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Publishing Year : 2024

JULY TO SEPTEMBER
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विविध आधारभूत प्राकृतिक संसाधनों में भूमि जिस पर सम्पूर्ण जीव-जगत् निर्भर करता है, एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। यह मानव के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भूमि ही वह मंच है जिस पर मानवीय क्रियाकलाप होते हैं और मानव जाति का अस्तित्व और समृद्धि इसके इष्टतम उपयोग पर निर्भर है। भारत वर्ष में पर्याप्त भूमि क्षेत्र है लेकिन उसे उपयोगी और शाश्वत बनाये रखने के लिए उचित देखभाल की आवश्यकता है। भूमि उपयोग प्रतिरूप के कालिक परिवर्तन का विश्लेषण वर्तमान और भूतकालीन विकास के स्तर को प्रदर्शित करता है, इसलिए इसके द्वारा भावी विकास की संभावनाओं का आंकलन किया किया जा सकता है। वर्तमान में बढ़ते जनदबाव के कारण भूमि का अनुकूलतम उपयोग करना अनिवार्य हो गया है। इस शोधपत्र का मुख्य उद्देश्य अकबरपुर विकासखण्ड में भूमि उपयोग के स्थानिक प्रतिरूप में हो रहे परिवर्तनों का विश्लेषण करना है। प्रस्तुत शोधपत्र द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है, जो कि जनपद अम्बेडकरनगर की जनगणना हस्तपुस्तिका 2011, जनपद अम्बेडकरनगर की सांख्यिकीय पत्रिका वर्ष 2001 एवं 2021, जनपद अम्बेडकरनगर गजेटियर से प्राप्त किये गये हैं। तालिका, मानचित्र,ग्राफ एवं पाई डायग्राम कंप्यूटर की सहायता से निर्मित किया गया है। मानचित्र के निर्माण हेतु। तब ळप्ै साफ्टवेयर का प्रयोग किया गया है।

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प्राकृतिक संसाधन, भूमि उपयोग प्रतिरूप, संपोषणीय कृषि विकास.

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  1. District Census Handbook, Ambedkarnagar, 2011, Census of India.

2. District Gazetteers, 1960, Faizabad, Published by Government of Uttar Pradesh.
3. District Statistical Diary, Ambedkarnagar, (2001-2002) Economics and Statistics Divison, Uttar Pradesh.
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7. Stamp, L. D., (1962) The Land of Britain : Its Use and Misuse, Longmans Green & Co. Ltd.,London.
8. Tripathi, D.K. & Kumar, M. (2012) Remote Sensing based analysis of land use/land cover Dynamics in Takula block, Almora district (Uttarakhand). Journal of human ecology, Vol. 38 (3), p. 207-2012.
 

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शिक्षा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास होता है। शिक्षा मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण लक्षणों को प्राप्त करने का उपयोगी साधन है। शिक्षक अपने पूर्व अनुभव एवं पूर्व अर्जित ज्ञान के द्वारा छात्रों को नवीन अनुभव कराता है तथा उनके भावी जीवन का निर्माण करता है, अतः शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक अनिवार्य है। जिस प्रकार एक कुम्हार गीली मिट्टी को उचित व मजबूत आकाश स्वरुप पहचान देता है ठीक उसी प्रकार एक शिक्षक भी बच्चों को शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और नैतिक मूल्य प्रदान कर समाज व राष्ट्र के लिए एक मजबूत नींव तैयार करता है परंतु यह कार्य शिक्षक तभी कर सकता है, जब उसे अपने कार्य के प्रति संतुष्टि होगी। ग्रामीण अंचलों में संसाधनों का अभाव रहता है जिसका असर शिक्षक की कार्य संतुष्टि पर पड़ता है।

 

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पुरुष, महिला, शिक्षा, शिक्षक, शिक्षार्थी.

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  1. चौबे, के.पी. (1995) बी.टी.सी. प्रमाण पत्र हेतु चयनित महिला एवं पुरूष प्रशिक्षार्थियों की जनसंख्या शिक्षा संबंधी अभिवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन, एम. एड. लघुशोध प्रबंध, पं. रविशंकर शुक्ल वि.वि. रायपुर।

2. गौड़, शोभा, (1998) गोरखपुर मंडल के प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत् बी.टी.सी. एवं विशिष्ट बी.टी.सी. प्रशिक्षित अध्यापकों की कार्यसंतुष्टि, प्रभावशीलता एवं समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन।
3. जोशी, हरीका एल. (2004) ए कम्परेटिव स्टडी ऑफ जॉब स्ट्रेस, जॉब इनवाल्वमेंट एण्ड जाब सटिसफेक्शन ऑफ बी.एड. टीचिंग एण्ड बी.एड. ट्रेण्ड टीचर्स ऑफ राजकोट सौराष्ट्र रीजन ऑफ गुजरात स्टेट, पी.एच.डी. एजुकेशन, सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी, राजकोट।
4. मसीह, आनंद (2018) रायपुर जिले के प्राथमिक स्तर के विद्यालयों के शिक्षकों की अभिवृत्ति का विद्यार्थियो के शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन। एम. एड. लघु शोध प्रबंध, पं. रविशंकर शुक्ल वि.वि. रायपुर।
5. नायक, राजेन्द्र (2013) ग्रामीण अंचल में कार्यरत उच्च प्राथमिक शिक्षक के कार्य संतुष्टि एवं समायोजन क्षमता का उनके विद्यार्थियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन। एम.एड. लघु शोध प्रबंध, पं. रविशंकर शुक्ल वि.वि. रायपुर।
6. सौराष्ट्र रीजन ऑफ गुजरात स्टेट, पी.एच.डी. एजुकेशन, सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी, राजकोट।
7. Jordan G. Apawan, Gerly T. Rote (2023), Teacher’s Job satisfaction and Teaching commitment, Psychology and Education: A multidisciplinary journal, Volume: 9, p.152-158 Document ID: 2023PEMJ738.
9. Shan, M.H. (1998), professional commitment and satisfaction among teacher’s in urban middle schools. Journal of education research, 92, 67-73 http://dx.doi.org/10.1080/002206 79809597578
10. Sharma, Sumeer (2010) Professional commitment of teacher educators in relation to their emotional intelligence, job satisfaction and organizational climate, Punjab University, Department of education.
11. Swami, R. Lal Mal  (2016), Job satisfaction and organizational commitment among middle school teacher’s in Aizawl City, Government Harnbanga College Aizawl.
 

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Financial stability has become a top priority for individuals in today’s world. To achieve financial independence and security, people are increasingly turning to investments. Making informed investment decisions requires a thorough understanding of the various investment options available. This study aims to provide an overview of the diverse investment landscape in the modern era, with a focus on short-term, medium-term, and long-term investment opportunities. By examining the benefits and characteristics of different investment avenues, this research seeks to empower individuals to make sound investment choices. Utilizing secondary data, the study will explore the investment options prevalent in the Indian market, including both traditional financial instruments and alternative investments. Ultimately, this research endeavors to contribute to financial literacy by shedding light on the potential pathways to financial well-being through strategic investment.

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Financial Stability, Investment Options, Financial Independence, Investment Landscape, Financial Security, Indian Market.

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  1. Chandra, Prasanna (2002) Investment Analysis andPortfolio Management, Tata McGraw Hill, Noida, Uttar Pradesh.

2. Jain, Dhiraj and Jain, Parul (2012) Impact of Demographic factors on Investment Decision of Investors in Rajasthan, Researchers World, Journal of Arts, Science and Commerce, Volume 3, Issue 2(3), pp. 81-92, April 2012.
3. Jain, Priyanka (2012) Investment Avenues, International Journal of Advancements in Research and Technology, Vol 01, p. 36-47
4. Jain, Rajeshwari (2014) An Analysis of Income and Investment Pattern of Working Women in the City of Ahmadabad, International Journal of Research in Management and Technology, Volume 4, No.6, p. 138-146, December 2014
5. Sathiyamoorth, C. and Krishnamurthy, K. (2015) Investment Pattern and Awareness of Salaried class Investors in Tiruvannamalai District of Tamil Nadu, Asia Pacific Journal of Research, Volume 1, Issue 26, p. 75-83, April 2015.
6. Sireesha, P. Bhanu and Laxmi, Sree (2013) Impact of Demographics on select Investment Avenues: A case study of twin cities of Hyderabad and Secunderabad, India, International Journal of Marketing, Financial Services and Management Research, Volume 2, Issue 6, pp. 47-55, June 2013.
7. Virani, Varsha (2014) Saving and Investment Pattern of School Teachers – A Study with Reference to Rajkot City, Gujarat, Abhinav Journal of Research in Commerce and Management, Volume 2, Issue 4, p. 13-27.

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सभ्यता और संस्कृति दोनों आपस में पूरक है। संस्कृति मनुष्य का सीखा हुआ व्यवहार है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती है तथा मानवो का रीति रिवाज परम्परा तथा वस्त्र पहनने आदि का ढंग है। संस्कृति से मानवों में सभ्यता और नैतिकता का विकास होता है। संस्कृति एक समाज के जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसेः कि उनके विश्वास, परंपराएँ, कला, भाषा, और रीति-रिवाजों का है। यह समाज के लोगों के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को दर्शाती है। सभ्यता एक अधिक व्यापक और संगठित सामाजिक प्रणाली को संदर्भित करती है, जिसमें सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक संरचनाएँ शामिल होती हैं। सभ्यता का निर्माण उस समाज की सांस्कृतिक परंपराओं, तकनीकी उन्नति और प्रशासनिक तंत्र से होता है। संक्षेप में, संस्कृति सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जो सभ्यता के सामाजिक और ऐतिहासिक विकास को आकार देती है। व्यक्ति जिस समाज में रहता है उसका आचार-विचार का निर्माण उसी के अनुरूप बनता है।

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संस्कृति, सभ्यता, विकास, समाज.

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  1. खण्डेलवाल, जयकिशन प्रसाद (1970) प्राचीन भारतीय संस्कृति कला और साहित्य, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, प्रथम संस्करण, पृ. 10।

2. खण्डेलवाल, जयकिशन प्रसाद (1970) प्राचीन भारतीय संस्कृति कला और साहित्य, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, प्रथम संस्करण, पृ. 10।
3. गुप्त, तनसुखराम (2018) निबंध सौरभ, सूर्य भारतीय प्रकाशन, नई सड़क, दिल्ली पृ. 782।
4. खण्डेलवाल, जयकिशन प्रसाद (1970) प्राचीन भारतीय संस्कृति कला और साहित्य, विनोद पुस्तक मंदिर आगरा, प्रथम संस्करण, पृ. 4।
5. गुप्त, तनसुखराम (2018) निबंध सौरभ, सूर्य भारतीय प्रकाशन, नई सड़क, दिल्ली, पृ. 781।
6. खण्डेलवाल, जयकिशन प्रसाद (1970) प्राचीन भारतीय संस्कृति कला और साहित्य, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, प्रथम संस्करण, पृ. 5।

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प्रस्तुत लेख बालकों के मनोवैज्ञानिक विकास पर पालन पोषण शैलियों के प्रभावों का एक सिंहावलोकन है जिसमें व्यक्तित्व, लक्षण, भावनात्मक, सामाजिक और नैतिक विकास के साथ-साथ अप्रभावी या खराब पालन पोषण के कारण समस्या व्यवहार का उद्भव शामिल है। माता-पिता तथा परिवार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष संपर्क के परिणामस्वरूप बालकों के समाजीकरण के तंत्र पर प्रकाश डालता है। यह लेख सुझाव देता है कि आधिकारिक पालन-पोषण सामान्य और स्वस्थ मनोवैज्ञानिक विकास के लिए सबसे बड़ा योगदान कारक है, जबकि सत्तावादी एवं अनुमोदक पालन-पोषण शैलियाँ अनुचित शैलियाँ हैं और उपेक्षापूर्ण या असंबद्ध पालन-पोषण शैली एक ख़राब पालन-पोषण है जो भविष्य में सभी प्रकार के समस्याग्रस्त व्यवहारों और कुसमायोजन के लिए जिम्मेदार है।

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पालन-पोषण की शैलियाँ, मनोवैज्ञानिक विकास.

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  1. Hong, E. (2012) Impacts of parenting on children’s schooling. Journal of Student Engagement: Education matters, Volume 2, Issue 1, p. 31-41.

2. Jacob S. E. (2015) Parental Influence on Adolescent Development. International Journal of Engineering Research & Technology (IJERT), Volume 3, Issue 28, p. 1-3
3. Johari T., Zulkifli M. and Maharam M. (2011) Effects of Parenting Style on Children Development. World Journal of Social Sciences, Vol. 1. No. 2, Pp. 14 – 35
4. Joseph M. V., John J. (2008). Impact of parenting styles on child development. Global Academic Society Journal: Social Science Insight, Vol. 1, No. 5, pp. 16-25. ISSN 2029-0365
5. Kotchick, B. A., & Forehand, R. (2002). Putting parenting in perspective: A discussion of the contextual factors that shape parenting practices. Journal of Child and Family Studies, 11(3), 255–269.
6. https://www.abplive.com/lifestyle/best-parenting-tips-for-good-upbringing-of-your-child-in-hindi-2198985, Asseced on 03/10/2023.
7. https://hindi.news18.com/news/lifestyle/10-good-parenting-tips-bgys-3489289.html, Asseced on 03/10/2023.
8. https://www.schoolmykids.com/parenting/25-tips-for-how-to-be-a-good-parent-in-hindi, Asseced on 03/10/2023.
9. https://skillinfo.in/good-parenting-skills-in-hindi/, Asseced on 03/10/2023.
10. http://theattachedfamily.com/?p=2151, Asseced on 03/10/2023.

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मानवीय अधिकार अस्मिता का कवच, विश्वशान्ति एवं कल्याण का मूल मंत्र है। मानव एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुये वह अपने व्यक्तित्व का विकास करना चाहता है। मानवीय चेतना अपने विकास हेतु स्वतंत्रता चाहती है, स्वतंत्रता अधिकारों में निहित है और अधिकार राज्य की माँग करते हैं। किसी भी परिवार, समाज अथवा राष्ट्र का स्वरूप वहाँ की महिलाओं की प्रास्थिति पर निर्भर करता है। यदि आपको विकास करना है तो महिलाओं का उत्थान करना होगा। मूल अधिकार, मानव अधिकारों के आधारभूत, मासिक या साप्ताहिक स्तर पर, अपने निर्वाह के लिये प्राप्ति का अधिकार है। स्वतंत्रता पूर्व महिलाओं को केवल नाममात्र के अधिकार प्राप्त थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं के संरक्षण के लिए संसद द्वारा बहुत से विधिक उपबन्ध बनाये गये है। महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति की है, परन्तु इस कटु सत्य से इंकार नही किया जा सकता है कि आज भी बहुसंख्यक महिलाओं की स्थिति, शोषित, उपेक्षित एवं कुण्ठित है, उनके मानवाधिकारों का सतत् उल्लंघन हो रहा है।

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मूल अधिकार, महिलाओं, स्वतंत्रता, मानवाधिकारों, महिलाओं का संरक्षण.

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  1. त्रिपाठी, प्रदीप (2002) मानवाधिकार और भारतीय संविधानः संरक्षण एवं विश्लेषण, राधा पब्लिकेशन, नई दिल्ली, पृ. 13-14।

2. राय, अरूण (2002) भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगः गठन कार्य एवं भावी पदिदृश्य, राधा पब्लिकेशन, नई दिल्ली, पृ. 11।
3. राय, अरूण (2002) भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगः गठन कार्य एवं भावी पदिदृश्य, राधा पब्लिकेशन, नई दिल्ली, पृ. 11।
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6. मेहता, चेतन सिंह (1993) महिला एवं कानून, आशीष पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, पृ. 34।
7. अंसारी, एम.ए. (2000) महिला और मानवाधिकार, ज्योति प्रकाशन, जयपुर, पृ. 210-211।
8. अंसारी, एम.ए. (2000) महिला और मानवाधिकार, ज्योति प्रकाशन, जयपुर, पृ. 155।
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10. नाटाणी, प्रकाश नारायण (2002) महिला जागृति और कानून, आविष्कार पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूटर्स, जयपुर, पृ. 162-166।
11. शर्मा, प्रज्ञा (2001) महिला विकास एवं सशक्तिकरण, आविष्कार पब्लिशर्स, जयपुर, पृ. 30।
12. देसाई, नीरा (1982) भारतीय समाज में नारी, मैकमिलन इंडिया लिमिटेड, नई दिल्ली, पृ. 119।
13. अंसारी, एम.ए. (2000) महिला और मानवाधिकार, ज्योति प्रकाशन, जयपुर, पृ. 192।
14. नाटाणी, प्रकाश नारायण (2002) महिला जागृति और कानून, आविष्कार पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूटर्स, जयपुर, पृ. 158-159।
15. पाण्डेय, महिप कुमार (2005) महिला अधिकारों के संरक्षण की नई दिशाऐं, राकेश द्विवेदी द्वारा सम्पादित, महिला सशक्तिकरणः चुनौतियाँ एवं रणनीतियाँ, पूर्वाशा प्रकाशन, भोपाल, पृ. 203।
16. मेहता, चेतन सिंह (2005) महिला एवं कानून, आशीष पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली।
17. नाटाणी, प्रकाश नारायण (2002) महिला जागृति और कानून, आविष्कार पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूटर्स, जयपुर, पृ. 159-162।
18. ओझा, सुरेश (2008) कानूनी उपचार, सर्जना, बीकानेर, पृ. 54।
19. परिवार परिशिष्ट, राजस्थान पत्रिका, 21 जनवरी 2009, पृ. 8।
20. वर्मा, सवालिया बिहारी; सोनी, एम.एल. एवं गुप्ता, संजीव (2005) महिला जागृति एवं कानून, आविष्कार पब्लिशर्स, जयपुर, पृ. 248।
21. पाण्डेय, श्वेता (2008) मानवाधिकार एवं भारतीय नारी, लोकतन्त्र समीक्षा, सांविधानिक तथा संसदीय अध्ययन संस्थान, दिल्ली, जनवरी से जून, पृ. 96।

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अंचल विशेष की लोक संस्कृति का चित्रण आंचलिक उपन्यास की विशेषता है। लोक संस्कृति की विविध आयाम-लोक कथा, लोकगीत, लोक नृत्य, पर्व त्यौहार, लोक विश्वास, लोक भाषा आदि ही अंचल के जनमानस को यथार्थ रूप में साकार करते है। ये समस्त तत्व केवल लोकजीवन की पहचान ही नहीं उसकी आत्मा हैं। हमारे समाज में लोक-जीवन के जितने रंग हो सकते है उन सारे रंगों के साथ मैला आँचल हमारे सामने उपस्थित है। रेणु के ही शब्दों में कहे तो-’’इसमें फूल भी है, धूल भी है, गुलाब भी, कीचड़ भी है, चंदन भी, सुन्दरता भी है, कुरूपता भी, मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया।’’

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 मैला आँचल, संस्कृति, भाषा, विश्वास.

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  1. रेणु, फणीश्वरनाथ (1954) मैला आँचल, राजकमल प्रकाशन प्रा. लि., नई दिल्ली, भूमिका।

2. वहीं, पृ. 14।
3. चरण (2020) मैला आँचल उपन्यास में निरूपित लोक संस्कृति, डॉ. चरण का प्रतियोगिता मंच, उच्च शिक्षा विभाग, हरियाणा, पृ. 3।
4. वहीं, पृ. 41।
5. वहीं, पृ. 122।
6. वहीं, पृ. 122।
7. वहीं, पृ. 22।
8. वहीं, पृ. 56।
9. वहीं, पृ. 228।
10. वहीं, पृ. 123।
11. वहीं, पृ. 161।
12. तिवारी, अशोक (2005) प्रतियोगिता साहित्य सीरीज, साहित्य भवन पब्लिकेशन्स, आगरा, पृ. 128।

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As we all stand at the intersection of advanced technologies, human-centric approaches, and sustainability imperatives, financial literacy becomes crucial as people and organizations strive to make the most of the opportunities and mitigate the risks associated with this transformative, it extends beyond traditional concepts of budgeting and saving. It encompasses a dynamic understanding of emerging financial instruments, investment strategies, and risk management within a digitally driven and interconnected world. The evolving nature of work in Industry 5.0 necessitates a keen awareness of income diversity, freelance economics, and skill-based income streams, demanding adaptability in financial planning. On the business front, companies must navigate an intricate financial landscape, where sustainability practices and responsible investments are integral to success. Collaborative ecosystems and ethical Artificial intelligence financial leaders to make informed decisions that align with their organization’s values while generating sustainable growth.

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Financial Literacy, Industry, Opportunities and Challenges.

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  1. Atzeni, M., Dridi, A. (2018) Reforgiato Recupero, D. using frame-based resources for sentiment analysis within the financial domain. Prog Artif. Intell. 7, 273–294.

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भारतीय संघवाद का विकास स्वतंत्रता संग्राम, संविधान निर्माण, और स्वतंत्र भारत की राजनीति के जटिल इतिहास में निहित है। भारतीय संघीय ढांचे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण और संतुलन हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। यह लेख भारतीय संघवाद के विकास, उसकी चुनौतियों, और भविष्य की संभावनाओं को विस्तार से समझने का प्रयास करेगा। संघवाद एक शासन प्रणाली है जिसमें शक्तियाँ केंद्र और राज्यों के बीच बांटी जाती हैं। भारत का संघवाद इसे एक अद्वितीय रूप प्रदान करता है, जो न केवल क्षेत्रीय विविधताओं को समायोजित करता है बल्कि विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और जातीयताओं को भी एक साथ बांधे रखने में सहायक है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को ‘राज्यों का संघ‘ कहा गया है, जो इसे एक संघीय व्यवस्था के रूप में स्थापित करता है।

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भारत, संघ, संघवाद, विकास, संविधान.

Read Reference

  1. पांडेय, जी. एन. (2005) भारतीय संविधान और संघवाद, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली,        पृ. 45-67।

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The article explores child labour in Siddharth Nagar, Uttar Pradesh, focusing on its causes, impacts, and potential solutions. It highlights how a complex combination of socioeconomic factors, including poverty, limited access to education, and societal norms, drives child labour in the region. The study aims to investigate the underlying causes by examining family socioeconomic conditions and the role of local industries in exploiting child labour. It also assesses the effects of child labour on children’s physical and mental health, as well as the broader implications for the community. Using surveys, data analysis, and interviews, the article underscores the need for increased educational opportunities, financial support for families, and stronger enforcement of child labour laws. The study recommends a comprehensive strategy involving community engagement, legal reforms, NGOs, and educational programs to eradicate child labour in Siddharth Nagar.

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Child Labour, Remediation Strategies, Socio-Economic Factors, Education and Child Labour, Government Policies on Child Labour, Child Rights and Protections.

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मानव एक बुद्धिजीवी प्राणी है। उसने अपने अस्तित्व और ज्ञान को अक्षुण्ण रखने के लिए अनेक विधाओं तथा कलाओं आदि को चुना है। प्राचीन काल में वह कुछ चिह्नों और कलाकृतियों को गुफाओं की दीवारों पर उकेर कर अपने मन के भावों को प्रस्तुत करता था। इनके साक्ष्य हमें पुस्तकों के माध्यम से देखने और पढ़ने को मिलते हैं। एक चित्रकार अपने चित्रों के द्वारा, एक शिल्पकार अपनी मूर्तियों के द्वारा और एक साहित्यकार अपने लेखन के माध्यम से अपनी मनोदशा को अभिव्यक्त करता है। मानव, समाज और साहित्य का घनिष्ठ सम्बन्ध है। वर्तमान समय में लेखक अपने मनोभावों को साहित्य सृजन के माध्यम से समाज के सम्मुख पेश करता है। साहित्य के जरिए वह वास्तविक और काल्पनिक जगत को पाठकों के सामने उजागर करता है। गीताश्री आधुनिक पीढ़ी की एक सशक्त और उभरती हुई लेखिका हैं। आप एक सफल वरिष्ठ पत्रकार भी हैं, आपके व्यवसाय की छाप आपके लेखन पर स्पष्ट दिखायी देती है। वे जितनी कुशलता से अपने साहित्य में शहरी परिदृश्य को उकेरती हैं, उतनी ही कुशलता से ग्रामीण परिदृश्य को भी सजीवता प्रदान करती हैं। वे अपने समय से दस साल आगे का साहित्य लिख रही हैं। उनके साहित्य में उत्तर आधुनिकतावाद का बोध होता है। उनका साहित्य मनोविज्ञान से लबरेज है। मनोविज्ञान एक शैक्षिक और अनुप्रयोगात्मक विज्ञान है। इसमें मनुष्य और पशु आदि के मानसिक व दैहिक प्रक्रियाओं, अनुभवों, व्यक्त और अव्यक्त व्यवहारों का एक क्रमिक तथा वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान एक अनुभवजन्य विज्ञान भी है। इसका प्रमुख उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया का सहारा लेते हुए तत्वों का विश्लेषण और पारस्परिक सम्बन्धों के स्वरूप के माध्यम से निर्धारित करने वाले विभिन्न नियमों की खोज करना है।

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मनोविज्ञान, किशोरावस्था, अंतर्जातीय प्रेम, मनोविकार, आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी.

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  1. गीताश्री, (2013) ताप, प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 89।

2. गीताश्री, (2020) लिट्टी चोखा, लिट्टी चोखा एवं अन्य कहानियाँ, राजपाल एंड संज, दिल्ली, पृ. 08।
3. गीताश्री, (2020) नजरा गईली गुइयां, लिट्टी चोखा एवं अन्य कहानियाँ, राजपाल एंड संज, दिल्ली, पृ. 26।
4. गीताश्री, (2015) मेकिंग ऑफ बबीता सोलंकी, स्वप्न, साजिश और स्त्री, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 66। 
5. गीताश्री, (2021) बाबूजी का बक्सा, बलम कलकत्ता, प्रलेक प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, महाराष्ट्र, पृ. 69।
6. गीताश्री, (2013) लबरी, प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ, गीताश्री, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 147।
7. गीताश्री, (2015) डायरी, आकाश और चिड़िया, स्वप्न, साजिश और स्त्री, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 10।
8. गीताश्री, (2015) सुरताली के इन्द्रधनुषी सपने, स्वप्न, साजिश और स्त्री, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 134।
9. गीताश्री, (2018) एकांत, लेडीज सर्कल, राजकमल एंड संस, दिल्ली, पृ. 107- 108।
10. गीताश्री, (2013) प्रार्थना के बाहर, प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 29-30।
11. गीताश्री, (2013) सोन मछरी, प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 42।
12. गीताश्री, (2013) गोरिल्ला प्यार, प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 55।
13. गीताश्री, (2013) एक रात जिन्दगी, प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 62।
14. गीताश्री, (2013) एक रात जिन्दगी, प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 61।
15. गीताश्री, (2020) कब ले बीती अमावस की रतिया, लिट्टी चोखा एवं अन्य कहानियाँ, राजपाल एंड संस, दिल्ली, पृ. 88।
16. गीताश्री, (2017) प्रश्न कुंडली, डाउनलोड होते हैं सपने, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 63।
17. गीताश्री, (2017) वह रात किधर निकल गयी, डाउनलोड होते हैं सपने, डाउनलोड होते हैं सपने, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 141।
18. गीताश्री, (2017) वह रात किधर निकल गयी, डाउनलोड होते हैं सपने, डाउनलोड होते हैं सपने, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 141।
19. गीताश्री, (2015) लकीरें, स्वप्न, साजिश और स्त्री, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 86।
20. गीताश्री, (2013) गोरिल्ला प्यार, प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 57।

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साहित्य मनुष्य के जीवन में एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक साहित्य मानव जीवन का एक अभिन्न अंग बना हुआ है क्योंकि साहित्य समाज का वास्तविक चित्र दिखाता है। साहित्य समाज में व्याप्त कुरीतियों, प्रवृत्तियों एवं परिस्थितियों का चित्रण करता है। समाज में साहित्य एक आधार- स्तम्भ की तरह कार्य करता है। साहित्य ही समाज में व्याप्त परम्पराओं और समस्याओं पर विचार विमर्श करने के लिए प्रेरित करता है। साहित्य के द्वारा ही हम आदिवासी-विमर्श, दलित-विमर्श, स्त्री-विमर्श, बाल-विमर्श, दिव्यांग-विमर्श और वृद्ध विमर्श आदि के लिए आवाज उठा सकते हैं। आजकल के युवा-वर्ग के व्यवहार को देखते हुए वृद्ध-विमर्श करना आवश्यक हो गया है।

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वृद्ध जीवन, विमर्श, सभ्यता और संस्कृति, एकल परिवार,सोशल मीडिया, उत्तर आधुनिकतावाद.

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  1. बाहरी, हरदेव (2016) लोक भारती राजभाषा शब्दकोश, लोक भारती प्रकाशन, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश, पृ. 466।

2. बाहरी, हरदेव (2016) लोक भारती राजभाषा शब्दकोश, लोक भारती प्रकाशन, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश, पृ. 455।
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10. कुलश्रेष्ठ, मनीषा (2010) कठपुतलियाँ, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, पृ. 75।
11. कुलश्रेष्ठ, मनीषा (2010) कठपुतलियाँ, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, पृ. 80।
12. कुलश्रेष्ठ, मनीषा (2010) कठपुतलियाँ, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, पृ. 128।
13. कुलश्रेष्ठ, मनीषा (2010) कठपुतलियाँ, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, पृ. 129।
14. कुलश्रेष्ठ, मनीषा (2022) रंग रुप- रस गंध-2, सामयिक प्रकाशन, नयी दिल्ली, पृ. 708।

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छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक राज्य का सर्वाधिक 613 शाखाओ एवं लगभग 3000 बैंक मित्रों के माध्यम से अधिकांश जनसंख्या को आधुनिक बैंकिंग सेवाये प्रदान कर रहा है। बैंक की 93 प्रतिशत शाखाये राज्य के गैर शहरी क्षेत्रों /सुदूर अंचलों मे ग्राहकों को उन्नत बैंकिंग सेवाये मूहिया करा रही है। ग्राहक सुविधाओ मे लगातार सुधार कार्य कर रहा है। ग्राहक को 14 एटीएम की सुविधाये अभी वर्तमान मे बढ़ाई गई है। 14 मोबाईल एटीएम वैन के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक ग्राहक सेवा एक विशेष सेवा है, जिसे अपने मूल्यवान ग्राहकों के लिए बैंकिंग अनुभव को बेहतर बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह संपूर्ति सहायता छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक के ग्राहकों और खाताधारकों को फोन कॉल, एसएमएस, मिस्ड कॉल और ईमेल सहित विभिन्न चैनलो के माध्यम से आसानी से उपलब्ध है। ग्राहक सेवा देश भर मे विभिन्न शाखाओ मे खाताधारकों की विविध आवश्यकताओ को पूरा करती है, जिससे निर्बाध बैंकिंग अनुभव के लिए कुशल और व्यक्तिगत सहायता सुनिश्चित होती है। छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक ग्राहकों को 24ग्7 बैंकिंग की सुविधाये प्रदान करने के लिए विभिन्न डिजिटल सेवाये प्रदान करता है। एटीएम कार्ड सुविधा जिस से बैंकिंग लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिए अपने ग्राहकों को डेबिट कार्ड जारी कर रहा है। वर्तमान मे बैंक एन पी सी आई के सहयोग से रूपए कार्ड भी जारी कर रहा है और प्लेटिनम कार्ड, क्लासिक कार्ड, डेबिट कार्ड भी जारी कर रहा है। मोबाईल बैंकिंग सुविधाये बैंकिंग एैप्लिकेशन एम तेज के माध्यम से दी जा रही है, जिसे मोबाईल मे गूगल प्लेस्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। अंतरजाल लेनदेन मे बैंक रीटेल और कॉर्पाेरेट इंटरनेट बैंकिंग दोनों प्रदान करता है। मोबाईल एटीएम वैन के माध्यम से वैन मे लगी एटीएम मशीन ग्राहकों की भीड़ के हिसाब से एक जगह से दूसरी जगह जाती है। ऑनलाइन डिजिटल खाता के अंतर्गत बैंक विडिओ के वाई सी के माध्यम से डिजिटल खाता खोलने और आधार प्रमाणीकरण के माध्यम से तत्काल खाता खोलने की सुविधा दे रहा है। 

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ग्राहक, प्रबंधन, बैंक, डिजीटल.

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  1. चौरसिया, रोहित और चौरसिया, महीप (2021). कृषि विकास की समस्याएं एवं संभावनाएंरू जनपद जौनपुर (उत्तर प्रदेश) का एक भगौलिक अध्ययन, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांसेज इन सोशल साइंस, 9(1), 67-72।

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Digitalization of society is necessary in the current era of information and communication technologies to facilitate better and faster development. Developing nation like India, it can be achievable through digitalization. Thus, in July 2015, the Indian Government announced the Digital India program, with the primary objective of fostering the development of a society that is empowered by technology. This research paper tries to study the development through digitalization. For this, a brief analysis of the Government programs related to digitalizationhas been done. This research illustrate show digitalization affects several aspects of development and also covered the changes after digital India program especially after Covid 19. Secondary research method was used in this study and data were taken from secondary sources like journal, Government reports, Government websites etc. This paper concludes that the implementation of the Digital India program has led to an increase in the level of digitalization and especially during the Covid-19 pandemic. Digitalization has potential to develop a nation.

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Development, Digitalization, Digital India, Information and communication technology (ICT), Government Program, Covid 19. 

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On 8 November 2016 midnight, the Government of India announced the demonetisation of all 500 and 1,000 bank notes of the Mahatma Gandhi Series. The Government claimed that the action would curtail the shadow economy and crack down on the use of illicit and counterfeit cash to fund illegal activity and terrorism. This scheme has a great impact onthe businesses, common people, and financial institutions along with multi-diverse industrial background of India. Even though those who supported demonetisation may have had the best of intentions, millions of Indians have suffered needlessly as a result of it. Given that 86% of all currency in circulation in India, particularly in the country’s vast rural areas, is made up of Rs. 500 and Rs. 1000 notes, imagine the suffering people would go through if 86% of their blood were removed from their bodies. The lack of banking facilities in the countryside caught the impoverished completely off guard. Critical social theory is not sufficiently taught to the tech class to help them comprehend the practical implications.

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Demonetization, Effectson, Bank, Country.

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पूरे विश्व में भूतापीय ऊर्जा, ऊर्जा का एक बहुत ही सुंदर विकल्प है। समस्त देश में इस परियोजना पर अपनी अपनी क्षमता के अनुसार कार्य हो रहा है। जैसे-जैसे विद्युत का प्रयोग बढ़ रहा है उसके संसाधन बढ़ रहे हैं, उसके साथ-साथ ही विद्युत की खपत को देखते हुए उसके विकल्प को खोजने की भी कोशिश की जा रही है विद्युत के तमाम विकल्पों में सर्वोत्तम विकल्प भूतापीय ऊर्जा है जिसकी ओर मनुष्य का ध्यान पूरी तरह से आकर्षित करने के लिए वर्तमान देश की सरकारें बहुत बड़ा निवेश इस दिशा में कर रही हैं। भू तापीय ऊर्जा मानव विकास के लिए बहुत बड़ा स्रोत हो सकती है। पृथ्वी के अंदर क्या है पृथ्वी की आंतरिक वास्तविक संरचना क्या है इसके विषय में अभी भी बहुत से वैज्ञानिक एक मत नहीं है केवल अनुमान के आधार पर ही चीजों को प्रस्तुत किया गया है, लेकिन इतना अवश्य ज्ञात है कि पृथ्वी के मध्य में एक बहुत भयंकर तापमान के रूप में चीजें उबल रही हैं। पृथ्वी के इस तापमान को आधार बनाकर भूतापीय ऊर्जा की संकल्पना की गई है। यदि पृथ्वी का वह आंतरिक ताप मनुष्य के विकास के लिए और विभिन्न प्रयोगों के लिए कार्य योजना के रूप में प्रस्तुत किया जा सके तो बहुत बड़े कार्य सम्पन्न किये जा सकते हैं।

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भूतापीय ऊर्जा, ज्वालामुखी, जिओथर्मल, टरबाइन, रेडियोएक्टिविटी, खनिज.

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प्राचीन समय से ही समाज का उत्थान मनुष्य के आर्थिक जीवन की सम्पन्नता, समुन्नति और सुख-सुविधा पर निर्भर करता रहा है। मनुष्य का भैतिक और लौकिक सुख उसके जीवन के आर्थिक विकास से प्रभावित होता रहा है। आर्थिक जीवन का मूलाधार कृषि, पशुपालन, व्यापार होता है जिसे भारतीय शास्त्रकारों ने वार्ता के अन्तर्गत विवेचन किया है। आज भारत ही नहीं अपितु विश्व का समाज इन्हीं आधारों पर स्थिर है। अर्थव्यवस्था समाज को पुष्ट और स्वस्थ बनाने में पूर्ण सहयोग प्रदान करती है और इससे व्यक्ति और समाज दोनों का विकास होता है। आर्थिक कार्यक्रम व्यक्ति का मानवीय सम्बन्ध ही नहीं अपितु सामाजिक सम्बन्ध भी अभिव्यक्त करता है। वह अपने कार्यों और योजनाओं से अपनी तथा अपने परिवार और समाज की आवश्यकताअेां की पूर्ति करता है।

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कृषि व्यवस्था, व्यापार व्यवस्था, पशुपालन, कर व्यवस्था, व्यावसायिक कर्म, वन और औषधि.

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10. उ0च0, 3/43
11. म0च0, 1/9 के पश्चात्
12. उ0च0, 3/15
13. म0च0, 7/4 के पश्चात्
14. मनु0, 7/30
15. अर्थशास्त्र, 2/6
16. म0च0, 6/16
17. मा0मा0 तृतीय अंक
18. उ.च0, 6/25
19. उ0च0, 5/12
20. उ0च0, 5/5, 5/12
21. मा0मा0, 6/12
22. उ0च0, 3/1
23. मा0मा0, 6/8

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In India, menstruation is still considered taboo, despite being a nation with a rich cultural background. Such a taboo exists in both urban and rural settings. Half of the people experience menstruation, a natural, normal biological process, but it is not given the attention it deserves because of unwarranted shame, illiteracy, and poverty. Intense cramping and agony are experienced by more than half of all female employees on the first day of their periods. A workplace policy known as menstrual leave allows employees to take additional paid or unpaid time off while they are menstruating. It has drawn more and more attention from the general public and international media in recent years. It is common for the policy to be promoted with the best of intentions and to be seen as a progressive step forward for women’s rights and workplace wellness. Paid menstrual leave is a crucial policy measure to promote a conversation about menstrual health and to encourage women to enter the workforce in order to create an equal and inclusive workplace. Menstrual leave policies could be a sign of, or even a cause of, unwelcome and discriminatory workplace behaviours toward women. Menstrual leave is one instance of how sexist employment practices can easily, even unintentionally, reinforce negative and untrue social stereotypes. The paper comes to the conclusion that it is preferable to focus on the working conditions and rights of every employee, as well as access to high-quality reproductive health information and medical treatment, if necessary, in order to support and enhance menstrual health and gender equality in the workplace. This review study was conducted by searching specific keywords utilizing databases such as Science Direct, Google Scholar, Research Gate, PubMed and Scopus. Such a policy is far more necessary here than in European countries due to the cultural stigma that exists in India. Additionally, India still has a higher prevalence of the gender pay gap than other countries. Thus, even paid menstrual leave would fall short of making up for their significantly lower pay and yet putting such a policy into place would be a welcome beginning and a step in the right direction. Many of the policy’s detractors think it will result in inefficiency and disincentivise hiring of women and treating everyone equally. It makes sense that efficiency will rise with the increased participation of the workers who make up half the workforce.

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Menstrual Leave, Working Women, Efficiency, Treatment.

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There are 2 development blocks and 19 Nyaya Panchayats in Bara Tehsil of Prayagraj district. In the study area Bara Tehsil, due to various social, economic and physical factors, spatial inequality is seen in the level of human resource development. For this reason, spatial inequality is also seen in the level of human resource development at the Nyaya Panchayat level in the tehsil. The main objective of this research paper is to analyze the spatial pattern of human resource development level at the Nyaya Panchayat level in the tehsil, and for this 7 factors have been taken as the base. General ranking method has been used to determine the human resource development level for each Nyaya Panchayat. The presented research paper is based on secondary data, which have been obtained from the Census Handbook 2011 and Statistical Magazine of the year 2021 of Prayagraj district. According to this study, the highest human resource development level in the study area Bara Tehsil is in Nyaya Panchayat Ghurpur while the lowest is in Asarwai Nyaya Panchayat.

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Natural Resources, Demographic Structure, Human Resource, Occupational Structure.

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भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसके बिना सामाजिक संरचना के विकास की परिकल्पना करना ही व्यर्थ है। मानव समूह भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए भाषा का प्रयोग करता रहा है। इन्हीं भावनाओं से सामाजिकता का निर्माण और इस सामाजिक निर्माण की प्रक्रिया से साहित्य, कला एवं संस्कृति का विकास हुआ है। भाषा ने जहाँ हमारे विचारों का संरक्षण किया, वहीं श्रेष्ठ मानव समुदाय के निर्माण में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। भाषा ने जब साहित्य का रूप धारण किया तो यह साहित्य समाज की पहली प्राथमिकता बनकर उभरा। मानव संस्कृति की सलिला को गति देने के लिए विविध भाषाओं का सम्मिश्रण साहित्य में होना आरम्भ हुआ साथ ही भाषा के अनेक स्वरूपों पर भी चर्चा आरम्भ हो गई। भाषा के विद्वान आचार्यों ने उच्चारण के आधार पर भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन किया। लेखन के आधार पर लिपि को वैज्ञानिक स्वरूप देने का भी यत्न किया। इन्हीं प्रयत्नों का सुफल है भाषा विज्ञान का वृहद् कोष। भाषा विज्ञान का प्रचुर वांग्मय इसकी बढ़ती लोकप्रियता का परिचायक है। प्रस्तुत शोध पत्र में भाषा विज्ञान के विभिन्न अंगों का परिचयात्मक अनुशीलन तो किया ही गया है, साथ ही उसके महत्त्व एवं उपादेयता पर भी यत्किंचित प्रकाश डालने का प्रयत्न है।

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भाषाविज्ञान, ध्वनि विज्ञान, स्वन-स्वनिम, रूप विज्ञान, व्याकरण.

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भारतीय महिलाओं की प्रगति, विकास एवं उत्थान में केन्द्र एवं राज्य सरकारों की विकास योजनाओं की भूमिका तेजी से बढ़ रही है। भारत के संविधान और अन्य कानूनों में तो महिलाओं को बराबरी का दर्जा प्राप्त हो चुका है, किन्तु इस कानूनी बराबरी को वास्तविकता के धरातल से जोड़ना भी अति महत्वपूर्ण है। इस दिशा में महिलाओं का स्वालम्बन और आर्थिक सक्षमता बढ़ाने के लिए सरकारों द्वारा बहुत सारी विकास योजनाएं प्रारंभ की गई है। जैविक दृष्टि से प्रकृति ने स्त्री एवं पुरूष दोनो को यद्यपि भिन्न-भिन्न संरचनायें प्रदान की है, तथापि इसका उद्देश्य ‘एक दुसरे की पूर्णता‘ है, ना कि भेदभाव, आधिपत्य या शोषण। आदिम समाज की जीवन शैली इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन काल में स्त्री पुरूष में समानता विद्यमान थी। संगठित समाज की रचना, उत्पादन के साधनो में बदलाव, परिवार नामक संस्था का अभ्युदय एवं स्वाामित्व अथवा संपत्ति के उदय के साथ स्त्री को पुरूष के अधीन करना शुरू किया। 01 नवम्बर, 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के बाद से स्थानीय स्वशासन पद्धति के अंतर्गत ग्राम सभाओं में महिलाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। ग्राम सभा को स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में अनेकानेक जनकल्याण एवं ग्राम विकास काम किये जा रहे हैं, जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। सामाजिक संस्थाओं और उनके कर्मचारियों पर ग्राम पंचायत के माध्यम से नियंत्रण रखा जाता है। ग्राम सभा में महिलाओ द्वारा हितग्राहियों का पहचान एवं चयन करना, जनता में सामान्य चेतना जगाना, गरीबी उन्मूलन परियोजनाओं के अंतर्गत उपयोजनाओं का क्रियान्वयन एवं संधारण करना, गरीबों की वास्तविक पहचान कर उसका चयन करना, निधियों या अस्तियों का समुचित उपयोग तथा लोगों को कल्याण कार्यों के लिये गतिशील करने जैसे कार्य कर वे ग्राम सभा की मौजूदगी में अपनीं उपादेयता और सार्थकता प्रदान करती है। छत्तीसगढ़ एक ग्रामीण बहुल क्षेत्र है, जहां कि 80 प्रतिशत जनता गांवो में निवास करती है, जिसमें लगभग 35 प्रतिशत आबादी आदिवासियों व अनुसूचित जनजातियों की है। लगभग 15 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जातियों की है। लगभग 45 प्रतिशत आबादी अन्य पिछड़ी जातियों की है। अन्य पिछड़ी जातियों में केवल साहू और कुर्मी ही तेजी से आगे बढ़ते जा रहे हैं। केवल 10 प्रतिशत लोग उंची जातियों या सम्भ्रांत जातियों के हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति और अर्थव्यवस्था में सुधार और आधुनिकीकरण का अर्थ है इन पिछड़ी जातियों का विकास और आधुनिकीकरण। किन्तु जो 10 प्रतिशत सम्भ्रांत जातियां हैं, वही सत्ता और शक्ति के शिखर पर जमीं हुई हैं, तथा छत्तीसगढ़ के शहरों में निवास करती हैं, और क्षेत्र के राजनीतिक और आर्थिक विकास का लाभ ले रहीं हैं। प्रस्तुत शोध पत्र में भारतीय महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता एवं जागरूकता यानि महिलाओं के अधिकारों और क्षमताओं के विस्तार की स्थिति में केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा संचालित विकास योजनाओं की भूमिका का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। वर्तमान संदर्भ में यह शोध पत्र महिलाओं, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता एवं जागरूकता से जुड़े अधिकारों और क्षमताओं का विस्तार करने वाले मुद्दों और समस्याओं पर जोर देता है।

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राजनीतिक सहभागिता, कानूनी बराबरी, ग्राम सभा, स्थानीय स्वशासन, महिला संवृद्धि, महिला कोष.

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Pandit Madan Mohan Malaviya is one of the foremost leader during our struggle for independence. He playing a pivotal role in shaping the values and Principles of contemporary India. In his role as the founder of Banaras Hindu University, he had a vision to providing Indian youth with a holistic education encompassing modern scientific knowledge, practical training, ethical principles, and a comprehensive study of the arts. He actively utilized various platforms to advance the cause of education and formulate policies aimed to ensuring high-quality learning. He ardently advocated for universal and compulsory primary education, underscoring the importance of nurturing a scientific mindset. His ultimate goal was to harmoniously blend India’s rich heritage of learning with the progressive scientific Ideas of the western world. Malaviya conceived a unique model of education based on the value of integration, harmony and peace, deriving from our rich cultural heritage and combining the same with science, reason and an inquisitive mind, much like the way he shaped and formed the BHU. This is very well expressed in the motto of this pioneering institution, which suggests: “The end of all knowledge is the attainment of immortality”. For Malaviya the essence of our education system must be openness and acceptance of noble thoughts from all directions, and also sending out its own message to the outer world.

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Foremost Leader, Contemporary Time Educationist, Scientific Knowledge, Concept of University, Technical Education, Protagonist.

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Perumal Murugan is a renowned and beloved Tamil writer. He penned twelve novels in same language. One Part Woman is one of his literary classic works. His writing style is so captivating that readers finish it with no time. His themes are truthful and focus on the society of which he was a native once. This research article focuses on the social conflicts existed in the novel. He describes this conflicts through the main characters of the novel: Kali and Ponna. These conflicts have so impacted the life of these characters that their life is completely shattered due to it. The research paper concentrate this aspects to know the details of and factors responsible for the destruction of the life of these characters. The social conflicts may include the beliefs, customs and superstitions of the society which are harmful in one way or other. The happiness of life depends on the inner self of human beings and individuals will to remain free. This research article enumerates the events in the novel which are best examples of social conflicts. It also provides some remedial changes to bring out change in the society concerned with these issues. One Part Woman centers around the impact of society, value of religious things, endless love of a couple and people obscenity. In the novel Kali and Ponna become the victims of superstitious beliefs and customs and suffer for their survival. The happiness of an individual depends not on his or her will absolutely but it is influenced by the societal norms. Perumal Murugan beautifully weaves the emotional drama that draws its sustenance from typical prominent flaws of a society. A dramatic story of two lives fallen apart because of no fault of theirs. The novel also examines how patriarchal customs in India force women into victims of gender identity. Women are expected to conform a fixed female identity as a mother, as a wife, etc. The research article provide some suggestions to eradicate caste based discrimination, religious conflicts and gender inequality.

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Perumal Murugan, One Part Woman, Social Conflicts, Feminism, Gender.

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Recently India has been victim to numerous information warfare attacks, mostly in the cyber domain due to the vulnerabilities in the active infrastructure. There have been a many incidents where sensitive Government and defence forces systems have been compromised and information has been stolen. A group called Pakistan Cyber Army hacked the Central Bureau of Investigation’s website in December 2010. The same group hacked into the Bharat Sanchar Nigam Limited’s website a few months later. In 2012, after the Assam violence social media was used to spread hate messages which caused the mass departure of North East people from Bangalore and other major cities in India. Such incidents have always raised fear over the security setup and defence machinery of the nation to react to new ways of fighting war in the recent times. Joint information operations by Indian forces with advanced technologies, better structures and a comprehensive doctrine can considerably reduce such incidents and result in a positive outcome.

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Information Warfare, Security, Cyberspace, Psychological Operations (PsyOps), Deception, Countermeasure.

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  1. CBI website hacked by ‘Pakistani Cyber Army’”, Times of India 04 Dec 2010

2. Christopher, Paul (Year) Information Operations: Doctrine and Practice, Praeger Publishers Inc, USA, p. 99.
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Kâlidâsa was a poet of Nature. We get vivid description of Nature in his literary works. Nature has not been introduced in his poetry or drama as an insentient element, but it was used as a separate character. It responds to the call of men and acts according to their necessity. Be it the description of cloud of the rainy- season, or a running deer afraid of arrow of a king or the melancholy sound of a cuckoo – in every cases Kâlidâsa has surpassed everyone. This article throws light upon the mentality of the great Sanskrit poet of the ancient India Kâlidâsa to Nature and his literary technique for using Nature as an essential and inseparable component of his literary composition.

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Nature, Deer, Separation, Affection, Vivid, Love.

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  1. Bandyopadhyay, Udayachandra and Bandyopadhyay, Anita (2003)  ed. Kâlidâsa: Raghuvansam- 1st Canto (August, 2003), Kolkata, Sanskrit Book Depot, Verse no. 1/38, p. 100.

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4. Basu, Anil Chandra (2003) ed. Kâlidâsa: Abhijnânashakuntalam (August, 2003), Kolkata, Sanskrit Book Depot, Verse no. 4/12, p. 299.
5. Basu, Anil Chandra (2003) ed. Kâlidâsa: Abhijnânashakuntalam (August, 2003), Kolkata, Sanskrit Book Depot, Verse no. 4/14, p. 303.

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In India, all genders have a basic human right to gender equality. Inequality is a result of the socially constructed roles and responsibilities that our society attributes to men and women according to their gender. In India, gender equality means that everyone has the same power and opportunities, yet girls and boys mostly suffer gender inequity in their homes and communities. Violence against women is rising daily as a result of inequality and is motivated by prejudice.  On a global basis, violence against women and girls is a major problem. Gender inequality was not only the root cause of violence against women; it is also one of its effects. The primary issue that first emerged on the gender-based violence front as well gender-related killing. We will explore in this research paper how women are not treated fairly because of their gender in the office or in any other workplace. The researcher used the descriptive method with the help of a literature review, such as books, journals, and other research papers, to execute our research. In the present, Gender imbalance and crimes targeting women are frequently observed. In this research, an effort is made to demonstrate how these issues are becoming more pervasive in society. Researchers know the actual situation of women affected by domestic violence and also want to know about equal pay and equal work for women.

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Inequality, Women, Violence, Gender.

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आयु के आधार पर समाज भौतिक रूप से युवा पीढ़ी, प्रौढ़ पीढ़ी तथा वृद्ध पीढ़ी आदि रूप में विभाजित दिखाई देता है। यहाँ प्रौढ़ावस्था युवा एवं वृद्ध पीढ़ी के मध्य कड़ी है। प्रत्येक मनुष्य युवावस्था से प्रौढ़ावस्था और फिर प्रौढ़ावस्था से वृद्धावस्था को प्राप्त करता है। इसी प्रक्रिया के दौरान इन अवस्थाओं के समय भी काफी अंतर आ जाता है। चूंकि युवावस्था का प्रारंभ सामान्यतः 18 वर्ष से माना जाता है और वृद्धावस्था 60 वर्ष के पश्चात् की अवस्था है। इस प्रकार इतने वर्षों के अंतराल के कारण इन दोनों पीढ़ियों के मध्य विचारों, मूल्यों, संस्कारों, अभिरुचियों तथा तकनीकी आदि में भी अंतर होने लगता है। समाज में युवावस्था ‘नई पीढ़ी’ और वृद्धावस्था ‘पुरानी पीढ़ी’ की दृष्टि से देखी जाती है। नई पीढ़ी नए मूल्यों के साथ अपने भविष्य की ओर देखती है और पुरानी पीढ़ी अपने जमाने के मूल्य एवं संस्कृति के साथ अपने अतीत को याद करती हुई नए मूल्य एवं संस्कारों की आलोचना करती रहती है। इसी कारण इन दोनों पीढ़ियों के मध्य इस अंतराल को पीढ़ी संघर्ष में परिवर्तित होते देर नहीं लगती। दोनों पीढ़ियों में परस्पर विचारों, अभिरुचियों, मूल्यों एवं संस्कारों, विश्वासों तथा आधुनिक तकनीकी को लेकर द्वंद्व होने लगता है। समय के अनुसार लोगों के जीने के तरीके, सोचने के तरीके एवं संपूर्ण व्यवहार में अद्भुत परिवर्तन होते रहते हैं और यह परिवर्तन पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते है। वास्तव में कहा जाए तो ये परिवर्तन द्वंद्व या संघर्ष के ही परिणाम होते हैं। इन परिवर्तनों के चलते यह द्वंद्व व्यक्ति का स्वयं से, व्यक्ति का व्यक्ति से, नई पीढ़ी का नई पीढ़ी से, पुरानी पीढ़ी का पुरानी पीढ़ी से या नई पीढ़ी का पुरानी पीढ़ी से हो सकता है। वैसे यह द्वंद्व होना स्वाभाविक है किंतु समस्या तब होती है जब ये द्वंद्व समाज में विकृत रूप ले लेता है और इसके कारण कोई वर्ग या पीढ़ी समाज की मुख्य धारा से दूर होती नजर आती है, उसे हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया जाता है। वृद्ध पीढ़ी के शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण समाज में इस पीढ़ी अंतराल के कारण उत्पन्न द्वंद्व की स्थिति का सबसे हानिकारक प्रभाव यह दिखाई दे रहा है कि युवा पीढ़ी अपने तरुण होने के जोश में वृद्ध पीढ़ी की कमजोरियों को नजरअंदाज करके उनकी अपने आप से तुलना करने लगती है। इस पीढ़ीगत द्वंद्व को हिंदी साहित्य के कई उपन्यासकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इनमें प्रमुख उपन्यास हैं- ममता कालिया का ‘दौड़’, चित्रा मुद्गल का ‘गिलिगडु’, कृष्णा सोबती का ‘समय सरगम’ सूरज सिंह नेगी के ‘नियति चक्र’, ‘वसीयत’ ‘सांध्य पथिक’, रवींद्र वर्मा का ‘पत्थर ऊपर पानी’ हृदयेश का ‘चार दरवेश’ ज्ञान चतुर्वेदी का ‘पागलखाना’ आदि। इन उपन्यासों में नई (युवा) पीढ़ी एवं पुरानी (वृद्ध) पीढ़ी में आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व शैक्षिक आदि क्षेत्रों के परंपरागत एवं आधुनिक मूल्यों को लेकर परस्पर द्वंद्व उत्पन्न होने की परिस्थितियों का चित्रण किया है और इनके संभावित समाधानों को उकेरने की कोशिश की गई है। इसी प्रकार के टकराव पर काशीनाथ सिंह ने अपने उपन्यास ‘रेहन पर रग्घू’ में प्रकाश डाला है। काशीनाथ सिंह द्वारा लिखित ‘रेहन पर रग्घू’ बहुचर्चित उपन्यास में अन्य कई समस्याओं के साथ-साथ पीढ़ी अंतराल के कारण उत्पन्न समस्याओं को भी उभारा गया है। इसमें पीढ़ियों में आपसी द्वंद्व का मुख्य कारण पाश्चात्य संस्कृति और वैश्वीकरण का नई पीढ़ी पर पड़ने वाले प्रभावों को बताया गया है। वृद्ध पीढ़ी रघुनाथ के माध्यम से लेखक ने इस पीढ़ीगत द्वंद्व की समस्याओं के सुलझाने हेतु संभावित समाधान देकर इस रचना को श्रेष्ठ बनाया है। 

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पीढ़ीगत, द्वंद्व, परिवर्तन, समाज, वैश्वीकरण, नगरीकरण.

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  1. बहुगुणा, उमा; यादव, रजनीश कुमार; मिश्रा, उमा (2015) भारतीय समाजः निर्गम (मुद्दे) एवं समस्यायें, वेदान्त पब्लिकेशन, लखनऊ, 2015, पृ. 116।

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6. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 81।
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13. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 143।
14. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 149।
15. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 104।
16. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 85।
17. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 128।
18. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 128।
19. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 142।
20. सिंह, काशीनाथ (2023) रेहन पर रग्घू, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 161।

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Human Resource Management (HRM) involves several responsibilities, from workforce recruitment to continual training, development and legal compliance. There are numerous challenges of HRM in India that expand over three domains. It is a great challenge to cater to the unique requirements of the workers dependent on their age, gender, or ethnicity. As a manager,  while fostering effective communication when workers from different backgrounds work together is difficult because employee disagreements are much more frequent.The present paper deals with ihe challenges of HRM in Indian Air Force.

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Human Resource Management (HRM), Indian air force, Operations.

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The Indian financial crisis of 1991 along with the emergence of globalization in the Indian economy during the 1990s necessitated the convergence of existing economic and commercial laws. The inflating issues of the Non-performing Assets (‘NPAs’) in the Indian economy and the absence of a robust insolvency legal regime to deal with the same was duly highlighted by several expert committees formed by the Indian Government to deal with it. In furtherance, desperate reforms were released to liberate the economy and get on a new journey. Amongst the economic reforms of India, the reforms in the Indian banking sector formed a crucial part. The Indian insolvency regime, henceforth, underwent a major transformation. The “United Nations Commission of International Trade Law” (‘UNICITRAL’) suggested international standards formed the basis for it. In light of recommendations floated by committees to amend “the Companies Act, of 1956” to form a proper insolvency regime in India, it was replaced with “the Companies Act of 2013” and a uniform “Insolvency and Bankruptcy Code, 2016” (‘Code’). Since the Code was enacted, we have observed ongoing challenges that the legislative body is actively addressing. This paper aims to research certain such crises faced during “the Corporate Insolvency Resolution Process” (‘CIRP’).

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Deciphering, Corporate, Finance.

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84. Id.
85. Supra note 10.
86. Supra note 18.
87. Id.
88. Id.
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90. Supra note 18.
91. Supra note 10.
92. Supra note 41, at 10.
93. Supra note 10.
94. Id.
95. Supra note 41.
96. Insolvency and Bankruptcy Code, 2016, § 30, No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
97. Supra note 41.
98. Id.
99. Insolvency and Bankruptcy Code, 2016, § 53, No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
100. Das, Awstika (2023) NCLAT Chairperson Calls for IBC Amendment to Ensure Due Share for Operational Creditors; Stresses on Need to Train IRPs”, Live Law, https://www.livelaw.in/top-stories/nclat-chairperson-calls-for-ibc-amendment-to-ensure-due-share-for-operational-creditors-stresses-on-need-to-train-irps-219654, Assess on March 25, 2023, 6:17 PM)
101. Supra note 41.
102. IBC, 2016, § 3(10), No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
103. IBC,2016, § 5(7), No. 31.
104. IBC, 2016, § 5(8), No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
105. IBC, 2016, § 5(20), No. 31.
106. IBC, 2016, § 5(21), No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
107. Supra note 38.
108. Supra note 10.
109. Id.
110. Swiss Ribbons v Union of India (2019) SCC Online SC 73; “Akshay Jhunjhunwala and Anr. v. Union of India” [W.P. No. 672 of 2017].
111. Supra note 41.
112. Supra note 10.
113. Insolvency and Bankruptcy Code, 2016, § 7(1), No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
114. IBC, 2016, § 8, No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
115. IBC, 2016, § 24(3)(c), No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
116. IBC,2016, § 7(3)(b), No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
117. IBC, 2016, § 9(4), No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
118. IBC, 2016, § 215, No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
119. IBC, 2016, § 53(2), No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
120. Justice Bhushan at the book launch of the second edition of Eastern Book Company’s ‘Insolvency and Bankruptcy Code’ by A.K. Mittal, while highlighting the need for amendment of section 53 of the Code said, “The maximum casualty is of the operational creditor who are at the very bottom of the distribution chain. The financial creditors take the major share, while the operational creditors get nothing”, https://www-livelaw-in.elibraryhnlu.remotexs.in/top-stories/nclat-chairperson-calls-for-ibc-amendment-to-ensure-due-share-for-operational-creditors-stresses-on-need-to-train-irps-219654, Assess on March 25, 2023, 10:23 PM.
121. Committee of Creditors of Essar Steel India Limited (through authorized signatory) v. Satish Kumar Gupta and Others, (2020) 8 SCC 531.
122. India Resurgence Arc (P.) Ltd. v. Amit Metaliks Ltd [2021] 127 taxmann.com 610 (SC)
123. Sethi, Rajat and Agarwal, Aditi (2021) India: Case Note: Judgement Of The Supreme Court In The Essar Steel Case, Modaq, https://www.mondaq.com/india/insolvencybankruptcy/1058270/case-note-judgement-of-the-supreme-court-in-the-essar-steel-case, Assess on March 25, 2023, 10:49 PM.
124. Id.
125. IBC, 2016, § 4, No. 31, Acts of Parliament, 2016 (India).
126. Manhas, Anupam (2022) Corporate Insolvency Laws: A Critical Analysis, 5 INT’I J.L. MGMT. & HUMAN. 1378.
127. Supra note 81.

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Sexual Attitude Scale constructed and standardised by Abraham (1997)1 and Self-developed Personal Information Inventory were administered on a sample of 100 married and 100 unmarried female students studying in Degree Colleges of Saran District undar Jai Prakash University, Chapra. The sample was drawn from constituent colleges of rural and urban areas. The objective of the investigation was to see the influence of marital status and inhabitation on attitudes towards premarital sex and lesbianism. The results indicated that unmarried college girl hold significantly more favourable attitudes towards premarital sex and lesbianism. Urban girl students irrespective of their marital status were found holding significantly more favourable attitudes towards pre-marital sex and lesbianism than their rural counterparts. It was concluded that attitudes of college girls towards pre-marital sex and lesbianism are functions of their marital status and inhabitation.

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Marital Status, Inhabitation, Lesbianism, Sex.

Read Reference

 1. Abraham, A. (1997). Sexual Attitude Scales, National Psychological Corporation, Agra, p. 37.

2. Bailey, J.M & Zucker, K.J. (1995). Childhood Sex-typed Behaviour and Sexual Orientation: A Conceptual Analysis and Quantitative Review, Development Psychology, 31,               p. 43-45.

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8. Wadhwa, Soma (2004): Vaivahik Sex ke Sutra, Outlook weekly, Hindi, Dec, 20, p. 28-33.


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In today’s competitive business environment, understanding and managing customer churn is crucial for sustaining growth and profitability. Customer churn, where customers end their association with a company, significantly impacts revenue and market share across industries. Traditional churn analysis methods, relying on simplistic models and historical data, often fall short in predicting and pre-empting churn effectively. Machine learning (ML) has revolutionized churn management by leveraging advanced algorithms and vast datasets to gain deeper insights into customer behaviours. ML models such as logistic regression, decision trees, random forests, and gradient boosting machines enable businesses to predict churn accurately and generate probabilistic churn scores to prioritize retention efforts. ML’s effectiveness in churn management is enhanced by its capability in integrating diverse data sources—customer interactions, transaction histories, demographics, and behavioural patterns—to create comprehensive customer profiles. Feature engineering techniques extract predictive features from raw data, improving churn prediction precision and enabling customized retention strategies. Segmentation and personalization strategies, facilitated by unsupervised learning algorithms like clustering, categorize customers into homogeneous groups based on behaviour and preferences. This approach identifies specific churn patterns within segments, allowing targeted interventions to pre-empt customer attrition. Real-time analytics powered by ML enable businesses to monitor customer interactions dynamically, identifying early churn indicators and facilitating timely interventions. This capability is crucial in rapidly changing industries, enabling adaptive retention strategies that promptly mitigate churn risks. While ML offers significant opportunities in churn management, challenges such as data quality, model interpretability, ethical considerations, and operational integration need addressing to ensure responsible use and maximize its potential in driving customer retention and sustainable business growth. Looking ahead, ML’s evolution promises further innovations in predictive modelling, AI-driven customer experiences, behavioural analytics, and augmented analytics, empowering businesses to optimize resource allocation, enhance customer satisfaction, and maintain competitive advantage in dynamic markets.

Read Keyword

Churn, Revenue, Pre-empting, Mitigate, Interpretability, Augmented, Operational.

Read Reference

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In today’s business landscape, social media networks have become indispensable for driving growth and expansion. While initially prominent among larger corporations, social media has increasingly become a crucial factor in the success of small businesses over the past several decades. As a result, the influence of social media extends across all sectors, including start ups, small enterprises, and large organizations. Its far-reaching impacts can be observed in various aspects of business operations, such as recruitment strategies, marketing initiatives, and customer relationships. This phenomenon has been anticipated globally. Nevertheless, the primary objective of this study is to investigate the notion of social media, identify the growth drivers of small organizations, examine the impact of social media in India, and explore the correlations between information systems and management sectors, specifically focusing on social networking for business growth. Furthermore, the successes achieved through social media involvement in developed nations serve as notable examples; however, it is equally important to recognize the approaches employed by developing countries like India to achieve significant progress. To better comprehend the role of social media in small business growth, this investigation employs a qualitative analytical framework, highlighting the diverse facets of social media and their influential characteristics for small businesses.

Read Keyword

Social Media, Impact on Small Scale Business, Growth, MSMEs.

Read Reference

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