनुचित और अव्यवहारिक है। यहाँ हमने जनजाति कहना ही उपयुक्त माना है। उसी समाज से उराँव जनजाति के लोगों की देश की आर्थिक और सामाजिक समृद्धि में हिस्सेदारी बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से, विशेष रूप से उराँव जनजातीय समुदायों को, पिछले कई दशकों में कार्यान्वित विकास परियोजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिला है बल्कि इस अवधि के दौरान कार्यान्वित विकास परियोजनाओं का उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इनके मूल निवास को भी तत्कालीन शासक द्वारा विभिन्न समस्याओं की चुनौतियाँ सहन करना पड़ा है। वर्तमान में उराँव जनजाति ने भी अपने आप को समाज की मुख्य धारा से जोड़ते हुए अनेक बड़े शहरों में पलायन कर अपनी आर्थिक तंगी को दूर किया है और सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण पदों पर अपना वर्चस्व कायम किया है। उराँव जनजातियों में ये जो प्रतिस्पर्धा विकसित हुई है उससे इनके सर्वागींण उन्नयन की अपार सम्भावनाओं का जन्म हुआ।
कुड़ुख भाषा, उराँव, मजदूरी, जनजाति, संस्कृति, उन्नयन.
1. कुजूर मिखाएल, उराँव संस्कृति, पृ. 01, 03-04।
2. अहमद जियादुद्ीन, (1978) बिहार के आदिवासी, मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन, दिल्ली।
3. ख़लखो शान्ति, (2009) उरॉव संस्कृतिः परिवर्तन एवं दिशा, कुडुख विकास समिति राँची, पृ 1-3।
4. ख़लखो शान्ति, (2009) उरॉव संस्कृतिः परिवर्तन एवं दिशा, कुडुख विकास समिति राँची, पृ 11-12।
5. सिनगी दाई त्रमैसिक पत्रिका, लेख महली लिवंस तिर्की-कुड़खर गही पुरखर-भूमध्य सागरीय क्षेत्र, हड़प्पा अरा रोहतासगढ़ गूटी (7000 ई0पू0.8000 ई0पू0) पृ 14।
6. आदिवासी सत्ता मासिक पत्रिका, छत्तीसगढ़ की एक विकासशील जनजाति ‘उराँव‘, अक्टूबर-नवंबर 2008, पृ 33।
7. दुबे श्यामाचरण, आदिवासी भारत, राजकमल, प्रकाशन दिल्ली, पृ 3।
8. राय एस.सी., द ओरॉव ऑफ छोटानागपुर, पृ 10।
9. उराँॅव प्रकाश चन्द्र (1988) बिहार के उराँव, आनन्द ज्ञान प्रकाशन, महावीर चौक, राँची, पृ 01।
10. शर्मा बिमला चरण एवं किर्ती विक्रम, झारखण्ड कीं जनजातियां, पृ 365।
11. एजरआ मासिक पत्रिका, (2002) लेख फा. पेत्रुस केरकेट्टा, ‘‘कुँडु़ख़ जाति कहाँ थी और कहाँ जा रही है, पृ 01।
Maithilisharan Gupta is considered a successful and popular poet in Hindi literature. It is not necessary to prove this statement because Guptaji had got the title of national poet. Gupta\'s time was a period of political awakening. The freedom movement was getting stronger day by day under the leadership of Gandhiji. Swadeshi realization was at the center of importance, while Acharya Mahavir Prasad Dwivedi was handling the literary front. Poetry was connecting with contemporary topics through Khadi Boli Hindi. Brajbhasha was leaving Hindi poetry. In such an environment, Maithilisharan Gupta\'s great poet\'s personality cast a shadow on Hindi literature. This was the time when Hindi prose was gaining prominence in literature. The composition of drama in prose mode had its own importance. The importance that drama had received during the Bhartendu period, continued to flow even further. In later times, drama became established as a major genre in Hindi literature. Poet Gupta also wrote plays in the then literary environment. Also translated plays from Sanskrit. It is an interesting topic of research that what category were Gupta\'s plays and why they did not get fame....? In the present letter, an attempt has been made to throw light that even though Gupta ji has composed the play, his poet personality always dominated him. Gupta ji is seen less as a dramatist and more as a poet in his plays. His plays are presented from this point of view-a survey.
Maithilisharan Gupta, Hindi literature, movement, drama, poet.
1. Saraswati, January 1905 AD. 2. Maithilisharan Gupta Poetry Reference, Dr. Nagendra. 3. Plays of Maithilisharan Gupta. 4. Hindi Drama Dictionary.